बेटगारी यूनियन में 600 लोगों की उन्मादी भीड़ ने किया हमला
बांग्लादेश के रंगपुर जिले में गंगाचारा उपजिला स्थित बेटगारी यूनियन में रविवार 27 जुलाई को 500-600 मुस्लिमों की उग्र भीड़ ने 15 से अधिक हिंदू घरों पर हमला बोला।
हमला ईशनिंदा के झूठे आरोपों के नाम पर हुआ, जिसमें घरों को तोड़ा गया, लूटा गया और फिर आग के हवाले कर दिया गया। इस घटना के बाद भयभीत होकर 50 से अधिक हिंदू परिवार अपने घर-गाँव छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए।
हमला रविवार को शाम 4:30 बजे शुरू हुआ जब भीड़ अचानक हिंदू घरों की ओर बढ़ी और लाठी, हथियार लेकर तबाही मचा दी। चश्मदीदों के अनुसार, इस हिंसा की नींव शनिवार को ही रख दी गई थी जब एक हिंदू युवक रंजन रॉय के घर पर हमला हुआ था। अगले दिन यह हिंसा संगठित रूप में दोहराई गई।
पीड़ितों का बयान: “हम बर्बाद हो चुके हैं, अब कहाँ जाएँ?”
इस हमले की विभीषिका का अंदाजा पीड़ितों की जुबानी बयानों से लगाया जा सकता है। एक हिंदू महिला ने रोते हुए कहा, “अब हम कैसे जिएँगे? सब कुछ लूट लिया गया, हम पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं।”
वहीं एक युवा लड़की ने बताया कि जब हमला हुआ, तब पुलिस घटनास्थल पर मौजूद थी लेकिन वह भीड़ से डरकर भाग गई और हमें हमारी किस्मत पर छोड़ दिया।
लड़की ने सवाल किया, “हम जैसे निर्दोषों के साथ ऐसा क्यों किया गया? हम पर सामूहिक सजा क्यों दी जा रही है?” पुलिस की निष्क्रियता को लेकर स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश है।
पुलिस अधिकारियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने भीड़ को शांतिपूर्ण मार्च समझकर एकत्र होने दिया, लेकिन वह अचानक हिंसक हो गई।
पुलिस की चूक और प्रशासन की नाकामी
गंगाचारा थाने के प्रभारी अधिकारी (ओसी) अल इमरान ने कहा कि उन्हें लगा था कि यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन होगा, लेकिन भीड़ ने अचानक हिंसा शुरू कर दी।
एक पुलिसकर्मी हमले में गंभीर रूप से घायल भी हुआ। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि हमला दोपहर की नमाज के बाद शुरू हुआ।
स्थानीय निवासी प्रमोद महंत ने ‘प्रथम आलो’ को बताया कि मुस्लिमों ने पहले बाजार में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई थी, लेकिन कुछ ही देर में उन्होंने नारेबाजी शुरू कर दी और हिंदू घरों पर टूट पड़े।
पुलिस और फौज ने बाद में स्थिति को नियंत्रित किया, लेकिन तब तक हमलावर भाग चुके थे और कई हिंदू घर राख हो चुके थे।
ईशनिंदा के आरोप में युवक गिरफ्तार, बिना प्रमाण भीड़ को दी गई छूट
इस हमले की जड़ शनिवार को हुई उस घटना में थी जिसमें 18 वर्षीय रंजन रॉय को ईशनिंदा के आरोप में गिरफ्तार किया गया। आरोप था कि उसने फेसबुक पर पैगंबर मुहम्मद के विरुद्ध अपमानजनक पोस्ट की थी।
लेकिन बाद में फैक्ट-चेकर सोहन आरएसबी ने खुलासा किया कि रंजन के नाम से एक फर्जी अकाउंट बनाकर यह पोस्ट की गई थीं।
उस फर्जी अकाउंट से रंजन की पुरानी तस्वीरें और उसके परिवार के बारे में भ्रामक और अपमानजनक सामग्री पोस्ट की गई थी। इसके बावजूद पुलिस ने सत्यता की जाँच किए बिना रंजन को गिरफ्तार कर लिया। ओसी इमरान ने स्वीकार किया कि उन्होंने लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए यह गिरफ्तारी की।
हिंदुओं पर सुनियोजित हमलों की पुनरावृत्ति
यह कोई पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश में ईशनिंदा के नाम पर हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया हो। मई 2025 में भी जेसोर जिले के अभयनगर में इसी तरह की घटना घटी थी, जहाँ मुस्लिम भीड़ ने हिंदू घरों में आग लगाई थी।
एक पुरानी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 13 से अधिक ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जहाँ बिना प्रमाण के ईशनिंदा का आरोप लगाकर हिंदुओं पर हमले किए गए।
इन घटनाओं में न सिर्फ धार्मिक द्वेष दिखता है बल्कि प्रशासनिक विफलता भी उजागर होती है। रंगपुर की ताज़ा घटना में भी अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है, जिससे पीड़ित समुदाय और अधिक असुरक्षित महसूस कर रहा है।
अल्पसंख्यकों के लिए बढ़ती चिंता, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़ते हमले न केवल चिंता का विषय हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के लिए भी एक चेतावनी हैं।
प्रशासन की निष्क्रियता, धार्मिक उन्मादियों की खुलेआम हिंसा और पीड़ितों के लिए न्याय का अभाव, सब मिलकर बांग्लादेश में एक भयावह सामाजिक ताने-बाने को जन्म दे रहे हैं।
बेटगारी यूनियन की घटना इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि किस प्रकार ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाकर सुनियोजित रूप से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है।
हिंदू समुदाय के घर, संपत्ति और जीवन यापन के साधन एक बार फिर आग और हिंसा की भेंट चढ़ गए हैं।