Rajasthan Diwas: राजस्थान यानि राजाओं का स्थान, हमारा राजस्थान अपनी परंपराओं, वीरता और संस्कृति के लिए जाना जाता है। 30 मार्च को हम राजस्थान का स्थापना दिवस मनाया जाता था। इस साल भजनलाल सरकार ने राजस्थान दिवस को 30 मार्च से बदलकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन करने की बहुप्रतीक्षित माँग पूरी कर दी है। 30 मार्च 1949 को राज्य गठन के दिन भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानि नव संवत्सर का शुभ दिन था, और 2025 में भी ऐसा ही है।
Rajasthan Diwas: अंग्रेजी तारीख से नहीं, अब हिंदू नववर्ष को मनेगा राजस्थान दिवस
लेकिन क्या आपको पता है कि आज जो राजस्थान आज हम देख रहे हैं ये एक दिन में नहीं बना। , इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी छिपी है जो सालों पुरानी है। यह कहानी है, उन 22 रियासतों की, जिन्हें एक साथ जोड़कर राजस्थान बनाया गया।
Rajasthan Diwas: 1947 में अंग्रेजों का शासन तो खत्म हो गया था, और हम आजाद भी हो गए थे, लेकिन देश के सामने उस समय एक और बड़ी चुनौती खड़ी थी—533 रियासतों को एक साथ लाना और भारत देश बनाना। इन रियासतों में से अधिकांश रियासतें स्वतंत्र सत्ता बनाए रखना चाहती थीं, लेकिन कांग्रेस सरकार में गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ठान चुके थे कि वो भारत को एक संगठित राष्ट्र बनाकर रहेंगे। पटेल के प्रयासों से ही आज ये भारत देश बन पाया है।
अधिकांश रियासतों का भारत में विलय हो गया, लेकिन राजस्थान का एकीकरण पटेल के लिए आसान नहीं था। यहाँ 22 रियासतें थीं, जिनमें से अधिकांश पर राजपूत राजा-महाराजाओं का शासन था। अजमेर-मेरवाड़ा, जिसे ब्रिटिश सरकार सीधे नियंत्रित करती थी उन्हें छोड़कर, बाकी सभी रियासतों के राजा स्वतंत्र रहना चाहते थे। लेकिन लोकतंत्र को अपनाने का समय अब आ चुका था, और वल्लभ भाई पटेल ने इनके एकीकरण के प्रयास तेज कर दिए थे।
Rajasthan Diwas: आज राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है, जिसका कुल क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है। ये अकेले भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.4% हिस्सा कवर करता है। राजस्थान का आकार पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भी बड़ा है। इसके पूर्व में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश, पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में पंजाब और दक्षिण में गुजरात स्थित हैं। लेकिन इतने विशाल भूभाग का निर्माण होना आसान नहीं था। राजस्थान का निर्माण सात चरणों में पूर्ण हुआ था।
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पहला चरण- मत्सय संघ का गठन
Rajasthan Diwas: राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत 18 मार्च 1948 से शुरू हुई। सबसे पहले, अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली की रियासतों को मिलाकर मत्स्य संघ बनाया गया। यह राजस्थान के एकीकरण की पहली नींव थी।
लेकिन क्या यह इतना आसान था?
बिल्कुल नहीं। इन रियासतों के शासकों को डर था कि अगर वे भारत में शामिल हुए, तो उनकी सत्ता खत्म हो जाएगी। लेकिन लोकतंत्र का दौर आ चुका था, और जनता भी बदलाव चाहती थी।
दूसरा चरण – जब राजस्थान संघ बना
Rajasthan Diwas: इसके बाद, 25 मार्च 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, किशनगढ़, टोंक, कुशलगढ़ और शाहपुरा को मिलाकर राजस्थान संघ बनाया गया।
इस दौर में सबसे बड़ा सवाल था – क्या राजपूत शासक अपनी गद्दी छोड़ने को तैयार होंगे? राजाओं को यह समझाने के लिए कि वे एक लोकतांत्रिक भारत का हिस्सा बनें, पटेल और वी.पी. मेनन को कई दौर की चर्चाएँ करनी पड़ीं। धीरे-धीरे, राजाओं को ये अहसास हुआ कि भारत से अलग रहना संभव नहीं है।
तीसरा चरण – जब मेवाड़ का फैसला बदला
Rajasthan Diwas: अब बारी थी उदयपुर (मेवाड़) की, लेकिन महाराणा इतने जल्दी झुकने को तैयार नहीं थे। उदयपुर का राजवंश भारत के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा था। महाराणा प्रताप की धरती कभी किसी के अधीन नहीं रही थी। उदयपुर के शासकों को डर था कि भारत में शामिल होने का मतलब होगा—अपनी स्वतंत्र सत्ता का अंत।
लेकिन वक्त का तकाजा कुछ और था। बाकी रियासतें भारत में शामिल हो रही थीं, और मेवाड़ को भी अपने भविष्य की चिंता थी। आखिरकार, 18 अप्रैल 1948 को महाराणा ने अपना फैसला बदला, और राजस्थान का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव पूरा हुआ—संयुक्त राजस्थान का गठन हुआ।
चौथा चरण – जब सबसे बड़े राज्य जुड़े
Rajasthan Diwas: 30 मार्च, 1949, ये राजस्थान के इतिहास का सबसे बड़ा दिन था। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर ने राजस्थान में विलय कर लिया। लेकिन इस फैसले के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी थी।
जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह को पाकिस्तान से भी प्रस्ताव मिला था कि वे चाहें तो अलग राष्ट्र का हिस्सा बन सकते हैं। लेकिन जब उन्होंने सरदार पटेल से मुलाकात की, तो उन्हें समझ आया कि भारत ही उनका भविष्य है। यही दिन आज ‘राजस्थान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
पांचवां चरण- जब मत्स्य संघ राजस्थान में मिला
Rajasthan Diwas: 15 मई 1949 को मत्स्य संघ को भी राजस्थान में मिला दिया गया। इसके अलावा, नीमराना (चीफशिप्स) को भी राजस्थान का हिस्सा बना दिया गया। अब राजस्थान धीरे-धीरे अपने पूर्ण स्वरूप की ओर बढ़ रहा था।
छठा चरण- जब सिरोही का बंटवारा हुआ
Rajasthan Diwas: 26 जनवरी 1950 को सिरोही रियासत को राजस्थान में शामिल किया गया, लेकिन आबू और देलवाड़ा को बंबई, जिसे अब महाराष्ट्र के नाम से जाना जाता है उसमें में मिला दिया गया। राजस्थानवासियों को यह फैसला रास नहीं आया, और उन्होंने इसका विरोध किया। जिसका परिणाम ये हुआ कि 1956 में इन्हें फिर राजस्थान में मिला दिया गया।
सातवां चरण- जब राजस्थान अपने अंतिम स्वरूप में आया
Rajasthan Diwas: अब राजस्थान लगभग अपने अंतिम स्वरूप में था, लेकिन अजमेर-मेरवाड़ा अभी भी सीधे भारत सरकार के नियंत्रण में था। 1 नवंबर 1956 को राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम यानि States Reorganisation Act के तहत इसे राजस्थान में शामिल कर दिया गया। इसके साथ ही राजस्थान का संपूर्ण एकीकरण पूरा हो गया और यह अपने वर्तमान स्वरूप में आ गया।
और फिर भारत सरकार द्वारा गठित राव समिति की सिफारिशों पर 7 सितंबर 1949 को जयपुर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया। इस तरह राजस्थान का एकीकरण पूरा हुआ और यह राज्य अपनी वीरता और संस्कृति के साथ भारत की आन-बान-शान बन गया।
राजस्थान का निर्माण भारत की एकता और अखंडता की मिसाल था। यह प्रदेश केवल महलों और किलों की भूमि नहीं, बल्कि यह वीरों और महान शासकों की धरती है। यही कारण है कि इसे राजस्थान कहा जाता है— राजस्थान यानी राजाओं का स्थान।