Raja Raghuwanshi Murder Case: जब भी किसी महिला की हत्या होती है, तो समाज तुरंत जाग जाता है। सोशल मीडिया पर शोक की लहर दौड़ जाती है, न्यूज़ चैनल्स ब्रेकिंग न्यूज़ चलाते हैं, महिला आयोग सक्रिय हो जाता है और देश भर में मोमबत्तियाँ जलती हैं।
लेकिन क्या कभी आपने उस दर्द को महसूस किया है जो उन पुरुषों के साथ होता है, जिनकी हत्या उनकी ही पत्नियों द्वारा की जाती है? यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि सच्चाई है जिसे हमारा समाज अनदेखा कर रहा है।
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Raja Raghuwanshi Murder Case: राजा की हत्या
राजा रघुवंशी की हत्या इसका एक ताजा उदाहरण है। वह अपनी पत्नी सोनम के साथ हनीमून पर गया था, लेकिन वहीं उसकी हत्या कर दी गई। यह कोई इकलौता मामला नहीं है। पिछले पांच वर्षों में केवल पाँच राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 785 पतियों की हत्या उनकी पत्नियों द्वारा की गई है।
हैरानी की बात ये है कि अधिकतर मामलों में पत्नियों ने अपने प्रेमियों के साथ मिलकर इस वारदात को अंजाम दिया।
NCRB और राज्य पुलिस के आंकड़े
उत्तर प्रदेश में ऐसे 274 मामले सामने आए हैं। बिहार में 186, राजस्थान में 138, महाराष्ट्र में 100 और मध्य प्रदेश में 87। ये आंकड़े सिर्फ इन राज्यों के हैं।
पूरे देश की स्थिति इससे कहीं ज्यादा गंभीर हो सकती है। NCRB और राज्य पुलिस के आंकड़ों से यह तस्वीर साफ होती है कि घरेलू हिंसा और हत्या केवल एकतरफा नहीं होती।
घरेलू कलह में हुई हत्या
इन पुरुषों में कोई नेवी ऑफिसर था, कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कोई बिजनेसमैन और कोई मल्टीनेशनल कंपनी का HR मैनेजर, लेकिन इनकी मौत पर न कोई मीडिया रिपोर्ट आई, न कोई महिला आयोग की टीम, न कोई धरना और न ही कोई सार्वजनिक शोक व्यक्त किया गया।
इनकी हत्या को या तो “घरेलू कलह” का नाम दे दिया गया या “पारिवारिक मामला” कहकर फाइल बंद कर दी गई।
पत्नियों ने पहले से संबंध बना रखे
कई मामलों में यह देखा गया कि पत्नियों ने पहले से संबंध बना रखे थे और पति इस रिश्ते के आड़े आ रहा था। ऐसे में रास्ता साफ करने के लिए हत्या कर दी गई। कुछ मामलों में संपत्ति के लालच में ऐसा किया गया, तो कहीं सिर्फ शक या झगड़े ने जान ले ली।
पूरा देश होता सड़कों पर
अब सोचिए, अगर यही आंकड़ा उल्टा होता। अगर 785 पत्नियाँ मारी जातीं, तो पूरे देश में बवाल मच जाता। लोग सड़कों पर उतर आते, “सेफ्टी फॉर वीमेन” पर हजारों अभियान चलते, कानून बदले जाते। लेकिन जब मर्द मारा जाता है, तो वह सिर्फ एक आंकड़ा बनकर रह जाता है।
न्याय और सहानुभूति केवल महिलाओं तक सीमित
समाज को यह समझना होगा कि पीड़ा का कोई जेंडर नहीं होता। न्याय और सहानुभूति केवल महिलाओं तक सीमित नहीं होनी चाहिए। पुरुष भी पीड़ित हो सकते हैं, और उन्हें भी उतनी ही संवेदना, सुरक्षा और न्याय मिलना चाहिए, जितना किसी भी महिला को।
हत्या, चाहे किसी की भी हो, अपराध होती है और अपराधी चाहे महिला हो या पुरुष, कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए।
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