राम जन्मभूमि से दूरी और सनातन के प्रति घृणा
राहुल गांधी का आचरण बार-बार यह दर्शाता है कि वे सनातन परंपराओं और श्रद्धा स्थलों से दूरी बनाए रखते हैं। जनवरी 2024 में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक महोत्सव सम्पन्न हुआ था।
उन्हें विधिवत निमंत्रण भी दिया गया था, किंतु वे वहाँ पहुँचना उचित नहीं समझ पाए। यह आचरण उनकी मानसिकता का परिचायक है।
जिसमें राम जन्मभूमि जैसे करोड़ों आस्थावानों के तीर्थ को नज़रअंदाज़ करना उनके लिए सहज प्रतीत होता है।
सीता जन्मभूमि यात्रा में भी दिखाई भ्रम और विद्वेष की राजनीति
हाल ही में अपनी राजनीतिक यात्रा के दौरान राहुल गांधी सीतामढ़ी स्थित जानकी मंदिर पहुँचे। किंतु वे पुनौरा धाम से दूरी बनाए रहे, जहाँ सीता जन्मस्थली का पारंपरिक स्वरूप माना जाता है।
उनके सहयोगियों द्वारा जानकी मंदिर को ही जन्मस्थली बताना विवाद को जन्म देने वाला कदम रहा। यह आचरण न केवल ऐतिहासिक तथ्यों से खिलवाड़ है, बल्कि धार्मिक आस्थाओं के साथ भी छेड़छाड़ के रूप में देखा जा रहा है।
विवाद का पटाक्षेप और सरकार का निर्णायक कदम
सीता प्राकट्य स्थली को लेकर लंबे समय से चला आ रहा विवाद 8 अगस्त 2024 को भूमिपूजन एवं शिलान्यास के साथ समाप्त हुआ।
इस स्थल के विकास का प्रारंभिक निर्णय सितंबर 2023 में तेजस्वी यादव के उपमुख्यमंत्री रहते लिया गया था, परंतु इसे आगे बढ़ाने का कार्य भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने किया।
गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में हुए कार्यक्रम ने इसे वैधता और स्पष्टता प्रदान की।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की साझा यात्रा पर प्रश्न
यदि राहुल गांधी वास्तव में श्रद्धाभाव से वहाँ गए होते, तो उन्हें दोनों स्थलों पर उपस्थित होकर आस्था का सम्मान करना चाहिए था।
किंतु उनका उद्देश्य केवल राजनीतिक संदेश देना था। इस प्रकार वे न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करते हैं बल्कि समाज में भ्रम और विभाजन भी उत्पन्न करते हैं।
असत्य, अपशब्द और बहुसंख्यक समाज से दूरी
राहुल गांधी के वक्तव्यों में अक्सर झूठ, भ्रम और विद्वेष परिलक्षित होता है। वे संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्न उठाते हैं, प्रधानमंत्री के लिए अपशब्द बोलते हैं और सनातन संस्कृति पर कटाक्ष करते हैं।
यह रवैया उन्हें जनमानस से दूर करता है। प्रधानमंत्री पद का उनका स्वप्न भी बहुसंख्यक समाज की मानसिकता के कारण असंभव प्रतीत होता है।
भारत विरोधी ताकतों से मेलजोल पर सवाल
राहुल गांधी के बयानों में अक्सर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप, पाकिस्तान और बांग्लादेश की भारत विरोधी टिप्पणियों पर प्रसन्नता झलकती है।
यह प्रवृत्ति राष्ट्रहित के विपरीत और विभाजनकारी राजनीति को पुष्ट करने वाली है। ऐसे में उनका सीता जन्मभूमि पर भ्रम फैलाना और आस्था को राजनीति से जोड़ना स्वाभाविक रूप से प्रश्न खड़े करता है।
विभाजन की राजनीति और सनातन का अपमान
रामचरितमानस की उक्त पंक्तियाँ, “खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी, जरहिं सदा पर संपति देखी”, मानो राहुल गांधी जैसे ही चरित्रों पर लागू होती हैं।
आस्था स्थलों की अवहेलना, झूठ फैलाना और सामाजिक विद्वेष को बढ़ाना उनकी राजनीति का मूल स्वरूप बन चुका है।
ऐसे आचरण से स्पष्ट है कि वे सनातन धर्म को विभाजित कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश में लगे हैं।