बाराबंकी लाठीचार्ज पर उठे सवाल
बाराबंकी में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) कार्यकर्ताओं पर हुआ लाठीचार्ज केवल भीड़ को तितर-बितर करने के उद्देश्य से नहीं किया गया था।
जानकारी के अनुसार, एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने सभी चैनल तोड़कर स्थानीय पुलिस को सीधे आदेश दिए कि कार्यकर्ताओं को इतनी बर्बरता से पीटा जाए कि वे दोबारा किसी भी गड़बड़ी का साहस न कर पाएं।
ABVP कार्यकर्ताओं की इस तरह की पिटाई को लेकर तुलना सपा शासनकाल से भी की जा रही है। बताया गया कि समाजवादी पार्टी की सरकार में भी इतनी निर्ममता से कार्रवाई नहीं हुई थी।
हां, कुछ मौकों पर युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा व्यवहार अवश्य हुआ था, लेकिन सामान्य तौर पर पुलिस सभी छात्र संगठनों को संतुलित तरीके से संभालती थी।
सूत्र बताते हैं कि इस तरह की कार्रवाई तब होती है जब कोई बड़ा ब्यूरोक्रेट मंडल और जिले की प्रशासनिक व्यवस्था को दरकिनार कर सीधे थाने के अधिकारियों पर दबाव डालता है।
इसके पीछे दो ही कारण हो सकते हैं, या तो संबंधित विश्वविद्यालय में उसका काला धन लगा हो, अथवा उस विश्वविद्यालय से कोई विशेष लाभ जुड़ा हुआ हो।
इस घटनाक्रम ने उत्तर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी की मंशा पर भी सवाल खड़े किए हैं। आरोप है कि प्रशासन पूरी तैयारी कर चुका है इस सरकार को हटाने की।
हालांकि जानकार मानते हैं कि सरकार को इतनी आसानी से पीछे नहीं हटना चाहिए। समाजवादी पार्टी के गुंडाराज से बड़ी मुश्किल से राज्य को छुटकारा मिला था, लेकिन पुलिस और ब्यूरोक्रेसी का मौजूदा रवैया सही दिशा में जाता नहीं दिख रहा।