Thursday, November 21, 2024

PM Modi Birthday: पीएम मोदी का बचपन में लिखा ये नाटक हुआ था काफी मशहूर

PM Modi Birthday: पीएम मोदी ने 13-14 साल की उम्र में अपने स्कूली दिनों के दौरान एक नाटक किया था पीलू फूल। हिंदी में इसका अर्थ है पीला फूल। ऐसा कहा जाता है कि पीएम मोदी में ये नाटक खुद लिखा था।

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पीएम मोदी आज 74 साल के हो गए हैं। देश के लोग उन्हें प्रेरणा के तौर पर देखते हैं। आज के दिन उनके बारे में सब जानना चाहते हैं। वैसे तो पीएम मोदी के जीवन किसी से छुपा नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। ऐसी ही एक बात उनके स्कूली दिनों से जुड़ी है। चलिए आज पीएम मोदी के जन्मदिन पर उनकी बात विस्तार से जानते हैं। इस बात से ये भी पता चलेगा कि उनका नाटक और थिएटर के प्रति कितना गहरा लगाव था।

पीएम मोदी का थिएटर और अभिनय से था गहरा लगाव

PM Modi Birthday: साल 2013 जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया था तब उनके बारे में एक किताब लिखी गयी थी। उस किताब का नाम था ” मैन ऑफ द मोमेंट: नरेंद्र मोदी”। ये किताब कालिंदी रंदेरी और एमवी कामथ द्वारा लिखी गयी है। इस ही किताब में एक जगह बताया गया है कि पीएम नरेंद्र मोदी अभिनय और नाट्य के प्रति गहरा रुझान रखते थे।

वो अक्सर अपने स्कूली दिनों में नाट्य कार्यक्रमों में भाग लिया करते थे। उन्होनें एक नाटक खुद भी लिखा था जो काफी मशहूर भी हुआ था। पीएम मोदी अपनी किताब Exam Warriors में ये भी लिखते हैं कि एक बार स्कूल में नाटक प्रैक्टिस के दौरान उन्हें लगा कि वह एक दम परफेक्ट डायलॉग डिलीवरी कर रहे हैं। हालांकि, वो चाहते थे कि ये बात नाटक के डायरेक्टर उनसे खुद उनसे कहे। इसीलिए जब वह अगले दिन स्कूल पहुंचे तो उन्होंने डायरेक्टर से कहा कि आप मेरी जगह आकर मुझे ये बताएं कि आखिर मैं क्या गलती कर रहा हूं और इस गलती को सुधरने के लिए मैं क्या कर सकता हूं।

मशहूर हुआ था पीएम मोदी का ये नाटक

एक रिपोर्ट के मुताबिक एम मोदी ने अपने स्कूली दिनों में एक नाटक किया था पीलू फूल जिसका हिंदी अर्थ है पीले फूल। कहा जाता है कि पीएम मोदी ने ये नाटक खुद लिखा था। पीएम मोदी और उनकी टोली ने ये नाटक इसलिए किया था ताकि वह अपने स्कूल के कंपाउंड की टूटी हुई दीवार के लिए फण्ड इकठ्ठा कर सके।

इस नाटक के पीछे का विषय था अस्पृश्यता। सीधी भाषा में कहें तो समाज में फैली छुआ-छूत की ये बीमारी जैसी लगने वाली धारणा। हालांकि, इससे पहले ही साल 1955 में देश की संसद द्वारा छुआ-छूत को अपराध घोषित कर दिया था। लेकिन फिर भी जिस वक्त ये नाटक हुआ उस वक्त तक समाज में अस्पृश्यता की जड़ें भीतर तक फैली थी।

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