Panna Tiger Reserve: पन्ना टाइगर रिजर्व ने अपनी सबसे प्यारी और सबसे उम्रदराज़ सदस्य, हथिनी वत्सला को अंतिम विदाई दी और इस विदाई में न सिर्फ़ आँसू थे, बल्कि एक युग का समापन भी था। मंगलवार दोपहर करीब 1:30 बजे, वत्सला ने अपने जीवन की अंतिम सांसें लीं।
हिनौता हाथी शिविर, जहां वह पिछले कई दशकों से रही, वही उसकी अंतिम यात्रा की साक्षी बना। रेंजर आरपी अरगरिया ने उसकी मृत्यु की पुष्टि करते हुए कहा, “हमारी प्यारी वत्सला हमें छोड़ गई, वह कई दिनों से बीमार थी।”
वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक अंजना सुचिता तिर्की और उप निदेशक मोहित सूद ने पूरे स्टाफ़ के साथ मिलकर उसे श्रद्धांजलि दी। पूरे सम्मान के साथ, उसी शिविर में उसका अंतिम संस्कार किया गया, जिसे वह अपना घर मानती थी।
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Panna Tiger Reserve: रिजर्व की शान थी वत्सला
वत्सला केवल एक हाथी नहीं थी, वह इस रिज़र्व की शान थी। कुछ हफ्तों से वह बीमार चल रही थी और उम्र के कारण उसे लंबे समय से किसी काम में नहीं लगाया गया था। लेकिन वह अकेली नहीं थी
अनुभवी महावतों और वन पशु चिकित्सकों की देखरेख में उसे चौबीसों घंटे निगरानी और विशेष फल-दलिया वाला आहार दिया जाता था।
फिर भी हाल ही में एक नाले में फिसलने के बाद उसकी हालत बिगड़ती गई। मोतियाबिंद ने उसकी दृष्टि भी छीन ली थी, जिससे उसकी गतिशीलता बहुत सीमित हो गई थी।
गिनीज़ वर्ल्ड में दर्ज नहीं हो सका नाम
वत्सला का जीवन अद्वितीय और प्रेरणादायक था। वह 1993 में केरल के नीलांबुर के जंगलों से पन्ना लाई गई थी, लेकिन उसके वन्यजीवन की कहानी उससे भी पहले शुरू होती है। 1971 में जब वह बोरी अभयारण्य (होशंगाबाद) में थी, तब उसकी उम्र लगभग 50 वर्ष मानी गई थी।
यानी उसकी अनुमानित आयु 100 वर्ष से अधिक थी। यह एक आश्चर्यजनक उपलब्धि थी, लेकिन औपचारिक दस्तावेज़ों के अभाव में गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उसका नाम दर्ज नहीं हो सका।
वन अधिकारियों ने कार्बन डेटिंग जैसी वैज्ञानिक विधियों से उसकी आयु प्रमाणित करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी प्रयास सफलता नहीं दिला सका।
मातृत्वपूर्ण था स्वभाव
फिर भी वत्सला को पहचान किसी रिकॉर्ड से नहीं, बल्कि उसके व्यवहार और मातृत्व स्वभाव से मिली। वह सभी के बीच “दाई मां” के नाम से मशहूर थी। उसने कई हाथी बछड़ों की देखभाल की थी, उन्हें प्यार और सुरक्षा दी थी।
प्रसिद्ध वन्यजीव विशेषज्ञ राजेश दीक्षित कहते हैं, “वत्सला का स्वभाव बहुत ही मातृत्वपूर्ण था। मैंने उन्हें नन्हे हाथियों को सिखाते, दुलराते और उनके साथ खेलते देखा है। वह उन बछड़ों के लिए मां से कम नहीं थीं।”
वत्सला पर हुआ हिंसक हमला
वत्सला के जीवन में संघर्ष भी कम नहीं थे। पन्ना टाइगर रिजर्व में ही रहने वाले एक नर हाथी, राम बहादुर, से उसकी वर्षों पुरानी दुश्मनी थी। 2003 में उस नर हाथी ने वत्सला पर हिंसक हमला कर दिया था, जिसमें उसे 200 से ज़्यादा टांके लगे थे।
2008 में एक और हमला हुआ, जिसके बाद वन अधिकारियों को राम बहादुर को अलग करना पड़ा क्योंकि उसने एक महावत पर भी जानलेवा हमला कर दिया था, लेकिन वत्सला कभी भी डर में नहीं जी।
वह शांत, स्नेही और गरिमामय बनी रही। अपनी वृद्धावस्था में भी वह दूसरे हाथियों को देखती, महावतों की आवाज़ पहचानती और बच्चों की तरह बर्ताव करने वालों को हल्के से धक्का देकर अनुशासित करती। वह एक ऐसी उपस्थिति थी, जो केवल हाथियों के लिए नहीं, बल्कि इंसानों के लिए भी प्रेरणा थी।
परदादी और परनानी का दे गई अनुभव
वत्सला का निधन केवल एक हथिनी की मृत्यु नहीं है। यह एक युग का अंत है। उसकी नज़रों में छुपा अनुभव और उसका अपार स्नेह अब केवल यादों में रह जाएगा।
पन्ना टाइगर रिज़र्व के लिए यह एक ऐसा खालीपन है, जिसे कोई और नहीं भर सकता। दाई माँ चली गई, लेकिन उसका प्यार, उसकी कहानियां और उसकी उपस्थिति हर पेड़, हर रास्ते और हर बछड़े की यादों में जीवित रहेगी।
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