Friday, November 7, 2025

हाड़ौती: इतिहास की अनदेखी विरासत से लेकर आज की चुनावी राजनीति तक”

हाड़ौती: राजस्थान का हाड़ौती क्षेत्र — जिसमें कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ शामिल हैं, ऐसा इलाक़ा है जिसका इतिहास जितना समृद्ध है, उतना ही उपेक्षित भी रहा।

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मेवाड़, मारवाड़ और जयपुर की तुलना में हाड़ौती की गौरवगाथा अक्सर मुख्यधारा के इतिहास में पीछे छूट गई।

जबकि यहाँ की सांस्कृतिक विरासत, युद्धनीति, जल–विन्यास और राजनीतिक समझ पूरे राजस्थान को दिशा देने वाली रही है।

आज, जब हाड़ौती फिर से चुनावी केंद्र में है, उसका असली इतिहास समझना और भी ज़रूरी हो जाता है।

हाड़ौती का पुराना इतिहास: राजाओं और रियासतों की असाधारण विरासत

  1. बूंदी—जहाँ से हाड़ौती की पहचान बनी

बूंदी राज्य की स्थापना चौहान वंश के रावों ने की। यहाँ के शासक राव देवा, राव सुरजन हाड़ा, राव चूड़ा, और बाद में महाराव उम्मेद सिंह जैसे राजाओं ने अद्भुत स्थापत्य और कूटनीति का उदाहरण दिया।

  • बूंदी का तरागढ़ किला — राजस्थान के सबसे पुराने और मज़बूत दुर्गों में
  • बूंदी चित्रशैली — दुनिया भर में चर्चित, मगर राजस्थान में ही सबसे कम प्रचारित

कोटा—हाड़ौती की सामरिक शक्ति

17वीं शताब्दी में कोटा अलग रियासत बनी। यह इलाक़ा मुगल, मराठों और राजपूत शक्तियों के बीच कूटनीतिक संतुलन का केंद्र रहा।

  • दरबार में युद्ध–रणनीति और प्रशासनिक मॉडल आज भी अध्ययन का विषय है।
  • यहाँ के शासक महाराo भीम सिंह और उमेद सिंह द्वितीय ने आधुनिक कोटा की नींव रखी।

झालावाड़—संस्कृति और प्रकृति का संगम

झालावाड़ राज्य 1838 में स्थापित हुआ।

  • शासकों ने शिक्षा, सिंचाई और सांस्कृतिक संरक्षण में अहम योगदान दिया।
  • यहाँ के जैन मंदिर, बौद्ध अवशेष और गरहाकुंड जैसे क्षेत्र आज भी अनकही कहानियाँ समेटे हैं।

हाड़ौती की महिलाएँ: जिन्हें इतिहास में कम जगह मिली

हालाँकि रानियों और सामंत परिवार की महिलाओं का प्रभाव बहुत गहरा था, मगर इतिहास में उनका उल्लेख सीमित है।

  • बूंदी की रानी हाड़ा बाई — जिन्होंने अकबर के दरबार की राजनीति को दिशा दी।
  • झालावाड़ की रानी कृष्णा कंवर — शिक्षा और महिला सुरक्षा की नींव रखने वाली।
  • ग्रामीण क्षेत्रों की वो अनगिनत महिलाएँ — जिन्होंने युद्धकाल में राज्य की रक्षा और जन–संगठन में भूमिका निभाई।

इन योगदानों को अब भी इतिहास की मुख्यधारा में पर्याप्त स्थान नहीं मिला है।

हाड़ौती की सामाजिक–आर्थिक पहचान

  • यहाँ की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था, चंबल की सिंचाई से फलने–फूलने लगी।
  • कोटा आज “कोचिंग कैपिटल” के रूप में देश की पहचान है, मगर पुरानी कोटा रियासत का प्रशासनिक ढांचा भी बेहद मज़बूत था।
  • हाड़ौती की लोकभाषा, त्यौहार, नृत्य–गीत पूरे राजस्थान से बिल्कुल अलग और पहचानदार हैं।

हाड़ौती वर्तमान चुनावी माहौल

हाड़ौती का चुनाव हमेशा राजस्थान की सत्ता की दिशा तय करता है। कई बार यहाँ की सीटें पूरे प्रदेश का राजनीतिक मूड बना देती हैं।

कोटा—बड़ी सियासी प्रयोगशाला

  • शहर और ग्रामीण सीटों में मुद्दे बिल्कुल अलग
  • कोचिंग इंडस्ट्री से जुड़े सवाल, छात्र सुरक्षा, रोड–कनेक्टिविटी
  • ग्रामीण इलाक़ों में किसान, पानी, सिंचाई, बिजली समस्या चुनाव का केंद्र

बूंदी—शांत लेकिन निर्णायक मतदाता

बूंदी के मतदाता अक्सर शांत रहते हैं, लेकिन परिणाम बदलने की क्षमता रखते हैं।

  • यहाँ जातीय संतुलन, स्थानीय नेतृत्व की लोकप्रियता और युवाओं की बेरोज़गारी प्रमुख मुद्दे हैं।

बारां—जनजातीय इलाक़े का राजनीतिक असर

  • यहाँ जनजातीय मतदाता निर्णायक
  • सड़क, शिक्षा, बुनियादी सुविधाएँ सबसे बड़ा सवाल
  • स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार की बहस हमेशा रहती है

झालावाड़—परंपरागत राजनीति बनाम नए समीकरण

  • यहाँ अक्सर बड़े राजनीतिक परिवारों का प्रभाव रहा है
  • लेकिन इस बार युवाओं और महिला मतदाताओं का रुझान चुनाव का गणित बदल सकता है

हाड़ौती की चुनावी राजनीति में बड़ा बदलाव

इस बार हाड़ौती में—

  • स्थानीय मुद्दे ज़्यादा हावी
  • युवा और महिला वोट निर्णायक
  • शिक्षा, कोचिंग, कृषि, सिंचाई, उद्योग और बेरोज़गारी बड़े मुद्दे
  • और सबसे ज़रूरी — लोग अब “विकास बनाम परंपरागत राजनीति” की तुलना कर रहे हैं

हाड़ौती का इतिहास जितना भरा–पूरा और चमकदार रहा है, उतना ही अनदेखा भी। आज जब यहाँ की धरती फिर से चुनाव का मैदान बनी है, इतिहास को समझना ज़रूरी है — ताकि पता चले कि यह इलाक़ा सिर्फ एक राजनीतिक क्षेत्र नहीं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक आत्मा है।

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