Wednesday, October 29, 2025

“बुजुर्गों की नई लत, स्क्रीन ने बदल दी दिनचर्या, बढ़ रहा अकेलापन और मानसिक दबाव”

वो उम्र, जो कभी पूजा-पाठ, किताबें पढ़ने या परिवार संग समय बिताने में गुजरती थी, अब स्क्रीन की रोशनी में बीत रही है।

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टीवी, स्मार्टफोन, टैबलेट और गेमिंग डिवाइस, ये सब अब बुजुर्गों की रोजमर्रा का हिस्सा बन चुके हैं।

एक हालिया स्टडी बताती है कि बुजुर्गों में टेक्नोलॉजी एडिक्शन तेजी से बढ़ रहा है, जिससे उनकी नींद, मेंटल हेल्थ और फिजिकल एक्टिविटी पर गंभीर असर पड़ रहा है।

ब्रिटेन से अमेरिका तक बढ़ रहा डिजिटल एडिक्शन

ब्रिटेन के नेशनल गेमिंग डिसऑर्डर सेंटर में हाल ही में 72 वर्षीय महिला को भर्ती कराया गया, जो स्मार्टफोन गेमिंग की लत से पीड़ित थीं।

पहले जहां ऐसे मामलों में किशोर अधिक देखे जाते थे, अब बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

अमेरिका में भी स्थिति लगभग समान है।

10 साल पहले जहां 65 वर्ष से ऊपर के केवल 20% बुजुर्गों के पास स्मार्टफोन था, आज यह आंकड़ा 80% तक पहुंच चुका है।

वहीं, 17% बुजुर्ग अब स्मार्टवॉच का इस्तेमाल कर रहे हैं।

60% बढ़ी डिजिटल डिवाइस की पहुंच

एक दशक में बुजुर्गों के बीच डिजिटल उपकरणों की पहुंच में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

आज सिर्फ स्मार्टफोन नहीं, बल्कि स्मार्ट टीवी, टैबलेट, ई-रीडर और कंप्यूटर जैसे डिवाइस भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं।

रिपोर्ट बताती है कि ब्रिटेन में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग औसतन 3 घंटे ऑनलाइन रहते हैं।

अगर टीवी और ऑनलाइन समय को जोड़ा जाए तो बुजुर्गों का कुल स्क्रीन टाइम युवाओं से भी अधिक हो चुका है।

बढ़ता स्क्रीन टाइम, घटती एक्टिविटी

दक्षिण कोरिया में की गई एक स्टडी के अनुसार, 60 से 69 वर्ष के 15% बुजुर्ग स्मार्टफोन की लत के शिकार हैं।

जापान में इसे नींद की कमी और तनाव से जोड़ा गया है, जबकि चीन की रिपोर्ट कहती है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम से बुजुर्गों की शारीरिक गतिविधि घटती जा रही है।

इसके साथ ही, बुजुर्गों के डिवाइस अक्सर बैंक खातों से जुड़े होते हैं, जिससे ऑनलाइन ठगी और फ्रॉड का खतरा भी बढ़ गया है।

निगरानी की कमी बन रही बड़ी वजह

बच्चों के स्क्रीन टाइम पर तो माता-पिता और टीचर्स नजर रखते हैं, लेकिन बुजुर्गों की ऑनलाइन गतिविधियों पर कोई मॉनिटरिंग नहीं होती। यही वजह है कि उनकी समस्या देर से पहचानी जाती है।

कई बुजुर्ग एंग्जायटी, नींद की कमी और न्यूज ओवरलोड से होने वाले तनाव जैसी स्थितियों को पहचान ही नहीं पाते। धीरे-धीरे यह लत मानसिक थकान और सामाजिक दूरी का कारण बन जाती है।

हर लत बुरी नहीं: डिजिटल कनेक्शन के भी हैं फायदे

हालांकि, इस रिसर्च का दूसरा पहलू यह भी बताता है कि टेक्नोलॉजी ने बुजुर्गों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं।

ऑनलाइन योगा क्लास, बुक क्लब, धार्मिक सेवाओं की लाइव स्ट्रीमिंग और वीडियो कॉल्स के जरिए परिवार से संपर्क।

इन सबने बुजुर्गों को सामाजिक रूप से जुड़ने का नया रास्ता दिया है।

संतुलन ही है असली समाधान

टेक्नोलॉजी बुजुर्गों की जिंदगी में सुविधा और जुड़ाव तो लेकर आई है, लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग उन्हें धीरे-धीरे डिजिटल अकेलेपन की ओर धकेल रहा है।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि परिवार को चाहिए कि बुजुर्गों के साथ समय बिताएँ, उन्हें रीयल-लाइफ एक्टिविटीज़ में शामिल करें और स्क्रीन टाइम को सीमित करने में मदद करें, ताकि डिजिटल सुविधा, लत में न बदल जाए।

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