नेपाल में तख्तापलट को 13 दिन बीत चुके हैं, लेकिन हालात अब भी सामान्य नहीं हुए। प्रधानमंत्री सुशीला कार्की, जिन्हें ईमानदारी की छवि की वजह से जनता ने स्वीकारा था, अब उन्हीं Gen-Z प्रदर्शनकारियों की नई-नई मांगों के घेरे में हैं।
नेपाल: प्रदर्शनकारी नेताओं और अफसरों को जेल भेजने की मांग कर रहे हैं, जिससे सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
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नेताओं और अफसरों पर सख्त कार्रवाई की मांग
नेपाल: Gen-Z का नेतृत्व कर रहे सुदन गुरुंग ने साफ कहा है कि केपी शर्मा ओली सरकार के सभी मंत्री और नेताओं को तुरंत गिरफ्तार किया जाए।
उनका आरोप है कि भ्रष्टाचार ने देश को खोखला कर दिया है। गुरुंग ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “अगर करप्शन खत्म करना है तो नेताओं को सलाखों के पीछे भेजना ही होगा।” साथ ही उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्की को वह अपनी “मां” मानते हैं और उनसे उम्मीद करते हैं कि वह युवाओं की रक्षा करेंगी।
छह महीने की चेतावनी, फिर गिर सकती है सरकार
नेपाल: सुदन गुरुंग ने सरकार को 6 महीने का समय दिया है। उनका कहना है कि अगर भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो सुशीला कार्की की सरकार भी धराशायी कर दी जाएगी।
हालांकि उन्होंने माना कि प्रधानमंत्री ने एंटी करप्शन कमेटी बनाने और जांच पैनल गठित करने जैसे कदम उठाए हैं, लेकिन Gen-Z इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं है।
पूर्व जनरल की चेतावनी: बवाल बढ़ सकता है
नेपाल: नेपाल के पूर्व आर्मी जनरल बिनोज बस्नेत ने आगाह किया है कि अगर ओली जैसे ताकतवर नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई, तो यह विद्रोह का रूप ले सकता है। ओली अब भी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (UML) के अध्यक्ष हैं और उन्हें देश में बड़ा समर्थन हासिल है। ऐसे में सियासी टकराव का खतरा और बढ़ गया है।
इतिहास दोहराने की आशंका
नेपाल: एक्सपर्ट्स का मानना है कि नेपाल इस समय उसी मोड़ पर खड़ा है, जिस पर 2008 में था, जब माओवादी आंदोलन ने राजशाही को खत्म किया था।
तब से नेपाल लगातार अस्थिरता झेलता आया है—14 बार सरकार बदली और बेरोजगारी दर 20% तक पहुंच गई।
आज भी हालात ऐसे हैं कि बड़ी संख्या में युवा रोजगार की तलाश में विदेश जा रहे हैं।
बांग्लादेश से तुलना और चुनौतियाँ
नेपाल: नेपाल की तुलना इन दिनों बांग्लादेश से की जा रही है। फर्क इतना है कि नेपाल में तख्तापलट के बाद शांति है, जबकि बांग्लादेश अब भी हिंसा और प्रदर्शनों से जूझ रहा है।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सुशीला कार्की अपनी रणनीति में सफल नहीं हुईं, तो नेपाल भी लंबे समय तक अस्थिरता में फंसा रह सकता है।
आर्थिक संकट और चुनावी दबाव
नेपाल: 43 अरब डॉलर की नेपाल की अर्थव्यवस्था प्रदर्शनों से प्रभावित हो रही है। टूरिज्म और निवेश पर बुरा असर पड़ा है।
कार्की सरकार ने 5 मार्च को चुनाव कराने की घोषणा की है, लेकिन यह तारीख आगे भी बढ़ सकती है। वजह साफ है, युवाओं को राजनीतिक विकल्प तय करने का मौका देना।
नई राजनीति की ओर इशारा
नेपाल: सुदन गुरुंग और उनके साथियों ने इशारा दिया है कि नेपाल को अब नए नेताओं की जरूरत है।
ओली और देउबा जैसे पुराने चेहरे चुनाव से बाहर किए जाने की मांग उठ रही है।
गुरुंग खुद एक नई पार्टी बनाने की कोशिश में हैं और कहते हैं कि ऐसा चुनाव होना चाहिए जिसका नतीजा सब स्वीकार करें, ताकि फिर से विद्रोह की नौबत न आए।