नेपाल की राजधानी काठमांडू में इस बार 2 साल 8 महीने की आर्यतारा शाक्य को ‘जीवित देवी’ के रूप में चुना गया है।
नेपाल: दशैं पर्व के अवसर पर हुई इस परंपरा में उन्हें कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। भैंस की बलि के बाद खून का दृश्य दिखाया गया, डरावने मुखौटे और शोरगुल से घिरी बच्ची न डरी और मुस्कुराती रही। इसी साहस ने उन्हें देवी का दर्जा दिलाया।
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नेपाल की 300 साल पुरानी कुमारी परंपरा
नेपाल में बच्चियों को देवी मानने की परंपरा ‘कुमारी प्रथा’ कहलाती है। यह देवी तलेउ भवानी से जुड़ी है, जिन्हें दुर्गा का रूप माना जाता है।
माना जाता है कि 17वीं शताब्दी में मल्ल वंश के राजा जयप्रकाश मल्ल के समय से यह प्रथा चली आ रही है।
कथा के अनुसार, देवी तलेउ रोज़ राजा के साथ शतरंज खेलती थीं, लेकिन जब राजा के मन में अनुचित विचार आए तो देवी नाराज होकर महल छोड़ गईं।
तब उन्होंने आदेश दिया कि शाक्य कुल की एक कुंवारी कन्या को देवी का अवतार चुना जाए।
बेहद कठिन है चयन प्रक्रिया
नेपाल: कुमारी बनने की प्रक्रिया साधारण नहीं है। इसके लिए कई स्तर की जांच और परीक्षाएं होती हैं—
- ज्योतिषीय जांच: बच्ची की कुंडली देखकर यह तय किया जाता है कि उसमें शुभ योग हैं या नहीं।
- शारीरिक परीक्षण: बच्ची पूरी तरह स्वस्थ और सुंदर होनी चाहिए। शरीर या चेहरे पर कोई दाग-धब्बा नहीं होना चाहिए।
- साहस की परीक्षा: बच्ची को अंधेरे कमरे में ले जाकर भयानक दृश्य दिखाए जाते हैं। अगर वह डरे बिना शांत रहती है, तभी उसे देवी माना जाता है।
- अंतिम निर्णय: बौद्ध भिक्षु और हिंदू पुजारी मिलकर तय करते हैं कि कौन-सी बच्ची देवी बनेगी।
देवी बनने के बाद का जीवन
नेपाल: देवी चुनी जाने के बाद बच्ची को काठमांडू के पुराने महलनुमा घर यानी कुमारी भवन में रखा जाता है।
उसे हमेशा लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं, माथे पर तीसरी आंख बनाई जाती है। देवी घर से बाहर केवल विशेष पर्वों और धार्मिक जुलूसों में ही निकलती हैं।
हालांकि, देवी बनने के बाद सामान्य जीवन में लौटना बेहद कठिन होता है। स्कूल, खेलकूद और दोस्तों से दूर रहने के कारण बच्ची का बचपन छिन जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब कुमारी को निजी ट्यूटर से शिक्षा दिलाई जाती है, लेकिन सामान्य जीवन से उनका तालमेल बिठाना आसान नहीं होता।
अशुभ माना जाती है देवी का रोना
नेपाल: कुमारी के जीवन से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि अगर देवी बनी बच्ची लगातार रोए, तो उसे अशुभ संकेत माना जाता है।
2001 में पाटन की कुमारी चनीरा लगातार चार दिन तक रोती रहीं और उसी दौरान नेपाल के शाही परिवार की हत्या हुई थी।
इस घटना के बाद से इस मान्यता को और बल मिला।
आस्था और विवाद साथ-साथ
नेपाल की यह परंपरा आस्था और संस्कृति का प्रतीक है, लेकिन साथ ही इसे लेकर सवाल भी उठते रहे हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि यह बच्चियों के मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य जीवन को प्रभावित करती है।
बावजूद इसके, कुमारी परंपरा आज भी नेपाल की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा बनी हुई है।