Nasa: सदियों से चांद इंसानों के लिए रहस्य और रोमांच का प्रतीक रहा है। कवियों की कल्पनाओं, वैज्ञानिकों के शोध और आम जनमानस की जिज्ञासा का केंद्र रहा यह प्राकृतिक उपग्रह अब सिर्फ देखने या कल्पना करने की चीज़ नहीं रहा।
अब बात हो रही है वहाँ जाने, बसने और वहाँ से आगे मंगल की यात्रा की। और इस सपने को साकार करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम है NASA का ‘Artemis’ मिशन।
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Nasa: चांद पर वापसी क्यों?
1969 में नील आर्मस्ट्रांग जब चांद पर पहुँचे थे, तो पूरी दुनिया थम गई थी। लेकिन वह मिशन केवल “विज्ञान और तकनीक के प्रदर्शन” तक ही सीमित था। अब, जब NASA ने अपने Artemis Program की घोषणा की, तो उसका उद्देश्य और भी विशाल था—चांद पर एक स्थायी मानव उपस्थिति बनाना।
इस बार मिशन केवल “जाना और लौट आना” नहीं है। इस बार मिशन है वहाँ रहना, वहाँ रिसर्च करना, और चांद को एक “लॉन्चिंग प्लेटफॉर्म” बनाना—मंगल ग्रह और उससे आगे के मिशनों के लिए।
चांद के दक्षिणी ध्रुव की अहमियत
दक्षिणी ध्रुव पर कुछ ऐसे गहरे गड्ढे (क्रेटर) हैं जहाँ पर सूरज की रोशनी शायद ही कभी पहुँचती है। इन अंधेरे क्षेत्रों में वैज्ञानिकों को बर्फ के रूप में जमी हुई पानी की मौजूदगी के संकेत मिले हैं। यह पानी, भविष्य में चांद पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जीवन रेखा बन सकता है।
पानी सिर्फ पीने के लिए ही नहीं, बल्कि इससे ऑक्सीजन और हाइड्रोजन निकाली जा सकती है जो न सिर्फ साँस लेने के लिए ज़रूरी है बल्कि रॉकेट फ्यूल के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी भविष्य में रॉकेट ईंधन चांद पर ही बनाया जा सकेगा!
चांद पर ‘बेस कैंप’ बनाने की तैयारी
NASA केवल वहां एक झंडा लगाने नहीं जा रहा। वहां लूनर गेटवे नामक एक छोटा सा स्पेस स्टेशन चांद की कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जहाँ से मिशन का संचालन होगा। साथ ही चांद की सतह पर एक बेस कैंप बनाने की योजना है, जहाँ भविष्य में वैज्ञानिक और यात्री लंबे समय तक रह सकेंगे।
यह बेस कैंप न केवल वैज्ञानिक शोध का केंद्र होगा, बल्कि वहां से मंगल ग्रह तक इंसानों को भेजने की रणनीति पर काम किया जाएगा।
भारत की भी तैयारी
NASA के साथ-साथ भारत भी इस स्पेस रेस में है। ISRO ने हाल ही में Chandrayaan-3 मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया और चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग की। यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारत को चांद पर शोध कार्यों के मामले में बड़ी ताकतों की कतार में खड़ा करती है।
भविष्य में ISRO और NASA साथ मिलकर चांद पर वैज्ञानिक प्रयोग और मिशन लॉजिस्टिक्स में सहयोग कर सकते हैं।
टेक्नोलॉजी की बात करें तो अभी भी काफी चुनौतियाँ बाकी हैं। जैसे चांद पर तापमान -170°C से +120°C तक जा सकता है। वायुमंडल न के बराबर है, जिससे रेडिएशन का खतरा बना रहता है।
माइक्रो ग्रैविटी की वजह से शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है। इन सब समस्याओं के हल के लिए वैज्ञानिक लगातार काम कर रहे हैं बायो डोम, आर्टिफिशियल ग्रैविटी, मून डस्ट प्रोटेक्शन टेक्सटाइल जैसे कई इनोवेशन चल रहे हैं।
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