Murshidabad Violence: पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुका है। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर बर्बरता का तांडव मचाया, जिसमें धुलियान निवासी हरगोविंद दास और उनके बेटे चंदन दास की निर्मम हत्या कर दी गई। बताया गया कि दोनों सिर्फ इसलिए मारे गए क्योंकि वे मूर्तियां बनाते थे। भीड़ ने उन्हें घर से घसीटकर बाहर निकाला और पीट-पीटकर जान ले ली।
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दुकानों और घरों को बनाया गया निशाना
Murshidabad Violence: हिंसा के दौरान उपद्रवियों ने हिंदू समुदाय के दुकानों और घरों को विशेष रूप से निशाना बनाया। स्थानीय लोगों का कहना है कि मुस्लिमों की दुकानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया, जबकि हिंदुओं की दुकानों को लूटा गया, आग लगाई गई और परिवारों को धमकाकर क्षेत्र छोड़ने को मजबूर किया गया। धुलियान, सुती और शमशेरगंज जैसे इलाकों में बर्बादी का आलम था – फार्मेसियों, शॉपिंग मॉल्स और घरों को आग के हवाले कर दिया गया।
400 से अधिक हिंदुओं का पलायन
Murshidabad Violence: धुलियान से 400 से अधिक हिंदुओं ने मालदा जिले में शरण ली है। पीड़ितों का आरोप है कि उनके घरों में आग लगा दी गई, महिलाओं के साथ अभद्रता हुई, और पुरुषों को पीट-पीटकर घायल कर दिया गया। स्थानीय फार्मेसी संचालक ने कहा, “पचास साल में ऐसा तांडव कभी नहीं देखा।” चार घंटे तक चली इस हिंसा के दौरान प्रशासन कहीं नज़र नहीं आया।
कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल
Murshidabad Violence: हिंसा में अब तक 3 नागरिकों की मौत हो चुकी है और 15 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। पुलिस ने अब तक 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। प्रभावित इलाकों में बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है और इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। सुरक्षाबलों ने इन क्षेत्रों में गश्त बढ़ा दी है और प्रमुख सड़कों पर वाहनों की जांच की जा रही है।
ममता बनर्जी के बयान के बाद भड़की हिंसा?
Murshidabad Violence: इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के एक भड़काऊ बयान से जुड़ी बताई जा रही है। उन्होंने कहा था, “हमारे राज्य में वक्फ कानून लागू नहीं होगा, ये मुसलमानों के खिलाफ है।” उनके बयान के अगले ही दिन हिंसा भड़क उठी, जिससे यह संदेह गहराता है कि यह एक सुनियोजित राजनीतिक साजिश थी। आलोचकों का मानना है कि यह बयान खास समुदाय को भड़काकर वोट बैंक साधने की कोशिश थी।
विरोध या दहशतगर्दी?
Murshidabad Violence: एक बड़ा सवाल यह है कि क्या यह आंदोलन सच में वक्फ कानून के खिलाफ था या फिर एक समुदाय विशेष के खिलाफ हिंसा फैलाने की साजिश? अगर किसी कानून से असहमति है, तो उसके लिए कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए, न कि सड़कों पर खून-खराबा करना। AIMIM और अन्य मुस्लिम संगठनों ने जहां विरोध दर्ज कराया, वहीं हिंसा की खुलकर निंदा नहीं की गई।
प्रशासन की भूमिका पर उठे सवाल
Murshidabad Violence: स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि हिंसा के दौरान उन्होंने कई बार पुलिस को फोन किया, लेकिन समय पर कोई मदद नहीं मिली। कई इलाकों में पुलिस देर से पहुंची और तब तक हालात बेकाबू हो चुके थे। पीड़ितों के अनुसार, हमलावर हथियारों से लैस थे और उन्होंने खुलेआम धमकी दी कि हिंदुओं को इस इलाके में नहीं रहने दिया जाएगा।
राष्ट्रपति शासन की मांग
Murshidabad Violence: हिंसा और पलायन को देखते हुए अब कई संगठनों ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है। उनका कहना है कि ममता सरकार अल्पसंख्यकों के पक्ष में खड़ी होकर बहुसंख्यकों की सुरक्षा की अनदेखी कर रही है।
मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जब राजनीति सांप्रदायिक एजेंडे पर केंद्रित होती है, तो उसकी कीमत आम नागरिकों को चुकानी पड़ती है। वक्फ संशोधन अधिनियम पर राजनीतिक मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन उसके विरोध के नाम पर निर्दोष नागरिकों की हत्या और संपत्तियों का विनाश – यह न लोकतंत्र है, न आंदोलन, बल्कि अराजकता और मानवता के खिलाफ अपराध है।