Wednesday, March 12, 2025

Mohan Bhagwat: ‘हिंदू समाज बनेगा विश्व का गुरु, आज हिंदु एकता की जरूरत’, पढ़ें मोहन भागवत का सनातनी संदेश

Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने अपने 2 दिवसीय केरल दौरे के दौरान पथानामथिट्टा हिंदू धर्म सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हिंदू समाज विश्व का गुरु बनेगा। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को अपना जीवन चलने के लिए हिंदू एकता की आवश्यकता है, उसमें से शक्ति उत्पन्न होगी, यह बताने के लिए और कोई तर्क देने की आवश्यकता नहीं है। पूरे विश्व में एक नियम है जो समाज संगठित है उस समाज का उत्कर्ष होता है, जो समाज विभक्त है, संगठित नहीं है, उस समाज का पतन होता है, इतिहास और वर्तमान दोनों इसके साक्षी है।

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Mohan Bhagwat: शक्तिमान होना विश्व के लिए खतरा भी

RSS प्रमुख भागवत ने कहा कि शक्तिमान होने से बाकी विश्व को भी खतरा भी हो सकता है, क्योंकि शक्ति तो शक्ति है, उसको दिशा देने वाला मनुष्य होता है, उस शक्ति का उपयोग करने वाला होता है, उसकी बुद्धि कैसी है, उस पर निर्भर है।

दुष्ट लोग विद्या का उपयोग विवाद बढ़ने के लिए करते हैं, हम अपने चारों ओर देखते हैं तो ध्यान में आता है धन का उपयोग अपना मत बढ़ाने के लिए करते हैं, शक्ति का उपयोग दूसरों को पीड़ा देने के लिए करते हैं, लेकिन साधु लोगों का इससे उल्टा होता है। अच्छे लोग विद्या का उपयोग ज्ञान बढ़ाने के लिए करते हैं, धन का उपयोग दान करने के लिए करते हैं, शक्ति का उपयोग दूर्बल की रक्षा के लिए करते हैं।

हिंदू एकता विश्व के लिए उपकारी

मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू एकता विश्व के लिए उपकारी होगी, यह कैसे होगा, इसमें कोई शंका करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हिंदू एक स्वभाव का नाम है, हिंदू में एक अनेक मत, पंथ, संप्रदाय है अनेक भाषाएं हो गई, विशाल देश अपना है जिसमें हिंदू रहता है।

उन्होंने कहा कि हम हिंदू हैं, यानी हिंदू स्वभाव वाले हैं, अलग-अलग दिखते हैं, लेकिन एक ही धर्म को मानने वाले हैं, क्योंकि धर्म तो एक ही है, वही मानव धर्म है, वही सनातन धर्म है, वही हिंदू धर्म कहलाता है, उसको मानने वाले हम लोग हैं, हमारे पास सत्य है, विविधता ऊपर की बात है। एकता अंदर का सत्य है, हमारे पास करुणा की दृष्टि है।

दुनिया में कलह के कारण- स्वार्थ और भेद

भागवत ने कहा कि दुनिया के सारे कलह दो बातों के कारण है। एक है स्वार्थ, दूसरा है भेद। मनुष्य एक दूसरे को एकता  की भाव से, समदृष्टि से देखा नहीं है, वह दिखता अलग है, इसलिए जो अपने से अलग दिखता है। उसे अपने से अलग मानता है, वास्तव में यह जो विविधताएं हैं। मनुष्य की भौतिक जीवन की विविधता हो, अथवा अनेक मत संप्रदायों का दिखने वाला अलग-अलग स्वरूप हो, अलग-अलग तत्व ज्ञान हो ,अलग-अलग ग्रंथ हो ,अलग-अलग गुरु हो, ये देश, काल, स्थिति के अनुसार अलग-अलग हो जाते हैं।

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