Maths Phobia: एक दौर था जब बच्चे बड़े होकर वैज्ञानिक या इंजीनियर बनने के सपने देखते थे, लेकिन आज वही बच्चे गणित का नाम सुनते ही पीछे हटने लगते हैं।
“मैथ्स तो बहुत मुश्किल है…”, ये वाक्य अब आम हो चला है।
हाल ही में आई NCERT (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) की रिपोर्ट ने इस डर को और गहराई से उजागर किया है।
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तीसरी कक्षा के बच्चों की हालत चिंताजनक
Maths Phobia: रिपोर्ट के अनुसार, तीसरी कक्षा के अधिकतर बच्चे बुनियादी गणित जैसे जोड़, घटाव, गुणा और भाग भी ठीक से नहीं कर पा रहे हैं।
दो अंकों की संख्याओं में भी कई बच्चे गलती कर रहे हैं। कुछ को सवाल समझने में ही दिक्कत हो रही है, जिससे साफ है कि बच्चों की गणितीय भाषा पर पकड़ कमजोर होती जा रही है।
इन कारणों से बन रहा है मैथ्स डरावना
- Maths Phobia: रट्टा आधारित पढ़ाई, कॉन्सेप्ट समझाने के बजाय उत्तर याद करवाए जाते हैं, जिससे बच्चों का वास्तविक गणना से जुड़ाव नहीं बन पाता।
- शिक्षकों और पैरेंट्स के शब्दों का असर – जब बच्चे बार-बार सुनते हैं कि ‘मैथ्स आसान नहीं है’, तो उनके मन में पहले से ही डर बैठ जाता है।
- नियमित अभ्यास की कमी – गणित ऐसा विषय है, जिसे रोज़ाना प्रैक्टिस की जरूरत होती है।
- टेक्नोलॉजी पर निर्भरता – मोबाइल, कैलकुलेटर और ऐप्स ने बच्चों की मानसिक गणना की क्षमता को कमजोर कर दिया है।
इस समस्या का हल क्या है?
- Maths Phobia: बच्चों को कॉन्सेप्ट आधारित शिक्षा दी जाए, जिससे वे सवालों का हल ‘समझ’ कर करें, ना कि सिर्फ याद करें।
- गणित को खेल और कहानियों के जरिए सिखाना बच्चों की रुचि को बढ़ा सकता है।
- घर पर माता-पिता बच्चों को गणितीय गतिविधियों में शामिल करें, जैसे सब्ज़ी ख़रीदते वक़्त जोड़-घटाव करवाना।
- शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जाए कि वे बच्चों की परेशानी को समझें और उनकी गति के अनुसार उन्हें पढ़ाएं।
- अगर आज बच्चों का आत्मविश्वास गणित के सामने डगमगा रहा है, तो इसका समाधान सिर्फ क्लासरूम में नहीं, बल्कि हमारे पूरे नज़रिए में छिपा है।
हमें गणित को डर नहीं, खेल की तरह बनाना होगा, ताकि अगली पीढ़ी बिना डर के नंबरों से दोस्ती कर सके।