Maharaja Sawai Madho Singh of Jaipur: समुद्र के रास्ते 8 हजार लीटर गंगाजल को चांदी के विशालकाय कलशों में भरकर लंदन ले जाया गया। ये परंपरा लंदन में कुछ समय तक क्यों चली आइये आपको इसके पीछे की वजह बताते हैं।
प्रयागराज में 144 बाद कुम्भ की शुरुआत हो चुकी है। इस मेले में देश-विदेश से लोग हिस्सा लेने पहुंच रहे हैं। श्रद्धालु संगम तट पोर अपनी श्रद्धा की डुबकी लगा रहे हैं। कुंभ में रोजाना लाखों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं और पवित्र गंगा के स्पर्श से अपने पापों को धो रहे हैं। हमारे हिन्दू पुराणों में कुम्भ का बहुत हटवा माना गया है। साथ ही गंगाजल को भी पुराणों में पवित्रता का प्रतीक माना है।
लगभग सभी घरों में गंगाजल अवश्य मिलता है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस गंगाजल से काफी पुराना किस्सा जुड़ा है, जिसके बारे में कम ही लोगों को पता है। क्या पता है अग्रेजों के जामने में समुद्र के रास्ते से गंगाजल को बड़े चांदी के कलशों में भरके लंदन ले जाया जाता था। आइये आपको आज इसके पीछे की वजह बताते हैं।
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Maharaja Sawai Madho Singh of Jaipur: अटूट भक्ति रही वजह
Maharaja Sawai Madho Singh of Jaipur: राजा महाराजाओं के दौर में भी गंगाजल को इतना ही पवित्र माना जाता था। गंगाजल के स्पर्श मात्रा से ही हमारे सारे पाप धुल जाते हैं, ऐसा हमारे पुराणों में माना गया है। और यही वजह है कि चांदी के कलशों में हजारों लीटर गंगाजल लंदन भेजा गया जहां इससे राजा ने अपनी शुद्धिकरण किया। ये कहानी है महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय की। ये गंगा के सच्चे भक्त थे और उन्होनें मरते दम तक भी गंगाजल को अपने से अलग नहीं किया।
ब्रिटेन से राजतिलक का सवाई माधोसिंह को आया निमंत्रण
दरअसल ब्रिटेन के होने वाले किंग ने जब जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय को अपने राजतिलक का निमंत्रण दिया तो महाराजा के सामने एक बड़ी दुविधा खड़ी हो गयी। उस समय हिन्दू धर्म में समुद्र पार करके दूसरे देश जाना अशुभ माना जाता था। पर क्यूंकि निमंत्रण भी ब्रिटेन के राजा का था, तो ऐसे जाने से मन भी नहीं किया जा सकता था। और वो स्नान भी इस ही जल से करेंगे।
इसके बाद ओलंपिया नाम का एक जहाज राजा के लिए के किराये पर लिया गया और उसमें चांदी के विशाल कलशों में लहभग 8 हजार लीटर जल भरा गया। इसके बाद ओलंपिया नाम के इस जहाज लाखों रुपये कितया लगाया और उसमें चांदी के विशाल कलशों में 8 हजार लीटर गंगाजल भरा गया। इसमें महाराज के साथ कई पुरोहित और सेवक भी उपस्थित थे।
जैसे ही महाराजा लंदन पहुंचे, उनका जोरदार स्वागत हुआ और उन्हें महल में रुकवाया गया। इस दौरान जब भी कोई अंग्रेज उनसे हाथ मिलाता था तो महाराजा गंगाजल से ही हाथ धोते थे। वो इस ही गंगाजल से अपना खाना बनाते थे। और फिर धीरे-धीरे लंदन के कुछ जगहों पर यही परंपरा बन गयी और कई से लोग लंदन में गंगाजल का इस्तेमाल करने लगे।
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