Thursday, January 30, 2025

Mahakumbh: कुंभ में क्यों मच गई भगदड़? सन्तों ने बचा लिया भक्तों को

Mahakumbh: 5 दिन कुम्भक्षेत्र में रहकर सम्पूर्ण अनुभव करने के बाद मैंने 22 जनवरी को मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी से निवेदन किया था कि VIP मूवमेंट के कारण जो अनावश्यक अव्यवस्था फैल रही है उसपर कदम उठाएं। परन्तु सम्भवतः योगी जी से भीतरघात कुछ अंदरूनी लोगों ने करके महाकुम्भ मेले पर सवाल लगाने की कोशिश कर दी है।

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2019 के गत कुंभ मेले की समाप्ति के अवसर पर पहले हो चुके ज्ञात कुंभ मेलों के इतिहास पर अध्ययन करके मैंने लेख लिखा था, “200 साल बाद पहला कुम्भ मेला, जिसमें नहीं हुई भगदड़ से एक भी मौत।” परन्तु दुर्भाग्यवश इस बार ऐसा नहीं हो सका है।

2019 में 200 साल बाद पहला कुम्भ मेला, जिसमें नहीं हुई भगदड़ से एक भी मौत

1820 के हरिद्वार कुंभ मेले में ज्ञात स्रोतों के अनुसार 450 मौतें हुई थीं। 1840 के प्रयाग कुंभ में 50 मौतें हुईं। 1906 के प्रयाग कुंभ में 50 मौतें हुईं। 1954 के प्रयाग कुंभ की मौनी अमावस्या को लगभग 800 से अधिक मौतें हुई थीं, पर कांग्रेस सरकार ने केवल कुछ भिखारियों के मरने की बात कही थी। हादसे की तस्वीरें खींचने वाले अकेले फोटोपत्रकार एनएन मुखर्जी ने संस्मरण में बताया था कि दुर्घटना के अगले दिन अख़बारों में शवों की तस्वीरें देखकर यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंदबल्लभ पंत ने दाँत पीसते हुआ कहा था, “कौन है ये हराम*जादा फ़ोटोग्राफ़र?”

1986 के हरिद्वार कुंभ में 600 मौतें हुईं। इसके बाद भी 2003 के नासिक कुंभ, 2010 के हरिद्वार कुंभ, 2013 के प्रयाग कुंभ, 2016 के उज्जैन कुंभ में दुर्घटनाओं में मौतें होती रहीं। पर 2019 का प्रयाग कुंभ अकेला ऐसा कुंभ था जिसमें 200 सालों में एक भी मौत दुर्घटना से नहीं हुई, यह गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त योगी आदित्यनाथ का ही प्रताप था। पर इस साल 2025 के प्रयाग कुंभ में इसे पूरी तरह दोहराया नहीं जा सका है।

इसकी नींव उसी दिन डल गयी थी जब सार्वजनिक मार्गों को VIP मूवमेंट के लिए बन्द किया जाने लगा था। पहले होने वाली ज्ञात व्यवस्था के अनुसार पहले गंगा पार के अरैल घाट से VIP यों को नाव द्वारा संगम के बीच लाकर स्नान कराया जाता था, पर इस बार गंगा के इस पार के सार्वजनिक मार्गों का भी उपयोग लिया जाने लगा। लगभग 18 जनवरी से ही प्रतिदिन किसी न किसी VIP मूवमेंट से पूरे मेले की व्यवस्था चरमरा जाती थीं। इसका विस्तृत व आँखों देखा विवरण मैं अपनी 22 जनवरी की पोस्ट में लिख चुका हूँ। कुंभ क्षेत्र में प्रवास करने वाले सभी श्रद्धालुओं ने मेरी बातों की पुष्टि की थी।

यहाँ नाम लेना भी उचित होगा कि केन्द्रीय मंत्री के स्नान, अन्य नेताओं के आगमन, कैबिनेट के स्नान, अखिलेश यादव के स्नान के दिन कुंभक्षेत्र की व्यवस्थाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थीं। 29 जनवरी के स्नान के मद्देनजर शनिवार 25 जनवरी से ही कुंभक्षेत्र में भीड़ का दबाव बहुत ही तीव्र हो चुका था। अनेक पंडालों में बड़ी बड़ी बैठकें, सम्मेलन आदि भी 25 से 28 तक होने थे।

25 से बढ़ी हुई भीड़ 27 तक चरम पर पहुंच रही थी। तब भी आखिर किसने गृहमंत्री के शाही स्नान के लिए 27 जनवरी का दिन चुना होगा यह समझ से बाहर है। जहाँ उन्हें शांति से स्नान कराना था, वहीं उनके VIP ट्रीटमेंट का जाल बिछा दिया गया। ऐसी स्थिति में आम तीर्थयात्रियों के लिए प्रमुख घाट बन्द कर दिया जाता है, इसके साथ ही लेटे हनुमानजी, अक्षयवट व सरस्वती कूप भी दर्शनार्थियों के लिए बन्द कर दिया गया था, जो फोटोज में भी साफ देखा जा सकता है व कोई भी इसकी पुष्टि कर सकता है। इतने पीक समय में शाही स्नान का इतना लंबा चौड़ा कार्यक्रम समझ से परे है। क्या जानबूझकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मेहनत चौपट करने के लिए ऐसी अव्यवहारिक प्लानिंग बनाई जा रही हैं?

इसी तरह स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जब लेटे हनुमानजी गए तो सभी के लिए दर्शन बन्द कर दिया गया, जबकि उस समय लाखों लोग बाहर जिगजैग लाइन में लगे थे। साथ ही मंदिर के अंदर बैठने के लिए भारी चाँदी का सिंहासन भी ले जाया गया, आखिर यह कहाँ लिखा है कि चाँदी के सिंहासन का प्रदर्शन किए बिना लेटे हनुमानजी का दर्शन न होगा, देखने में वह 50-100 किलो का लगता है। लग रहा था आज हनुमानजी इनके दर्शन करके धन्य हो गए। केवल रील बनाकर फेसबुक पर डालने के लिए चाँदी के सिंहासन, नकली समर्थक फौज, फोटोग्राफरों की फौज का ढोंग किया जा रहा है। इस तरह की VIP गिरी से 18 जनवरी से ही श्रद्धालुओं को परेशान किया जा रहा था।

जानकारों के अनुसार 27 जनवरी के VIP मूवमेंट के समय जो लाखों लोग स्नान करके मेला से बाहर निकल सकते थे उनका समय नष्ट हुआ और उसमें से बहुतों को रुकना पड़ गया। एक बड़ी विचित्र बात जो प्रत्यक्षदर्शियों से निकलकर सामने आई है वह यह कि अज्ञात कारणों से 28 जनवरी को अधिकांश पांटून पुल संचालित नहीं किए जा रहे थे व संगम नोज के लिए लगभग जाने नहीं दिया जा रहा था, जिससे पीछे की ओर दबाव अत्यधिक बढ़ा हुआ था। जबकि 28 को कोई भी VIP मूवमेंट नहीं था, पर किसी गम्भीर कारणवश ऐसी व्यवस्था बनाई गई थी, जिस कारण पूरे मेलाक्षेत्र में अमृतस्नान के तहत सुरक्षा भी कई गुना बढ़ा दी गयी थी। यही कारण था कि कुछ लोग पांटून पुल के साइड से सीधे नदी में उतरने लगे थे। और मिल रही जानकारी के अनुसार जो लोग संगम पर थे वे सुबह स्नान करने के लिए वहीं समान रखकर लेटने लगे, व चलने वाली भीड़ के बीच आ गए। पर बात केवल इतनी सी नहीं है, घटना के स्पष्ट कारणों और सन्दर्भ की जानकारी मिलनी शेष है।

सुरक्षाकर्मियों की बहुतायत और प्रशासन की तीव्र कार्यवाही के कारण भगदड़ पर बहुत ही जल्दी कुछ ही मिनटों में काबू पा लिया गया, जिससे जनहानि भीषण रूप नहीं ले पाई, व जिसे हल्की सी भी चोट आई है उन सभी घायलों को प्रशासन ने तुरंत ही अस्पताल भेज दिया, व मौके पर ही चिकित्सकों की टीम भी आ गयी थी। मेला पुलिस को पहले से ही ट्रेनिंग दी गयी थी इसलिए वे भगदड़ को बहुत हद तक सीमित कर देने में कामयाब रहे, अन्यथा यह दुर्घटना कितना विशाल रूप ले सकती थी यह कोई भी समझ सकता है। एबीपी न्यूज की अब तक की जानकारी के अनुसार करीब 10 श्रद्धालुओं का निधन हो गया है, माँ गंगा उन्हें चरण शरण प्रदान करें।

इसके बाद प्रशासन और अखाड़ा परिषद ने त्वरित निर्णय लेते हुए अमृत स्नान को टाल दिया व अत्यंत संक्षिप्त रूप दे दिया। वरना ब्रह्ममुहूर्त में ही नागा साधुओं का शाही स्नान शुरू हो जाता और एक बार शुरू होने के बाद कोई भी उसे रोक नहीं सकता था। क्योंकि हज़ारों नागा साधुओं की फौज बड़ी फुर्ती से भागती हुई डुबकी लगाती है पर ऐसा होने से व्यवस्था और मुश्किल हो जाती। ब्रह्ममुहूर्त से पहले ही नागा साधुओं से लेकर समस्त अखाड़ों में त्वरित सूचना भिजवा दी गयी थी अन्यथा शाही स्नान बहुत बड़े बड़े रथों पर और शोभायात्राओं के रूप में होता है, जिसे परमपूज्य सन्तों ने तुरंत ही स्थगित कर दिया। जबकि अखाड़ों व सन्तों के लिए मौनी अमावस्या की यह अमृत यात्रा ही सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। पर इसको उन्होंने हिन्दू हित में तुरन्त ही ठुकरा दिया।

सबसे बड़े अखाड़े के जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री अवधेशानन्द गिरिजी महाराज ने भी अपने अखाड़े के लाखों साधुओं को रात्रि में ही सन्देश भिजवाकर रोकवा दिया और भव्य शोभायात्रा व शाही स्नान की सारी विधि एकदम संक्षिप्त कर दी। क्योंकि सबसे पहले सुबह के स्नान महानिर्वाणी, निरंजनी और पंचदशनाम जूना इन तीनों अखाड़ों के ही थे, जिनके साधुओं की फौज को रोक पाना कोई आसान काम नहीं था। उन्होंने सुबह के समय केवल 8-10 साधुओं को साथ लेकर संगम से हटकर गंगा घाट पर पारंपरिक विधि विधान से स्नान किया और दिवंगत श्रद्धालुओं की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

महाकुम्भ में अमृत स्नान- #प्रयागराज #महाकुम्भ

Posted by Swami Ramdev on Tuesday, January 28, 2025

रातों रात प्रशासन और सन्तों ने जो महानतम कार्य किया है वह किसी को भी नहीं दिख रहा है पर उसकी वजह से करोड़ों श्रद्धालु निर्भय होकर अब डुबकी लगा रहे हैं।

यह भी पढ़े : Mahakumbh Stampede: 71 साल पहले महाकुंभ में मची थी भगदड़, 800 लोगों की हुई थी मौत

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