Lama Lobzang: रेवरेंड लामा लोबजांग का जन्म 1 जनवरी 1931 को लेह के शेयनेम गांव में कौ परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनमें गहरी आध्यात्मिक चेतना थी।
उन्होंने संकर गोम्पा में गेलुगपा बौद्ध परंपरा के अंतर्गत भिक्षु जीवन को अपनाया और reverend लामा लोबजांग त्सोंदुज से दीक्षा ली। 1951 से 1962 तक वे सारनाथ में शिक्षा प्राप्त करते रहे और इसी दौरान तिब्बत की यात्रा कर उन्हें भिक्षु के रूप में औपचारिक रूप से दीक्षा मिली।
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Lama Lobzang: शिक्षा और समाज सेवा की पहल
लामा लोबजांग ने आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता को समझते हुए लद्दाख के बच्चों के लिए सारनाथ और दिल्ली के लद्दाख इंस्टीट्यूट ऑफ हायर स्टडीज (बाद में विशेष केंद्रीय विद्यालय) जैसे संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध कराए।
1961-62 में उन्हें कुशोक बाकुला रिनपोछे का निजी सचिव नियुक्त किया गया। इसी दौरान, उन्होंने दिल्ली में ‘लद्दाख बोध विहार’ की स्थापना के लिए सरकार से अनुमति प्राप्त की, जो शिक्षा और चिकित्सा सेवा का केंद्र बना। वे इस विहार के सचिव रहे और दो दशकों तक लद्दाखी समुदाय की सेवा करते रहे।
सरकारी पदों और राष्ट्रीय योगदान
1980 से 1983 तक वे अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों की अल्पसंख्यक पैनल के सदस्य रहे। इसके बाद 1984 से 1992 तक वे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के गैर-संवैधानिक सदस्य और 1995 से 2001 तक संवैधानिक सदस्य रहे।
2004 से 2007 तक वे भारत सरकार के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य रहे। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध महासंघ (IBC) के संस्थापक और महासचिव के रूप में वैश्विक बौद्ध संगठनों को एकजुट करने में निर्णायक भूमिका निभाई।
अशोक मिशन और चिकित्सा सेवा
1980 के दशक में आशोक मिशन के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने दिल्ली में एक चिकित्सा केंद्र की स्थापना की, जिससे AIIMS और सफदरजंग अस्पतालों से लद्दाख के मरीजों को जोड़ा गया।
इस मिशन के अंतर्गत सैकड़ों मरीजों और उनके परिजनों को ठहरने और इलाज की सुविधा दी गई। 2024 के चिकित्सा शिविर में, आशोक मिशन द्वारा 5500 मरीजों की जांच की गई। लद्दाख के लोग उन्हें स्नेहपूर्वक “मेय ले” कहकर पुकारते थे।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार
लामा लोबजांग को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले:
- 2013 में वियतनाम के बौद्ध विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट
- 2014 में वियतनाम व थाईलैंड की बौद्ध संस्थाओं से उत्कृष्ट नेतृत्व सम्मान
- 2015 में ऑल लद्दाख गोम्पा एसोसिएशन द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
- 2016 में थाईलैंड की सुप्रीम संघ परिषद द्वारा बौद्ध धर्म में योगदान के लिए सम्मान
- 2019 में बांग्लादेश में अतीश दीपंकर पीस गोल्ड अवार्ड
- 2024 में मंगोलिया की एशियन बौद्ध कॉन्फ्रेंस फॉर पीस द्वारा मेडल ऑफ ऑनर (भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया)
- LAHDC, यूटी लद्दाख द्वारा भी लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान प्राप्त हुआ।
निर्मल अंत और स्थायी विरासत
रेवरेंड लामा लोबजांग का 16 मार्च 2024 को निधन हो गया। उन्होंने अपने जीवन को मानवता, शिक्षा, चिकित्सा सेवा और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। उनका कार्य और विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।