एक समय ऐसा था जब दावा किया गया कि रोहिणी आचार्य ने लालू प्रसाद यादव को किडनी दान किया है। लेकिन आरोप है कि असलियत कुछ और थी।
कहा गया कि लालू ने एक नौकर को पैसे देकर उसकी किडनी ट्रांसप्लांट कराई। इस दावे को आधार देने के लिए कई तर्क पेश किए गए।
सबसे बड़ा तर्क यह दिया गया कि अगर ब्लड रिलेटिव किडनी देता, तो ऑपरेशन भारत में ही संभव था। यहां देश के डॉक्टर सिंगापुर से कमतर नहीं हैं।
लेकिन भारत में कानून के अनुसार केवल रक्त संबंधियों के बीच ही अंग प्रत्यारोपण संभव है और इसके लिए कानूनी दस्तावेजों व सबूतों की जरूरत होती है।
वहीं सिंगापुर में ऐसा कोई कानून नहीं है। वहां किसी भी इच्छुक व्यक्ति से किडनी लगवाई जा सकती है।
अमर सिंह ने भी अपनी किडनी वहीं प्रत्यारोपित कराई थी और खुलकर कहा था कि यह उन्होंने श्रीलंका के एक व्यक्ति से खरीदी थी। इस तुलना के जरिए लालू मामले पर संदेह गहराया।
रोहिणी को महान बनाने का प्रचार और मेडिकल प्रक्रियाओं की हकीकत
लालू परिवार ने यह प्रचारित किया कि बेटी रोहिणी आचार्य ने पिता को किडनी देकर त्याग और सेवा की मिसाल कायम की।
लेकिन चिकित्सकीय दृष्टि से देखा जाए तो किडनी दान देने वाले का ऑपरेशन कहीं ज्यादा बड़ा होता है। शरीर को एक किडनी पर ढलने में लंबा समय लगता है।
किडनी डोनर के घाव देर से भरते हैं और शरीर बार-बार ऑटो इम्यून प्रतिक्रिया देता है, मानो उस पर वायरस ने हमला किया हो।
इसी कारण भारी मात्रा में एंटीबायोटिक्स और इम्यूनिटी घटाने वाली दवाएं दी जाती हैं। यही कारण है कि डोनर और रिसीवर दोनों को संक्रमण से बचाने के लिए महीनों मास्क पहनना पड़ता है।
इम्यूनिटी को घटाने का कारण यह होता है कि रिसीवर का शरीर बाहरी किडनी को दुश्मन मानकर उससे लड़ाई करता है।
वहीं डोनर का शरीर भी किडनी निकलने के बाद प्रतिक्रिया करता है। यही वजह है कि दोनों को सालभर तक बेहद सतर्क रहना पड़ता है।
रोहिणी की तस्वीरों पर संदेह और विरोधियों का बदला सुर
इन तमाम प्रक्रियाओं के बावजूद रोहिणी आचार्य की तस्वीरें सामने आईं, जिनमें वह किडनी दान के तुरंत बाद सेल्फी लेती और अस्पताल में टहलती दिखीं।
उन्होंने न कभी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट दिखाई और न ही किडनी निकालने के ऑपरेशन का कोई निशान मीडिया में साझा किया। यहां तक कि उन्हें मास्क लगाते भी नहीं देखा गया।
अब वही लोग, जो पहले लालू परिवार के बचाव में हमलावर रहते थे, आज लिख रहे हैं कि रोहिणी ने किडनी दान नहीं किया था।
उनका कहना है कि यह झूठी अफवाह फैलाई गई थी ताकि उन्हें महान दिखाया जा सके। इस बदलाव ने चर्चा को और गहरा दिया है।
परिवारवाद वाली पार्टियों में बिखराव की दस्तक
यह मामला केवल एक परिवार तक सीमित नहीं है। आरोप है कि जिन दलों में नेता-कार्यकर्ता का रिश्ता नहीं, बल्कि मालिक-नौकर की संस्कृति चलती है।
वहां ऐसे ही बिखराव की कहानी लिखी जाती है। लालू परिवार और उनकी पार्टी पर लगे आरोप इसी प्रवृत्ति का उदाहरण माने जा रहे हैं।

