Thursday, December 4, 2025

धर्म ध्वज: सत्य की सदा जय का आश्वासन है कोविदार ध्वज

सत्यनिष्ठा से युक्त प्रतीक्षाएं पूर्ण होती हैं। सदुदेश्य किए गए उचित प्रयत्न विफल नहीं होते। पुण्यों का फल मनुष्य को प्राप्तव्य की प्राप्ति करा ही देता है।

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श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर पर ध्वजारोहण सनातन की इसी विश्वास-परंपरा का मानो पुण्य पर्व है। शताब्दियों का अनुताप तथा पीढ़ियों का सन्ताप दूर हुआ है।

भारतीय जन के मन में बसा मन्दिर अब अयोध्या धाम की पावन भूमि पर प्रत्यक्ष है। इसके निर्माण और उससे जुड़े प्रश्नों तथा आक्षेपों का समाधान हो गया है।

पूर्णता को प्राप्त हुए भव्य मन्दिर पर कोविदार ध्वज शोभा भुवनमोहिनी होगी। भारतीय परंपरा में ध्वज अस्मिता और प्रतिज्ञा के व्यन्जक होते हैं।

इनके माध्यम से ध्वजी अर्थात् ध्वज धारण करने वाले का स्वरूप व्यक्त होता है। देवताओं के संबंध में प्रायः उनके वाहनों को ही उनके ध्वज-चिह्न के ख्य में देख जाता है।

जैसे भगवान् शिव का वाहन वृषभ है और वे वृषध्वज कहलाते हैं, इसी प्रकार कुमार कार्तिकेय का वाहन मबूर है और वे मयूरध्वज कहलाते हैं।

ध्वज-चिह्नों में, जिसका ध्वज होता है उसके स्वभाव-स्वरूप के संकेत निहित होते हैं। प्रायः विश्व भर में सभी राष्ट्रों के अपने ध्वज हैं और उनकी अपनी व्याख्यायें भी हैं।

ध्वज के प्रकार, उनमें विद्यमान चिह्न एवं रंग आदि के भी महत्वपूर्ण सन्दर्भहोते हैं। यह ध्वज रघुवंश का है, यह ध्वज रामराज्य का है और यह ध्वज भगवान् श्रीराम का है।

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धर्म ध्वज: सत्य की सदा जय का आश्वासन है कोविदार ध्वज 8

सम्पूर्ण कचनार (कोविदार) वृक्ष से युक्त ध्वज महाराज दशरथ के रथ की पहचान है। प्रभु श्रीराम बाल्यकाल से इस रथ में शोभित होते रहे हैं, इसलिए सहज ही उनके रथ को कोविदार-ध्वज कहा जाता है- शैशवे रघुनाथस्तु सवपितृस्यन्दनस्थितः। अतः सोप्यस्य रामस्य कोविदारध्वजः स्मृतः ॥

जैसे कोविदार पृथ्वी का भेदन करके उत्पन्न होने के गुण से अपना नाम प्राप्त करता है वैसे ही सूर्य अपनी जीवनदायिनी किरणों के बल से धरती के गर्भ से सुप्त बीजों को अंकुरित कर देता है। यह सादृश्य कोविदार को सूर्यवंश की ध्वजा में अर्थवान् बनाता है।

पवित्र वृक्षों की श्रेणी में कोविदार को कल्पवृक्ष के समान कहा गया है- ‘मन्दारः कोविदारश्च पारिजातश्च नामभिः। स वृक्षो ज्ञायते दिव्यो बस्यैतत् कुसुमोत्तमम्।”

श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर पर कोविदार ध्वज में सूर्य एवं प्रणव भी दृश्य हैं। इस दृष्टि से विचार करने पर भगवान् श्रीराम का लोकोत्तर चरित्र हमारे सामने आता है।

श्रीराम की चरित्रगत व्याप्ति एवं महानता को कोई एक चिह्न व्यक्त कर सकता है, ऐसा कहना कठिन है। उनके विराट् व्यक्तित्व एवं उनकी प्रभुता को व्यक्त करने वाले उनके ध्वज भी चार प्रकार के कहे गये हैं।

आनन्द रामायण में इसकी सुंदर चर्चा करते हुए भगवान् श्रीरामभद्र के चार ध्वजों का वर्ण प्राप्त होता है। श्रीरघुनंदन के रथ चार प्रकार के हैं, तदनुरूप उनके ध्वज भी चार हैं। चतुषु स्यन्दनेष्वेवं चत्वारः कीर्त्तिताः ध्वजाः।

बाल्यकाल से अपने पिता चक्रवर्ती श्रीदशरथ जी महाराज के रथ में बैठने वाले श्रीरामभद्र का पैतृक ध्वज ‘कोविदारध्वज’ है। इसके सारथि सुमन्त्र जी होते हैं और यह ध्वज शुक्ल वर्ण होता है।

यही ध्वज है जिसे अयोध्या से आता हुआ देखकर, चित्रकूट में आशंकित हुए श्रीलक्ष्मण जी ने कहा है कि आज भरत से युद्ध करके यह कोविदार ध्वज रथ हमारे अधिकार में आ जायेगा अपि नौ वशमागच्छेत् कोविदारध्वजो रणे।’

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श्रीराममंदिर पर भगवा ध्वज का आरोहण

कोविदारध्वज के अतिरिक्त बाणध्वज से युक्त रथ में बैठ कर एक ही बाण से ताड़का का वध करने वाले श्रीराम एक बाणध्वज भी है।

श्रीराम-रावण युद्ध में इन्द्र के रथ का वज्रध्वज काट दिए जाने पर प्रभु श्रीराम ने श्रीहनुमान् जी को पताका में विराजमान किया और इस प्रकार वे कपिध्वज कहलाए।

इसी युद्ध में जब इन्द्र के सारधि मातलि मूर्च्छित हो गए तो प्रभु ने गरुड जी को रथ में बिठाया और उनका रथ गरुड़ध्वज हुआ।

श्रीराम के ध्वज का विवरण करते हुए कोविदारध्वज, बाणध्वज, कपिध्वज तथा गरुड़ध्वज इन चारों का उल्लेख प्राप्त होता है।

कोविदार-ध्वज रथ में शुक्ल वर्ण की पताका में कोविदार वृक्ष का चिह्न होता और इसके सारथि सुमन्त्र होते हैं। इस रथ पर आरूढ प्रभु ‘राम’ कहे जाते हैं।

बाणध्वज रथ में नीले वर्ण की पताका में बाण का चिह्न होता है. इसके सारथि चित्ररथ होते हैं और इस रथ पर प्रभु का नाम ‘श्रीराम’ होता है।

कपिध्वज रथ में हरित वर्ण की पताका में हनुमान् जी विराजते हैं, इसके सारधि विजय होते हैं और प्रभु का नाम ‘राघवेन्द्र’ होता है।

गरुडध्वज रथ में पीत वर्ण की पताका में गरुड़ चिह्न होता है, इसमें सारथि दारुक होते हैं और प्रभु का नाम ‘ ‘भूपेन्द्र’ होता है।

श्रीराम का ध्वज एक ही नहीं है अतो रामध्वजस्यैकमेव चिह्न न विद्यते। श्रीराम के अद्वितीय चरित्र, उनके शील सदाचार, पराक्रम तथा औदार्य को व्यक्त करने में कोई एक चिह्न पर्याप्त नहीं, उनके गुणों का स्मरण कराने में कोई एक नाम पर्याप्त नहीं, वे अप्रतिम एवं अनिर्वचनीय हैं।

आज जब इतिहास ने करवट बदल ली है और बहुसंख्य भारतीय जन तथा विश्वभर में बसे सनातनधर्मी समाज को अपने इतिहास-पुराण का उत्सव मनाने का अवसर मिला है, तब श्रीराम के ध्वजारोहण के माध्यम से श्रीराम की प्रभुता विभूति का स्मरण विशेष प्रासंगिक है।

श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के शिखर पर, उच्चाकाश में लहराता यह केसरिया ध्वज मानौ श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन में आत्मार्पण करने वालों को उनके पुण्यफल के प्रकट होने की बधाई दे रहा है।

यह ध्वजारोहण एक मन्दिर के निर्माण भर की पूर्णता का द्योतक नहीं है, यह वस्तुतः सनातन आस्था की गहरी रिक्तियों में से एक का भर जाना है। यह आश्वासन है सत्य की सदा जय का।

यह प्राचीन भारत के आधुनिक विश्व में उद्‌भासित होते रूप की एक वानगी है। इस ध्वजारोहण समारोह में देश के प्रधानमंत्री की उपस्थिति हमें दिशाओं में देखने का अवसर देती है।

कुछ दिन पूर्व बिहार की एक जनसभा में प्रधानमंत्री ने रघुकुल की वचनबद्धता का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा था कि’ प्रभु श्रीराम की रीति ही अब नए भारत की नीति है।’

श्रीरामजन्मभूमि मंदिर पर ध्वजारोहण करने की सहमति प्रदान कर प्रधानमंत्री ने न केवल धार्मिक आस्था अपितु राजनीति की अपनी लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता को भी चरितार्थ किया है।

यह ध्वजारोहण नये पन में उभरती हुई अयोध्या को इसकी पौराणिकता से, आधुनिकता में उभरते भारत को इसकी पारंपरिकता से तथा वैश्विकता की ओर बढ़ती पीढ़ी को मौलिक भारतीयता से संबद्ध करने में अपनी सशक्त भूमिका निभाएगा ऐसी आशा हमें रखनी चाहिए।

इस ध्वजा को स्थिर करने में जो कृतकार्य हुए है, उनके कृतज्ञ स्मरण के साथ, अखंड भारतवर्ष की एकात्मता के प्रमाण-पुरुष भगवान् श्रीराम की ध्वजा भारत की अस्मिता को, इसकी प्रभुता को तथा इसकी आत्मवत्ता को समुन्नत बनायेगी, इस विश्वास के साथ ध्वजारोहण-समारोह की बधाइयां।

– आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण जी महाराज महंत श्रीसिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास अयोध्या धाम
rasikopasna@gmail.com

Mudit
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लेखक 'भारतीय ज्ञान परंपरा' के अध्येता हैं और 9 वर्षों से भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा एवं राजनीति पर गंभीर लेखन कर रहे हैं।
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