Thursday, December 4, 2025

करणी माता का इतिहास- डोकरी मां का रहस्य, देशनोक मंदिर और भक्तियों की अनोखी परंपराएं

करणी माता का इतिहास: राजस्थान की पवित्र भूमि पर कई संत, वीर और देवियां उत्पन्न हुईं।

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उन्हीं में से एक अद्भुत शक्ति हैं। करणी माता, जिन्हें लोग प्रेम से डोकरी मां भी कहते हैं। उनका जीवन साधना, चमत्कार और लोक-आस्था का ऐसा मेल है जो आज भी इतिहास में स्वर्णाक्षरों से दर्ज है।

करणी माता का इतिहास: करणी माता का जन्म- एक साधारण बालिका में अद्भुत दिव्यता

बचपन से ही उनके स्वभाव में गहराई, करुणा और आध्यात्मिक शांति दिखाई देती थी।


वह कई बार जंगलों में ध्यान करतीं, जीव-जंतुओं से प्रेम करतीं और लोगों के दुख हल करती थीं।


धीरे-धीरे सभी ने समझ लिया कि यह कोई साधारण बालिका नहीं, बल्कि ईश्वरीय शक्ति का अवतार है।

तपस्विनी का जीवन- ब्रह्मचर्य, साधना और सिद्धियों का मार्ग

करणी माता ने युवा अवस्था में ही ब्रह्मचर्य, त्याग और निर्मल सेवा का मार्ग चुना।
लोककथाओं में वर्णन है कि

उनके पास अद्भुत भविष्य दृष्टि थी
वे दुःख, रोग और चिंता को दूर करने में सक्षम थीं
उनकी वाणी सत्य होती थी
उनके आशीर्वाद से लोग संकटों से बच जाते थे।
उनका पूरा जीवन धर्म, सत्य और सेवा को समर्पित था।

करणी माता को “डोकरी” क्यों कहते हैं?

डोकरी शब्द राजस्थान में अत्यंत सम्मानजनक है। इसका अर्थ है- बूढ़ी, ज्ञानवान, सिद्ध, तपस्विनी और अनुभवी मातृशक्ति। करणी माता को यह नाम तीन कारणों से मिला-

  1. दीर्घ आयु

कथाओं के अनुसार वे लगभग 150 वर्ष तक जीवित रहीं।
इतनी लंबी आयु के कारण लोग उन्हें “बुजुर्ग मां” यानी “डोकरी” कहने लगे।

  1. दादी जैसा स्नेह

उन्होंने पूरे क्षेत्र की रक्षा की, मार्गदर्शन किया और लोगों को सहारा दिया।
इसलिए भक्त उन्हें प्रेम से “दादी डोकरी” कहते थे।

  1. तपस्या और सिद्धि

उनकी साधना इतनी प्रबल थी कि लोग उन्हें जीवित देवी मानते थे।
इसलिए “डोकरी माँ” नाम सम्मान का प्रतीक बन गया।

देशनोक का चमत्कारी मंदिर- जहां चूहे बने माता के काबा

बीकानेर के देशनोक में स्थित करणी माता का मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
यह “चूहों का मंदिर” कहलाता है क्योंकि यहां लगभग 25,000 से अधिक चूहे रहते हैं, जिन्हें काबा कहा जाता है।

क्यों हैं ये चूहे पवित्र?

मान्यता है कि करणी माता के कुल के लोग माता के वरदान से मृत्यु के बाद चूहे रूप में यहां निवास करते हैं।
यहां चूहों का प्रसाद खाना शुभ माना जाता है।

आइए जानते है मंदिर की विशेषताएं

सफेद चूहा दिख जाए तो इसे विशेष सौभाग्य माना जाता है

चूहों को दूध, मिठाई और प्रसाद चढ़ाया जाता है

मंदिर की ऊर्जा अत्यंत शांत और सकारात्मक मानी जाती है

राजपूताना के किलों की रक्षा- करणी माता का ऐतिहासिक योगदान

करणी माता केवल आध्यात्मिक शक्ति ही नहीं थीं बल्कि राजपूतों की रक्षक भी थीं।

  1. बीकानेर किले की नींव उनके आशीर्वाद से रखी गई।
  2. मेहरानगढ़ किले के निर्माण से पहले भी उन्होंने मार्गदर्शन दिया
  3. कई राजपूत घराने उन्हें कुलदेवी मानते हैं
  4. जहां वे चरण रख देती थीं, वह भूमि सुरक्षित और समृद्ध मानी जाती थी।

करणी माता पर शराब चढ़ाने की परंपरा क्यों है?

  1. राजपूती वीर परंपरा

राजपूत कुलदेवियों को वीर भोग के रूप में शराब अर्पित करते थे।
यह शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता था।

  1. रक्षक देवी का स्वरूप

करणी माता को रक्षक और उग्र ऊर्जा वाली देवी माना जाता है।
ऐसे स्वरूपों में शराब का भोग तांत्रिक परंपराओं से जुड़ा माना गया है।

  1. देवी को पिलाना नहीं- धरती को अर्पण

शराब देवी को नहीं दी जाती, बल्कि भूमि पर अर्पित की जाती है।
यह प्रकृति और ऊर्जा के प्रति एक धार्मिक अभिषेक माना जाता है।

करणी माता स्वयं सादगी, संयम और तपस्वी जीवन जीती थीं।
भोग की यह परंपरा लोकरीति की देन है, न कि उनकी व्यक्तिगत इच्छा।

आज भी करणी माता आस्था, शक्ति और संरक्षण की अद्भुत आधारशिला

आज भी लाखों लोग करणी माता को कुलदेवी, रक्षक, शक्ति, मार्गदर्शक और करुणा का स्वरूप मानते हैं।

राजस्थान से लेकर पूरे देश में उनका नाम श्रद्धा के साथ लिया जाता है।
जहां उनकी चर्चा होती है, वहां एक अनोखी शांति और साहस स्वतः उत्पन्न हो जाता है।

अतः करणी माता संपूर्ण मातृशक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।
करणी माता का जीवन हमें सिखाता है कि निस्वार्थ सेवा ही सच्चा धर्म है
तपस्या से चमत्कार जन्म लेते हैं
और माँ शक्ति हर उस व्यक्ति का साथ देती है जो सत्य और करुणा के मार्ग पर चलता है
करणी माता केवल राजस्थान की देवी नहीं,
बल्कि संपूर्ण शक्ति, रक्षा और करुणामयी मातृत्व की अनुभूति हैं

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