मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश जी. आर. स्वामीनाथन पिछले दिनों चर्चा में आए जब उन्होंने एक वकील को कोर्ट में ‘कायर’ और ‘कॉमेडी पीस’ कहा।
लेकिन इसी बीच वेद-संरक्षण पर दिया गया उनका भाषण नई बहस और श्रद्धा का विषय बन गया है। उन्होंने बताया कि कैसे एक वेदपाठी ब्राह्मण के मामले ने उनके जीवन को बदल दिया।
‘वेदों की रक्षा करो, वेद तुम्हारी रक्षा करेंगे’
यह वाकया चेन्नई के टी नगर स्थित कृष्णास्वामी हॉल में आयोजित ‘17वीं वार्षिक वैदिक प्रतिभा परेड’ में साझा किया गया, जिसका आयोजन ओम चैरिटेबल ट्रस्ट ने किया था।
इस आयोजन में न्यायमूर्ति ने अपने वकालत के दिनों की एक घटना बताई जिसमें उन्होंने एक निर्दोष व्यक्ति को कारावास से मुक्ति दिलाई। यह व्यक्ति एक वेदपाठी शास्त्री था जिसने अपनी बहन को बचाने के लिए खुद दोष कबूल किया था।
शास्त्री का बलिदान और न्याय की तलाश
विधिपूर्वक जीवन जीने वाले इस ब्राह्मण ने पुलिस के समक्ष यह झूठा बयान दिया कि वही गाड़ी चला रहा था, जबकि वास्तव में उसकी बहन अमेरिका से आई हुई थी और उसने दुर्घटना में एक व्यक्ति को कुचल दिया था।
आरोपी ने स्वयं को प्रस्तुत कर अपनी बहन को कानूनी फंदे से बचाया। एफआईआर और चार्जशीट उसी के नाम पर बनी। अदालत ने उसे 18 महीने की सजा सुना दी जबकि ऐसे मामलों में सामान्यतः 6 महीने की सजा दी जाती है।
वकील से न्यायाधीश बनने तक की सीख
स्वामीनाथन ने कहा कि जब उन्हें इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने खुद मामले की फाइल देखी और अपील दायर की। छह गवाहों में से किसी ने भी यह नहीं कहा कि उन्होंने आरोपी को वाहन चलाते देखा था।
इस एक तकनीकी आधार पर उन्होंने केस लड़ा और अपीलीय न्यायालय ने आरोपी को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने कहा, “वहीं क्षण था जब मुझे वेदवाक्य का वास्तविक अर्थ समझ आया, जो वेदों की रक्षा करता है, वेद उसकी रक्षा करते हैं।”
धर्म के प्रति निष्ठा से मिली आत्मचेतना
अपने वक्तव्य में न्यायमूर्ति ने एक और घटना का जिक्र किया जिसमें उनके ड्राइवर बादशाह ने नमाज़ के लिए समय माँगा। उस मुस्लिम कर्मचारी की धार्मिक निष्ठा से वे प्रभावित हुए।
उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी का उदाहरण दिया जिन्होंने एक मुस्लिम उम्मीदवार को इसलिए चुना था क्योंकि उसने शुक्रवार की नमाज के लिए इंटरव्यू बीच में छोड़ा था।
इससे प्रेरित होकर स्वामीनाथन ने बताया कि उन्होंने तब से लेकर अब तक एक भी दिन संध्या वंदनम नहीं छोड़ी।
हिंदू संस्कृति में आत्मसम्मान और कर्तव्य का भाव
न्यायमूर्ति का यह वक्तव्य केवल एक भावनात्मक कथा नहीं थी, बल्कि यह वेदों, धर्म, सत्यनिष्ठा और न्याय के गूढ़ संबंध को उद्घाटित करता है।
हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित कर्तव्यपालन और त्याग की भावना को उन्होंने कानून की कसौटी पर प्रस्तुत किया।
यह संदेश उन लोगों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है जो धर्म को केवल कर्मकांड मानते हैं और भारतीय आध्यात्मिक विरासत से कटे रहते हैं।
हिंदू दृष्टिकोण से न्याय की पुनर्परिभाषा
यह प्रकरण यह स्पष्ट करता है कि हिन्दू जीवनदर्शन केवल मोक्ष की ओर नहीं, बल्कि सांसारिक न्याय की स्थापना में भी सहायक हो सकता है।
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन की बातों से यह भी प्रमाणित हुआ कि भारत की न्यायिक परंपरा केवल पाश्चात्य विधानों पर आधारित नहीं, अपितु उसके मूल में ऋषियों की आत्मा भी विद्यमान है।
वेद केवल मंत्र नहीं, जीवन का संरक्षण हैं
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन का अनुभव हिन्दू समाज के लिए एक पुनः स्मरण है कि हमारी संस्कृति में धर्म और न्याय एक-दूसरे के विरोधी नहीं, पूरक हैं।
जो वेदों की मर्यादा, संस्कार और नैतिकता को जीवन में उतारता है, विधि भी उसका मार्ग प्रशस्त करती है। यही भारतीय न्याय का अद्वितीय आध्यात्मिक स्वरूप है, धर्मो रक्षति रक्षितः।