जैश-ए-मोहम्मद की खौफ़नाक साज़िश: जैश-ए-मोहम्मद की खौफ़नाक साज़िश: जैश-ए-मोहम्मद के महिला विंग जमात-उल-मोमिनात को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है।
पाकिस्तान में स्थित आतंकी संगठन के सरगना मसूद अजहर ने एक सोशल मीडिया पोस्ट और ऑडियो संदेशों के माध्यम से दावा किया है कि इस विंग में 5,000 से अधिक महिलाएं शामिल हुई हैं और उन्हें जिहाद की ट्रेनिंग दी जा रही है।
जैश-ए-मोहम्मद का दावा है कि ये महिलाएं “फ़िदायीन” यानी आत्मघाती हमलावर बनने की ट्रेनिंग ले रही हैं।
दिया जा रहा ऑनलाइन प्रशिक्षण
जैश-ए-मोहम्मद की खौफ़नाक साज़िश: रिपोर्ट्स के मुताबिक, जमात-उल-मोमिनात के तहत एक ऑनलाइन कोर्स शुरू किया गया है जिसका नाम “तुफ़्तुल मोमिनात” है। इस कोर्स के तहत रोज़ाना 40 मिनट की ऑनलाइन क्लास आयोजित की जा रही है, जिनमें महिलाओं को ‘जिहाद’ और धार्मिक कट्टरवाद की व्याख्या दी जाती है।
जो महिलाएं इस कोर्स में शामिल हुई हैं उनसे 500 पाकिस्तानी रुपये की डोनेशन ली जा रही है।
इन कक्षाओं का संचालन मसूद अजहर की बहन सादिया, समीरा, और पुलवामा हमले के साज़िशकर्ता उमर फारूक की पत्नी अफीरा कर रही हैं।
क्लास लेने के बाद कई महिलाओं ने कहा है कि उन्हें “ज़िंदगी का असली मकसद मिल गया है” और इसी भावना के साथ वे संगठन से जुड़ रही हैं।
जैश-ए-मोहम्मद की रणनीति: महिलाएं बन रहीं नया हथियार
जैश-ए-मोहम्मद की खौफ़नाक साज़िश: सुरक्षा एजेंसियों और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह कदम जैश-ए-मोहम्मद की रणनीति में एक बड़ा बदलाव दिखाता है। पहले यह संगठन केवल पुरुषों पर निर्भर था, लेकिन अब महिलाएं भी एक तरह से हथियार के रूप में सक्रिय की जा रही हैं।
जैश-ए-मोहम्मद की कोशिश है कि बड़े पैमाने पर महिलाओं को कट्टरपंथी बनाकर उन्हें फ़िदायीन हमलावरों में बदला जाए, जैसा कि दुनिया में कुछ अन्य आतंकी संगठन कर चुके हैं।
इसके अलावा, संगठन ने जिला-स्तर पर नेटवर्क बनाने की योजना बनाई है ताकि हर इलाके में एक “मुन्तज़िमा” (महिला नेता) हो और गतिविधियों का बेहतर समन्वय हो सके।
जैश-ए-मोहम्मद की खौफ़नाक साज़िश: आतंकी खतरा सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं
जैश-ए-मोहम्मद जिस तरह की महिला ब्रिगेड तैयार कर रहा है, वह उन्हें आत्मघाती हमलावरों के रूप में तैयार कर रहा है। इस कारण इसका खतरा केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं बल्कि दक्षिण एशिया और पड़ोसी देशों के लिए भी बढ़ रहा है।
ये संगठन अब छुपकर नहीं, बल्कि खुले तौर पर ऑनलाइन प्रचार, सोशल मीडिया, कोर्स और डोनेशन के जरिए भर्ती व फंडिंग कर रहे हैं। इससे साफ दिखता है कि उनका नेटवर्क जमीनी स्तर के साथ-साथ डिजिटल स्तर पर भी मजबूत हो चुका है।
इसीलिए केवल खुफ़िया एजेंसियों नहीं, बल्कि आम नागरिकों, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, मीडिया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस खतरे को समझें और सतर्क रहें।
भारत में ज़िहादियों की सक्रियता
जैश-ए-मोहम्मद की खौफ़नाक साज़िश: खुफ़िया एजेंसियों को संकेत मिले हैं कि यह महिला विंग सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि भारत में भी नेटवर्क फैला रही है।
हाल ही में गिरफ्तार की गई डॉ. शाहीन सईद को भारत में जमात-उल-मोमिनात की हेड बनाया गया था। इसके बाद उसने भारत में अल-फ़लाह यूनिवर्सिटी में कई जूनियर डॉक्टर्स को जिहादी बनने की ट्रेनिंग दी थी।
एजेंसियों का मानना है कि यह आतंकी मॉडल ISIS, हमास और LTTE की तरह महिलाओं को आत्मघाती हमलों में इस्तेमाल करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रहा है।
जन-सुरक्षा के लिए बड़ा संदेश
जैश-ए-मोहम्मद की खौफ़नाक साज़िश: जाँच एजेंसियों के अनुसार, जमात-उल-मोमिनात द्वारा महिलाओं को फिदायीन बनने की ट्रेनिंग देना न केवल आतंकवाद के दृष्टिकोण से एक नई चुनौती है, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी बेहद चिंताजनक है।
मसूद अजहर का यह कदम साबित करता है कि आतंकवाद अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए जमीनी भर्ती मॉडल से डिजिटल उग्रवाद की ओर तेज़ी से शिफ्ट हो चुका है।
खुफ़िया एजेंसियों का कहना है कि अगर इस तरह की गतिविधियाँ अनियंत्रित रहीं, तो आतंकवाद किसी भी रूप में—पुरुषों या महिलाओं—के ज़रिए फैल सकता है।
यही समय है कि देश-स्तरीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की “महिला आतंकी विंग” पर कड़ी निगरानी रखी जाए, इस ऑपरेशन को रोका जाए और समाज को जागरूक किया जाए।

