Iran-Israel War: साल 1979 में जब ईरान में इस्लामी क्रांति हुई, तो पूरे विश्व की नजरें इस परिवर्तन पर टिक गईं। सदियों पुरानी राजशाही का अंत हुआ और उसकी जगह एक नया धार्मिक गणराज्य स्थापित हुआ।
इस क्रांति के केंद्र में थे आयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी एक कट्टरपंथी शिया धर्मगुरु, प्रखर वक्ता और शाह के मुखर विरोधी। खुमैनी ने न केवल ईरान की राजनीति बदली, बल्कि वहां की पूरी शासन प्रणाली को धर्म आधारित बना दिया।
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Iran-Israel War: यूपी के बाराबंकी में हुआ जन्म
खास बात यह है कि खुमैनी की पारिवारिक जड़ें भारत से जुड़ी थीं। उनके दादा सैयद अहमद मुसवी ‘हिंदी’ का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किन्तूर कस्बे में हुआ था। वे एक सम्मानित शिया सैय्यद परिवार से थे और धार्मिक विद्वान माने जाते थे।
ब्रिटिश राज के बढ़ते प्रभुत्व और धार्मिक असुरक्षा को देखते हुए उन्होंने भारत छोड़ा और पहले इराक के नजफ गए, फिर ईरान के ‘खुमैन’ कस्बे में बस गए। यहीं से खुमैनी परिवार ने नई पहचान बनाई।
ईरान के सुप्रीम लीडर
रुहोल्लाह खुमैनी ने अपनी भारतीय विरासत को कभी नहीं भूला। उन्होंने अपने कुछ लेखों में खुद को ‘रुहोल्लाह अल-हिंदी’ कहा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अपनी जड़ों पर गर्व करते थे।
1979 की क्रांति के बाद खुमैनी ईरान के पहले सुप्रीम लीडर बने और 1989 में अपने निधन तक उन्होंने धार्मिक और राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में रखी। उनके बाद इस पद पर आए आयातुल्लाह अली खामेनेई।
खामेनेई खुमैनी के नजदीकी अनुयायी और क्रांति के एक अहम सिपाही रहे। उनका रिश्ता खुमैनी से गुरु-शिष्य जैसा था। खुमैनी के निधन के बाद खामेनेई को उनके वैचारिक उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया, जो आज तक ईरान की सत्ता के सर्वोच्च पद पर बने हुए हैं।
इस तरह खुमैनी की कहानी केवल एक क्रांति की नहीं, बल्कि भारत और ईरान की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कड़ियों का एक अद्भुत संगम है।
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