भारत का चुपचाप लेकिन बड़ा भू-राजनीतिक कदम
भारत ने हाल ही में ऐसा रणनीतिक कदम उठाया है जिसने यूरोप को हैरत में डाल दिया है।
जिस ईंधन पर यूरोप ने प्रतिबंध लगाया था, भारत ने वही डीज़ल चीन को बेचना शुरू कर दिया। यह चार साल में पहली बार हुआ है जब भारत ने चीन को डीज़ल का एक कार्गो भेजा है।
प्रतिबंधित रिफाइनरी से चीन को डीज़ल आपूर्ति
यह डीज़ल गुजरात की नायरा एनर्जी रिफाइनरी में तैयार हुआ, जिसमें रूस की सरकारी कंपनी रोसनेफ्ट की 49.13% हिस्सेदारी है। यूरोपीय संघ ने कुछ सप्ताह पहले इस रिफाइनरी से उत्पाद खरीदने पर रोक लगाई थी।
इसका उद्देश्य भारत के तेल निर्यात को नुकसान पहुँचाना था, लेकिन चीन की खरीद ने यूरोप को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत के पास वैकल्पिक बाज़ार मौजूद हैं।
भारत-चीन व्यापारिक रिश्तों में नई गर्माहट
रूस, चीन और भारत के बीच रणनीतिक समझ पहले से कहीं अधिक मजबूत हो चुकी है। यूरोप द्वारा रिफाइनरी से दूरी बनाने पर चीन ने आगे आकर कहा कि वह डीज़ल खरीदेगा।

इसी बीच, चीन ने वर्षों बाद भारत को यूरिया निर्यात की अनुमति दी है। चीन से मिलने वाला यूरिया सस्ता है, जिससे भारतीय किसानों को सीधी राहत मिलेगी।
कूटनीतिक पृष्ठभूमि और सीमा विवाद समाधान की कोशिश
यह व्यापारिक सुधार ऐसे समय में हो रहा है जब चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा की संभावना है। मुख्य एजेंडा, भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान।
यदि यह निपटारा प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में होता है, तो पूर्वी सीमा पर तनाव घटेगा और भारत पश्चिमी मोर्चे पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेगा। यह परिस्थिति अमेरिका के लिए असहज होगी।
रूस की निर्णायक भूमिका और रक्षा सौदे
इसके साथ ही, रूस भी भारत की रणनीतिक दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है। भारत के विदेश मंत्री इन दिनों मॉस्को में हैं और चर्चा है कि भारत S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का पहला खरीदार बन सकता है।
या S-400 की अतिरिक्त बैटरियां खरीद सकता है। यह सौदे भारत की रक्षा क्षमता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी करेंगे।
अमेरिका-भारत संबंधों पर संभावित असर
कूटनीतिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या भारत-रूस-चीन निकटता से क्वाड जैसे गठबंधनों पर असर पड़ेगा।
पूर्व राजनयिक विकास स्वरूप के अनुसार अमेरिका-पाकिस्तान की मौजूदा नजदीकी अस्थायी है और आर्थिक लाभ तथा निजी निवेश जैसे कारणों से प्रेरित है। पाकिस्तान को अमेरिका, इज़राइल-ईरान संघर्ष में संभावित मोहरे के रूप में देख रहा है।
दीर्घकालिक रणनीति और समझौते
विकास स्वरूप का मानना है कि भारत-अमेरिका संबंध दीर्घकालिक और रणनीतिक बने रहेंगे।
अगर भारत BECA, LEMOA, COMCASA जैसे प्रमुख रक्षा समझौतों से पीछे हटता है तो दीर्घकालिक क्षति होगी, जिसे कई अमेरिकी राष्ट्रपति भी सुधार नहीं पाएंगे। फिलहाल, संबंधों में बुनियादी स्थिरता बनी हुई है।
नए भू-राजनीतिक संतुलन की ओर बढ़ता RIC
अमेरिका-पाकिस्तान की निकटता एक अस्थायी रणनीति मानी जा रही है, जबकि भारत-रूस-चीन त्रिकोण एक नए भू-राजनीतिक संतुलन की दिशा में बढ़ रहा है।
आने वाले महीनों में RIC बैठक और प्रधानमंत्री मोदी का संभावित चीन दौरा इस कहानी के अहम अध्याय साबित हो सकते हैं।
भारत की संतुलन साधने की क्षमता
जब पूरी दुनिया राजनीतिक चालों में व्यस्त है, भारत ने यह दिखा दिया है कि वह अवसर भुनाने में माहिर है।
हर राष्ट्र के साथ संतुलन साधते हुए भारत ने यह संदेश दिया है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद वह अपने दीर्घकालिक हितों को प्राथमिकता देगा, चाहे इसके लिए कूटनीतिक साहस ही क्यों न दिखाना पड़े।