भारत को लेकर अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। चीन खुलकर भारत के पक्ष में खड़ा है और पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया समेत लगभग सभी प्रमुख चैनल भारत का समर्थन करते दिख रहे हैं।
अमेरिका में फॉक्स चैनल को छोड़कर बाकी मीडिया भी भारत के साथ खड़ा है। चीन की यह भूमिका भारत की बढ़ती महत्ता को प्रदर्शित करने में सहायक बन रही है।
डोनाल्ड ट्रंप अब अपने ही देश के भीतर उसी तरह का दबाव झेल रहे हैं, जैसा उन्होंने कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी पर डाला था।
उन्हें शायद इस बात का अंदेशा नहीं था कि इतनी जल्दी उनके खिलाफ भारत को लेकर माहौल बन जाएगा। यह स्थिति उनके लिए राजनीतिक चुनौती बन गई है।
जापान, ब्रिटेन और यूरोप का भारत के साथ मजबूत मोर्चा
प्रधानमंत्री मोदी के जापान दौरे की घोषणा होते ही अमेरिका में टैरिफ वार्ता कर रहा जापानी प्रतिनिधि मंडल अपनी यात्रा रद्द कर बैठा।
इससे पहले भारत और यूनाइटेड किंगडम ने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर लिए थे। यह अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
फिनलैंड के प्रधानमंत्री ने भारत का नाम लेकर कहा कि भारत की अनदेखी संभव नहीं। सिंगापुर, जो शुरू से ही अमेरिकी टैरिफ नीति से असंतुष्ट रहा है, उसके प्रधानमंत्री भी भारत पहुंचे।
इसी दौरान जर्मनी के विदेश मंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने भी मोदी से मुलाकात कर सहयोग बढ़ाने की बात कही।
कनाडा, जो कभी भारत के विरोध में खड़ा था, अमेरिकी टैरिफ नीतियों के चलते भारत के साथ खड़ा हो गया। यह बदलाव भारत की कूटनीतिक सफलता और अमेरिका की विफलता दोनों को उजागर करता है।
डेनमार्क और ग्रीनलैंड में अमेरिका की नाकामी
इस बीच ग्रीनलैंड में अमेरिकी सीआईए द्वारा विद्रोह कराने की कोशिश नाकाम रही। डेनमार्क सरकार ने समय रहते जासूसों को पकड़ लिया और पहचान भी उजागर कर दी।
डेनमार्क ने नाराजगी जताते हुए सवाल किया कि नाटो का क्या मतलब है, यदि उसके ही सदस्य उसके क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश करेंगे।
यह घटना अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि को और कमजोर करती है। डेनमार्क जैसे नाटो सदस्य का असंतोष ट्रंप प्रशासन की आक्रामक नीतियों पर सवाल उठाता है।
यूक्रेन प्रकरण और ट्रंप की गुप्त चाल का पर्दाफाश
गार्डियन अखबार ने खुलासा किया कि ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन में विद्रोह की साजिश रची थी। इसके तहत अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे डी वांस ने फरवरी 2025 में यूक्रेनी अधिकारी जालुज़नी से संपर्क साधने की कोशिश की। योजना यह थी कि जालुज़नी राष्ट्रपति जेलेंस्की के खिलाफ विद्रोह कर सत्ता संभालें।
बदले में अमेरिका और रूस यूक्रेन के रेयर मेटल वाले क्षेत्रों पर कब्जा करते और युद्ध रोकने का श्रेय ट्रंप ले लेते।
लेकिन जालुज़नी ने इस साजिश को ठुकरा दिया और साफ कह दिया कि वह अपने देश को सत्ता के लिए नहीं बेचेंगे। यह जानकारी बाद में जेलेंस्की को भी मिल गई।
भारत पर भरोसा, अमेरिका से दूरी
अब स्थिति यह है कि जेलेंस्की भी ट्रंप पर भरोसा नहीं कर रहे हैं और पुतिन के साथ किसी समझौते के लिए भारत के माध्यम से बातचीत कर रहे हैं। यह भारत की कूटनीतिक ताकत का स्पष्ट उदाहरण है।
यदि भारत इसी तरह दबाव बनाए रखता है और ट्रंप लगातार एक्सपोज होते रहते हैं तो अमेरिका को भारत के सामने झुकना पड़ सकता है।
लंबे समय तक ट्रंप इस तरह की नकारात्मक चर्चाओं को सहन कर पाएंगे, ऐसा नहीं लगता।
भारत की रीढ़ की हड्डी और अमेरिका की मुश्किलें
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी रीढ़ की हड्डी दिखा दी है। अब अन्य देश भी इसी राह पर चल रहे हैं। यह प्रवृत्ति अमेरिका के लिए बेहद असुविधाजनक है।
बदलते समीकरण ट्रंप प्रशासन की कठिनाइयां और बढ़ा रहे हैं और भारत की स्थिति पहले से कहीं ज्यादा मजबूत बन चुकी है।