SHRI HRIDAY NARAYAN DIKSHIT: श्री हृदय नारायण दीक्षित को 2025 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया गया है। वो एक सुविख्यात चिंतक, दार्शनिक, राजनेता और समाजसेवी हैं।
उन्होंने राजनीति, शिक्षा, समाज, साहित्य और दर्शन के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, वह भारतीय ज्ञान परंपरा में एक विशिष्ट स्थान रखता है। उनके विचारों में राष्ट्र, संस्कृति और संवैधानिक मूल्यों के प्रति गहरा समर्पण झलकता है।
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शुरुआत गांव से, सोच राष्ट्रीय स्तर तक
SHRI HRIDAY NARAYAN DIKSHIT: 25 दिसंबर 1946 को उत्तर प्रदेश के लउवा (उन्नाव) में जन्मे श्री दीक्षित ने कानपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया। राजनीति में उनकी शुरुआत 1972 में जिला पंचायत सदस्य के रूप में हुई।
1975-77 के आपातकाल के दौरान उन्हें 19 महीने की जेल भी झेलनी पड़ी। उन्नाव में उन्होंने कई जन आंदोलनों और प्रदर्शनों का नेतृत्व किया।
शिक्षा के माध्यम से समाज निर्माण
SHRI HRIDAY NARAYAN DIKSHIT: वह शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम मानते हैं। 1981 से वे भारतीय आदर्श एंग्लो संस्कृत इंटर कॉलेज, पुरवा के प्रबंधक हैं।
उन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय गर्ल्स इंटर कॉलेज, मवै, उन्नाव की स्थापना की। यह उनके नारी सशक्तिकरण और ग्रामीण शिक्षा के प्रति समर्पण का परिचायक है।
विचारशीलता से नेतृत्व तक, कुछ ऐसा रहा दीनदयाल का राजनीतिजक जीवन
SHRI HRIDAY NARAYAN DIKSHIT: श्री दीक्षित की राजनीतिक यात्रा बेहद समृद्ध रही है। वे पंचायती राज और संसदीय कार्य मंत्री, उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष (17वीं विधानसभा) रह चुके हैं।
वे पांच बार विधायक (9वीं से 12वीं और 17वीं विधानसभा) और विधान परिषद सदस्य भी रहे।
2010 से 2016 तक वे भाजपा विधानमंडल दल के नेता रहे।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य, जिला अध्यक्ष, प्रदेश उपाध्यक्ष, प्रवक्ता जैसे अनेक दायित्व निभा चुके हैं।
राज्य विधानसभा की सार्वजनिक उपक्रम समिति के अध्यक्ष भी रहे।
पत्रकारिता और साहित्य में विलक्षण योगदान
SHRI HRIDAY NARAYAN DIKSHIT: श्री दीक्षित का साहित्यिक और पत्रकारिता जीवन भी उतना ही प्रभावशाली है।
वे “कालचिंतन” पत्रिका (1978–2004) के संस्थापक-संपादक रहे।
दैनिक जागरण में 35 वर्षों से नियमित स्तंभकार हैं।
उनके लेख पांचजन्य, राष्ट्रधर्म, स्वतंत्र भारत, नवभारत, सामना, नई दुनिया आदि अनेक राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।
उन्होंने 6000 से अधिक लेख और 50 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं।
प्रकाशित ग्रंथ, भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्ध धरोहर
SHRI HRIDAY NARAYAN DIKSHIT: उनकी प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:
श्रीराम: श्रद्धा और इतिहास, ऋग्वेद का परिचय, अथर्ववेद का मधु, ज्ञान का ज्ञान, नाचता अध्यात्म, हम भारत के लोग, हिंद स्वराज का पुनर्पाठ,
संविधान के समानांतर, अंबेडकर का मतलब, राष्ट्र सर्वोपरि, भारत की राजनीति का चारित्रिक संकट, गीताः अंतरसंगीत, The Way Bharat Thinks आदि।
श्रीराम: श्रद्धा और इतिहास, ऋग्वेद का परिचय, अथर्ववेद का मधु, ज्ञान का ज्ञान, नाचता अध्यात्म, हम भारत के लोग, हिंद स्वराज का पुनर्पाठ,
संविधान के समानांतर, अंबेडकर का मतलब, राष्ट्र सर्वोपरि, भारत की राजनीति का चारित्रिक संकट, गीताः अंतरसंगीत, The Way Bharat Thinks आदि।
इन पुस्तकों में भारतीय संस्कृति, संविधान, हिंदुत्व, राष्ट्रीयता और वैदिक परंपरा पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।
सम्मान और पुरस्कारों की श्रृंखला
SHRI HRIDAY NARAYAN DIKSHIT: उनकी विद्वता और लेखनी को देश भर में सम्मान मिला है।
अटल बिहारी वाजपेयी साहित्य सम्मान (हिंदी संस्थान, उत्तर प्रदेश)
गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार (मध्यप्रदेश सरकार)
डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान (कोलकाता)
राष्ट्रीय साहित्य सर्जक पुरस्कार
पं. दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार
उनकी रचनाओं पर शोध कर पीएचडी भी प्रदान की गई है, जिसका विषय था – “हृदय नारायण दीक्षित और उनकी पत्रकारिता”।
“हृदय नारायण दीक्षित रचनावली” के रूप में उनकी संपूर्ण रचनाएं संकलित की गई हैं।