सितंबर का अंतिम हफ्ता चल रहा है। तेज धूप, पसीना और घर के अंदर तक घुसती उमस लोगों को परेशान कर रही है। पंखे से राहत नहीं मिलती, एसी ही सुकून देता है।
ऐसे में सवाल यही है कि आखिर ये चिपचिपी उमस कब खत्म होगी और ठंड कब दस्तक देगी।
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उमस क्यों बनती है?
उमस दरअसल हवा में मौजूद नमी यानी जलवाष्प के कारण होती है। जब पसीना आसानी से सूख नहीं पाता तो शरीर को ज्यादा गर्मी महसूस होती है।
जून से शुरू होने वाले मानसून के साथ ही उमस बढ़ जाती है। बारिश कुछ राहत देती है, लेकिन धूप निकलते ही फिर से उमस परेशान करने लगती है।
कब जाती है उमस?
उमस का मौसम आमतौर पर तब खत्म होता है जब हवा में नमी घटने लगती है।
यह या तो ठंडी हवाओं के आने से होता है या फिर मानसून के धीरे-धीरे पीछे हटने से।
सितंबर के बाद जैसे-जैसे तापमान गिरने लगता है, उमस भी कम होने लगती है।
मौसम बदलने की असली वजह
सितंबर के बाद सूर्य दक्षिणी गोलार्ध की ओर झुकने लगता है। इसके कारण उत्तरी गोलार्ध यानी भारत जैसे देशों में तापमान धीरे-धीरे गिरता है।
अक्टूबर तक मानसून पीछे हट जाता है और उत्तर-पूर्वी हवाएं चलने लगती हैं। ये हवाएं शुष्क होती हैं और नमी को कम कर देती हैं।
साइबेरिया का कनेक्शन
भारत में ठंड का असर बढ़ाने में साइबेरियाई हवाओं की अहम भूमिका होती है। साइबेरिया और मध्य एशिया में उच्च दबाव वाले क्षेत्र बनते हैं।
वहां से उठने वाली ठंडी हवाएं हिमालय की वजह से सीधे भारत में नहीं आतीं, लेकिन वे मौसम प्रणाली को प्रभावित करती हैं।
इसी दबाव परिवर्तन के कारण उत्तर भारत में ठंडी हवाओं का असर महसूस होने लगता है।
अक्टूबर से ठंड की आहट
उत्तर भारत में अक्टूबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते तक उमस कम हो जाती है। दिन हल्के गर्म रहते हैं लेकिन रातें ठंडी होने लगती हैं।
अक्टूबर के आखिर तक माहौल सुहाना हो जाता है और उमस लगभग विदा हो जाती है।
दक्षिण भारत में हालांकि स्थिति थोड़ी अलग होती है, क्योंकि वहां नवंबर-दिसंबर तक नॉर्थ-ईस्ट मानसून सक्रिय रहता है।
सर्दियों का असली आगमन
भारत में असली ठंड दिसंबर से शुरू होती है। इसी समय सूर्य सबसे ज्यादा दक्षिण की ओर होता है, जिससे तापमान तेजी से गिरता है।
उत्तर भारत में न्यूनतम तापमान 5 डिग्री से नीचे चला जाता है और शीतलहर का असर दिखने लगता है।
मध्य भारत में थोड़ी देर से लेकिन दिसंबर तक ठंड महसूस होने लगती है।
दक्षिण भारत में दिसंबर-जनवरी के बीच हल्की ठंड पड़ती है, जबकि पूर्वोत्तर में नवंबर से ही सर्दी शुरू हो जाती है।
मौसम बदलने में सिर्फ हवा और नमी ही नहीं, बल्कि वैश्विक कारक भी जिम्मेदार होते हैं।
सर्दियों में पोलर जेट स्ट्रीम दक्षिण की ओर खिसकती है, जिससे ठंडी हवाएं भारत तक पहुंचती हैं।
इसके अलावा ला नीना और एल नीनो जैसे मौसम पैटर्न भी ठंड की तीव्रता पर असर डालते हैं।

