Friday, April 18, 2025

Kargil Vijay Diwas: कारगिल शहर को कैसे मिला ये नाम, जानें वीरों की इस धरती का इतिहास

Kargil Vijay Diwas: आज यानी 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है। ये दिन कारगिल युद्ध लड़ने और भारत की अहदियों पर तिरंगा फहराने वाले जवानों के सम्मान में मनाया जाता है। कारगिल को वीरों की धरा भी कहा जाता है। आइये आज इस मौके पर जानते हैं वीरभूमि को ये कारगिल नाम कैसे मिला था।

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Kargil Vijay Diwas क्यों मनाया जाता है

हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। ये दिन भारत के जीत के जश्न के तौर पर मनाया जाता है। आज भारतीय जवानों का बलिदान और उनकी बहादुरी का सम्मान करते हैं, जिन्होनें पाकिस्तान से कारगिल की पहियों को वापस पाने के लिए अथक प्रयास और संघर्ष किया।

शहर को ऐसे मिला कारगिल नाम

Kargil Vijay Diwas: कारगिल, दो शब्दों खार और आरकिल से मिलकर बना है। जहां खार का अर्थ महल और आर्किल का मतलब केंद्र है। ये इलाका कई राजवंशों के बीच रहा है। कई आलोचकों के मुताबिक़ कारगिल शब्द गार और खिल से मिलकर बना है। जहां गार का मतलब “कोई भी जगह” और खिल का अर्थ एक केंद्रीय स्थान होता है। ये इस बात से भी साबित होता है कि कारगिल स्कार्दो, श्रीनगर, और लेह और से 200 किलोमीटर की दूरी पर बसा है।

“आगा की धरती”- कारगिल शहर

कारगिल शहर का क्षेत्रफल 14,086 वर्ग किलोमीटर है। ये श्रीनगर से लेह की ओर 205 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शहर है। कारगिल को दुनियाभर में ‘आगा की धरती’ के तौर पर जाना जाता है। इसके पीछे भी एक वजह है।दरअसल कारगिल की बड़ी आबादी शिया मुसलमानों की है और आगा लोग यहां धार्मिक प्रमुख और उपदेशक हैं।

ये कहता है कारगिल का इतिहास

बड़े इतिहासकार परवेज दीवान ने ‘कारगिल ब्लंडर’ नाम की किताब में कारगिल के नाम को लेकर ज़िक्र किया है। जिसमें बता या गया है कि कारगिल नाम के एक व्यक्ति ने सबसे पहले इस क्षेत्र में रहने के लिए शिलिकचाय क्षेत्र और पोयेने ने जंगलों को हटाकर यहां बसावट की। बाद में उसके नाम पर ही इस इलाके का नाम कारगिल पड़ गया और फिर यहां पर गशो थाथा खान खान आये।

गशो थाथा खान पहले ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने कारगिल में राजवंश की शुरुआत की थी। थाथा खान गिलगित के शाही परिवार के वंशज थे, जिन्होंने 8th सेंचुरी की शुरुआत में कारगिल को अपने कब्जे में कर लिया था। उनके वंश ने प्रारंभिक काल में कारगिल के सोद क्षेत्र पर शासन किया और बाद में स्थायी रूप से शकर चिकटन क्षेत्र में जाकर बस गए।

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