Griha Pravesh Ritual: नई दुल्हन गृह प्रवेश के समय जब अनाज भरे कलश को दाहिने पैर से ठेलती है, तो यह केवल एक सांस्कृतिक परंपरा नहीं, बल्कि एक गूढ़ वैदिक प्रतीक है। जानिए इस रिवाज़ का धार्मिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रहस्य।
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कलश ठेलना, एक प्रतीकात्मक आरंभ
Griha Pravesh Ritual: गृह प्रवेश के समय दुल्हन द्वारा चावल या गेहूं से भरे कलश को दाहिने पैर से ठेलना केवल रस्म नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली सांकेतिक क्रिया है।
यह संकेत करता है कि नववधू अब इस घर में लक्ष्मी के रूप में प्रवेश कर रही है—वह घर में समृद्धि, अन्न, सौभाग्य और नई ऊर्जा लेकर आ रही है।
भारतीय संस्कृति में ‘गृहलक्ष्मी’ की अवधारणा
Griha Pravesh Ritual: भारतीय परंपरा में दुल्हन को ‘गृहलक्ष्मी’ माना गया है।
वह जैसे ही गृहप्रवेश करती है, उसका हर कदम मानो लक्ष्मी के पावन चरणों की छाप छोड़ता है।
यह घर में शुभता, सौंदर्य और आनंद की स्थापना का प्रतीक होता है।
श्लोक:
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
(अर्थ: जो देवी समस्त प्राणियों में लक्ष्मी रूप में स्थित हैं, उन्हें बारंबार नमन है।)
कलश और अनाज का महत्व
Griha Pravesh Ritual: कलश को हिंदू धर्म में ब्रह्मांड की पूर्णता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है।
उसमें रखा गया अनाज अन्नपूर्णा और जीवन की अक्षय ऊर्जा का संकेत है।
जब दुल्हन उसे ठेलती है, तो यह ऊर्जा के प्रवेश और समृद्धि के संचार का प्रतीक बन जाता है।
क्या पैर से ठेलना अशुभ होता है?
बिलकुल नहीं। दुल्हन दाहिने पांव से कलश ठेलती है, और दाहिना पांव हिंदू परंपरा में मंगल का प्रतीक माना जाता है।
यह संकेत करता है कि वह अब इस घर की स्वामिनी है, अतिथि नहीं। वह घर में अपने अधिकार और सौम्यता के साथ प्रवेश कर रही है।
पदचिन्ह और गृह प्रवेश का वैदिक संबंध
Griha Pravesh Ritual: दुल्हन के पांव में जब गेरू या हल्दी मिश्रित जल लगाया जाता है और वह आंगन में प्रवेश करती है, तो उसके पदचिन्ह लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक होते हैं।
पदचिन्ह और कलश—दोनों मिलकर शुभ गृहप्रवेश की पूर्णता को दर्शाते हैं।
मनोवैज्ञानिक पहलू, सम्मान और आत्म-स्वीकृति
Griha Pravesh Ritual: यह परंपरा दुल्हन को यह भाव देने का माध्यम है कि यह घर अब उसका भी है।
कलश को ठेलना सम्मानजनक अधिकार का प्रतीक है—एक ऐसा कार्य जो मानसिक रूप से उसे घर का हिस्सा बनने में मदद करता है।
शास्त्रों में उल्लेखित परंपरा
मनुस्मृति, गृह्यसूत्र और बृहत्संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में गृहप्रवेश, पदचिन्ह और अन्नपूर्ण कलश के महत्व का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
श्लोक:
गृह प्रवेशे लक्ष्मीं पश्येत् कलशं धान्यसंयुतम्।
(अर्थ: गृहप्रवेश के समय अन्नपूर्ण कलश और लक्ष्मी का दर्शन अत्यंत शुभ माना गया है।)