GI TAG: राजस्थान की राजधानी जयपुर की प्रसिद्ध कुंदन मीना ज्यूलरी की सुंदरता और कारीगरी की शान और गंगापुर सिटी के खीर मोहन का लाजवाब स्वाद एवं बूंदी के सुगंधा चावल की महक अब देश ही नहीं, बल्कि विदेश तक फैलेगी। उदयपुर के ग्रीन मार्बल और कोटा स्टोन को भी देश-विदेश तक पहचान मिलेगी। यह संभव हुआ है राजस्थान की पारंपरिक कलाओं व उत्पादों को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने के लिए किए गए राज्य सरकार के प्रयासों से। जीआई टैग परियोजना के तहत इन वस्तुओं को शीघ्र ही जीआई टैग मिलने जा रहा है।
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GI TAG: कारीगरों और व्यापारियों की बढ़ेगी आमदनी
राजस्थान के इन 5 उत्पादों को जीआई टैग मिलने से इनकी पहचान विश्व स्तर पर फैलेगी और इन उत्पादों को तैयार कर रही इंडस्ट्री से जुड़े कारीगरों व व्यापारियों की आमदनी भी बढ़ेगी। जीआई टैग के लिए नाबार्ड राजस्थान में 2.5 लाख रुपये तक का अनुदान दे रहा है। इसके लिए रजिस्टर्ड संस्था, सोसाइटी और एनजीओ के जरिए आवेदन किया जा सकता है। जीआई टैग मिलने के बाद कारीगर भी इसमें रजिस्टर्ड हो सकते हैं। उनके लिए भी एक हजार रुपये अनुदान का प्रावधान है।
इन उत्पादों को पहले ही मिल चुका जीआई टैग
अब तक बगरू, सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंट, जयपुर की ब्लू पोट्री, जोधपुरी बंधेज, उदयपुर की कोफ्तागिरी धातु शिल्प, राजसमंद की नाथद्वारा पिछवाई शिल्प, बीकानेर की हस्त कढ़ाई कला, बीकानेर उस्ता कला और कठपुतली कला को जीआई टैग मिल चुका है। अब नए उत्पादों को भी जीआई टैग मिलने से प्रदेश का नाम और व्यापार और अधिक ऊंचाई नापेगा। निश्चित ही राजस्थान के लिए यह बड़ी उपलब्धि है।
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