नई पीढ़ी का बढ़ता प्रेशर: आज का समय तेज रफ्तार का है, लेकिन इसी रफ्तार ने जेन-जी और मिलेनियल्स के तनाव को भी कई गुना बढ़ा दिया है।
डेलॉइट के ग्लोबल सर्वे के मुताबिक, सबसे बड़ा तनाव पैसों की अनिश्चितता और रोज़मर्रा के खर्चों का दबाव है।
युवाओं को लगता है कि भविष्य सुरक्षित नहीं है, सेविंग्स मजबूत नहीं हैं और अचानक आने वाली मुश्किलों से निपटने की क्षमता कम होती जा रही है।
इतनी बड़ी संख्या में युवा आर्थिक चिंताओं से जूझ रहे हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को लगातार प्रभावित कर रहा है।
नौकरी का दबाव, तनाव की सबसे बड़ी जड़
नई पीढ़ी का बढ़ता प्रेशर: डेलॉइट की रिपोर्ट बताती है कि जो लोग अक्सर तनाव में रहते हैं, उनमें 36% जेन-जी और 33% मिलेनियल्स अपनी जॉब को तनाव का मुख्य कारण मानते हैं।
लंबी वर्किंग आवर्स, काम की सराहना न होना, ऑफिस का पक्षपातपूर्ण माहौल और बढ़ते टारगेट। सभी मिलकर मानसिक बोझ बढ़ा रहे हैं।
कोरोना के बाद से बर्नआउट, अनिश्चितता और थकान युवाओं में पहले से ज्यादा देखने को मिल रही है, और यही कारण है कि मेंटल हेल्थ पर इसका गहरा और लगातार असर पड़ रहा है।
ऑफिस में बोलने से डरते हैं युवा
नई पीढ़ी का बढ़ता प्रेशर: सबसे चिंताजनक बात ये है कि युवाओं को ऑफिस में अपनी समस्याएँ रखने से डर लगता है। सर्वे में 62% Gen Z और 61% Millennials ने कहा कि वे अपनी नौकरी को खोने या इमेज खराब होने के डर से शिकायतें दर्ज नहीं करते।
कई युवाओं का यह भी मानना है कि उनकी कंपनी पारदर्शिता और ऑफिस कल्चर को लेकर अपेक्षित कदम नहीं उठा रही। इस वजह से कंपनियों और कर्मचारियों के बीच भरोसा लगातार कम हो रहा है।
अकेलापन बढ़ा, हाइब्रिड वर्क भी नहीं बना सहारा
नई पीढ़ी का बढ़ता प्रेशर: डेलॉइट के अनुसार, हर तीसरा जेन-जी खुद को अकेला महसूस करता है, जबकि ज्यादा तनाव वाले युवाओं में यह संख्या 60% से भी ऊपर है।
हाईब्रिड और वर्क-फ्रॉम-होम मॉडल ने भले ही सुविधा दी हो, लेकिन सोशल कनेक्शन कम होने के कारण युवाओं में अकेलेपन और मानसिक थकावट की समस्या तेज़ी से बढ़ी है।
लगभग 30% Gen Z को लगता है कि उनका काम कोई प्रभाव नहीं डाल रहा, और यही ‘नो इम्पैक्ट’ फीलिंग उन्हें अंदर से कमजोर करती जा रही है।
माइक्रो-मैनेजमेंट की दिक्कत भी उनकी एक्साइटमेंट और मोटिवेशन को कम कर रही है।
मेंटल हेल्थ सपोर्ट मौजूद, लेकिन यूज कम
नई पीढ़ी का बढ़ता प्रेशर: कई कंपनियों ने अब काउंसलिंग, वेलनेस प्रोग्राम और हेल्पलाइन जैसे मेंटल हेल्थ सपोर्ट शुरू किए हैं, लेकिन इनका उपयोग अभी भी बहुत कम है।
ज्यादा तनाव झेल रहे युवाओं में से सिर्फ 46% Gen Z और 48% Millennials ही इन सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, हर साल डिप्रेशन और एंग्जायटी के कारण दुनिया में 12 अरब वर्किंग डेज बर्बाद हो जाते हैं।
यह साबित करता है कि मेंटल हेल्थ सिर्फ व्यक्तिगत मुद्दा नहीं बल्कि वैश्विक आर्थिक चुनौती भी है।

