Monday, December 1, 2025

नागालैंड: मोदी सरकार ने ईसाई प्रचारक फ्रैंकलिन ग्राहम को वीज़ा देने से इंकार किया, पिता के गाँधी परिवार से संबंध, धर्मांतरण और नागालैंड में ईसाई बहुल बनाने में निर्णायक भूमिका

नागालैंड: मोदी सरकार ने अमेरिकी क्रिश्चियन प्रचारक फ्रैंकलिन ग्राहम (Franklin Graham) को वीज़ा देने से इंकार कर दिया।

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वे 30 नवंबर 2025 को नागालैंड के कोहिमा में आयोजित क्रिश्चियन इवेंट में शामिल होने वाले थे।

हालांकि कार्यक्रम आयोजित करने वाली संस्था ने कहा कि इवेंट पहले की तरह जारी रहेगा। सरकार ने वीज़ा रद्द करने का कारण सार्वजनिक नहीं किया।

लेकिन माना जा रहा है कि धर्मांतरण (Religious Conversion) से जुड़े अभियान और पुराने विवाद इसके पीछे प्रमुख वजह हो सकते हैं।

फ्रैंकलिन ग्राहम का भारत में इतिहास

नागालैंड: फ्रैंकलिन ग्राहम की संस्था समैरेटंस पर्स (Samaritan’s Purse) दशकों से भारत में सक्रिय रही है।

यह संगठन मदद, राहत, भोजन वितरण और अन्य सुविधाओं का इस्तेमाल ईसाई धर्म प्रचार (Christian Evangelism) के लिए करता रहा है।

1980 के दशक में संगठन ने भारत में 1,000 से अधिक चर्च स्थापित करने की योजना बनाई। उनके पिता बिली ग्राहम (Billy Graham) 1950 के दशक में भारत आए थे और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी मिले थे।

उनके नेहरू-गाँधी परिवार से जुड़ाव को ध्यान में रखते हुए इस फैसले पर राजनीतिक और सामाजिक बहस शुरू हो गई।

स्थानीय संगठनों और पार्टियों की प्रतिक्रिया

नागालैंड संयुक्त क्रिश्चियन फोरम (NJCF), नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP), चाखेसांग पब्लिक ऑर्गेनाइजेशन (CPO) और नागालैंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी (NPCC) ने वीज़ा रद्द होने पर चिंता और असंतोष जताया।

NJCF ने कहा कि कार्यक्रम इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित होगा और इसे एकता और उपासना (Unity and Worship) का मौका माना।

NPP ने इसे ईसाई अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता का मुद्दा बताया। CPO ने केंद्र सरकार की इस कार्रवाई को नागाओं के प्रति उपेक्षात्मक रवैये से जोड़ा और पुराने घाव याद दिलाए। NPCC ने इसे धार्मिक भेदभाव और अपमान (Religious Discrimination) करार दिया।

फ्रैंकलिन ग्राहम और हिंदू धर्म विवाद

नागालैंड: 2010 में USA Today को दिए इंटरव्यू में फ्रैंकलिन ग्राहम ने हिंदू धर्म का मज़ाक उड़ाया। उन्होंने कहा, “100 हाथों वाला हाथी मेरे लिए कुछ नहीं कर सकता, उनके 9,000 देवता मुझे मुक्ति नहीं दिला सकते।”

इन बयानों ने भारतीय धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई और उनके कट्टर ईसाई प्रचारवादी (Hardline Evangelist) दृष्टिकोण को उजागर किया, जिसमें सिर्फ ईसाई धर्म को ही मुक्ति का मार्ग माना जाता है।

भारत में धर्मांतरण का मिशन

नागालैंड: फ्रैंकलिन ने 1984 में भारत में पहली बार चर्च की स्थापना की। उनकी संस्था ने अब तक 1,012 चर्च और 12 बाइबल स्कूल स्थापित किए हैं।

संगठन हिंदुओं को ईसाई धर्म की ओर आकर्षित करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।

उदाहरण के लिए, उन्होंने कई चर्चों में कुएँ और पानी की सुविधाएँ दी, ताकि लोग आकर पानी लें और साथ ही ईसाई संदेश सुनें।

कोविड-19 और धर्मांतरण

नागालैंड: कोविड महामारी के दौरान, फ्रैंकलिन ने दावा किया कि केवल ईसाई ईश्वर ही बचा सकते हैं। मई 2020 में उनके संगठन ने 2010 का पुराना वीडियो फिर से जारी किया, जिसमें महामारी के बीच भी धर्मांतरण अभियान (Conversion Campaign) को बढ़ावा देने का प्रयास दिखा।

2021 की दूसरी लहर में, समैरेटंस पर्स ने दावा किया कि उन्होंने 1,000 परिवारों को राशन और स्थानीय क्लिनिक को मदद प्रदान की, लेकिन वितरण का तरीका और क्षेत्र स्पष्ट नहीं है।

बिली ग्राहम और कांग्रेस से संबंध

नागालैंड: फ्रैंकलिन के पिता बिली ग्राहम अमेरिकी ईसाई प्रचारक और राष्ट्रपति के करीबी थे। उनकी पहली भारत यात्रा 1956 में हुई थी, जब उन्होंने नेहरू और बाद में इंदिरा गांधी से मुलाकात की।

उनकी यात्राओं का उद्देश्य केवल धर्म प्रचार नहीं था, बल्कि अमेरिकी विदेश नीति और प्रभाव (US Foreign Policy) को बढ़ावा देना भी था। 1972 में नागालैंड में उनका क्रूसेड 5 लाख लोगों तक पहुँचा। इंदिरा गांधी ने उन्हें पुलिस सुरक्षा, सरकारी आवास और हेलीकॉप्टर की सुविधा दी।

नागालैंड में ईसाई प्रभाव

नागालैंड: बिली ग्राहम और उनके नेटवर्क ने नागालैंड को ईसाई बहुल राज्य (Christian-majority State) बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यदि फ्रैंकलिन ग्राहम की यात्रा होती, तो उत्तर-पूर्व के जनजातीय क्षेत्रों में सक्रिय धर्मांतरण नेटवर्क (Conversion Network) और मजबूत होता।

इस यात्रा से प्रभावित होने वाले समुदाय पहले से ही मिशनरी गतिविधियों के प्रति संवेदनशील हैं।

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