Dr BR Ambedkar: भारतीय इतिहास के एक ऐसे महान व्यक्ति जिन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया और सामाजिक न्याय के लिए जीवन भर संघर्ष किया।एक ऐसे इंसान जिनके पास कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स सहित प्रतिष्ठित संस्थानों से प्राप्त 32-35 डिग्रियां थीं और वो 9 भाषाओं के विद्वान थे।
इन्होने अपने जीवनकाल में तीन पीएचडी पूरी करी और प्रखर बुद्धिजीवी कानूनविद्, अर्थशास्त्री और समाज सुधारक बने। स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया और दलित वर्ग के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए।
जातिगत भेदभाव और छुआछूत के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले यह महानायक डॉ. भीमराव अंबेडकर थे, जिन्हें 1990 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आज 14 अप्रैल को डॉ भीम राव अमबेडकर की 134वीं जयंती पर हम उनके बारे में जानेंगे।
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Dr BR Ambedkar: अध्याय 1: जन्म और प्रारंभिक जीवन
14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के पास स्थित ‘महू’ में बाबासाहेब का जन्म हुआ। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई सकपाल की 14वि संतान थे।
उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे, जिसके कारण परिवार को कुछ सुविधाएं मिलीं। हालांकि, उनका बचपन कठिन परिस्थितियों में बीता।
अध्याय 2: शिक्षा और संघर्ष
Dr BR Ambedkar: भीमराव अंबेडकर जी के पिता के सेना में होने के कारण वे शिक्षा के प्रति जागरूक थे और उन्होंने बेटे को पढ़ने के लिए स्कूल भेजा, जहां वे अपनी कक्षा में अव्वल रहे।
1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद, अंबेडकर ने ‘एली फिंस्टम कॉलेज’ से 1912 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1913 में उन्होंने प्राचीन भारतीय व्यापार पर एक शोध प्रबंध लिखा। उनके शैक्षिक सफर में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की।
इस सहायता से वे अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय गए, जहां से उन्होंने 1915 में अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री प्राप्त की और 1917 में पीएचडी की उपाधि हासिल की। उनका शोध विषय था – ‘नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी’।
इसके बाद वे लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स गए, जहां उन्होंने अपनी अधूरी शिक्षा पूरी की। वहां से उन्होंने एमएससी और बार-एट-लॉ की डिग्री प्राप्त की। वे लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के पहले और एकमात्र व्यक्ति थे।
उनकी शिक्षा के दौरान उन्हें कई बार आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपने दृढ़ संकल्प से उन्होंने हर बाधा को पार किया।
Dr BR Ambedkar: अध्याय 3: सामाजिक सुधार और छुआछूत विरोधी संघर्ष
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, अंबेडकर ने दलित वर्ग के उत्थान और सामाजिक सुधार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने ‘ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन’ का गठन किया और छुआछूत, मंदिरों में प्रवेश निषेध, दलितों के साथ भेदभाव जैसी समस्याओं के खिलाफ संघर्ष किया। 1927 में उन्होंने अछूतों के लिए सार्वजनिक जल स्रोतों तक पहुंच के अधिकार के लिए ‘महाड सत्याग्रह’ का नेतृत्व किया। इस सत्याग्रह ने न केवल दलितों के मौलिक अधिकारों के लिए आवाज उठाई, बल्कि समाज में व्याप्त असमानता पर भी प्रकाश डाला।
Dr BR Ambedkar: 1936 में उन्होंने ‘स्वतंत्र मजदूर पार्टी’ का गठन किया, जिसे बाद में ‘ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन’ में बदल दिया गया। इसका उद्देश्य दलित वर्ग के राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा करना था।
अध्याय 4: राजनीतिक यात्रा और मतभेद
Dr BR Ambedkar: अंबेडकर जी और महात्मा गांधी के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे। अंबेडकर जी गांधी के विचारों से सहमत नहीं थे और उन्होंने खुलकर कहा कि वे गांधी को महात्मा नहीं मानते। 1932 में पूना पैक्ट (पुणे समझौता) के समय अंबेडकर और गांधी के बीच तीखी बहस हुई। अंबेडकर दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल चाहते थे, जबकि गांधी इसके विरोधी थे। अंत में समझौता हुआ और दलितों के लिए आरक्षित सीटें स्वीकार की गईं।
अंबेडकर का मानना था कि गांधी दलितों की वास्तविक समस्याओं को नहीं समझते। वे कहते थे कि गांधी सिर्फ छुआछूत खत्म करने और मंदिरों में प्रवेश की बात करते थे, जबकि दलितों को हर तरह से बराबरी की जरूरत थी। उनका कहना था कि गांधी एक रूढ़िवादी हिंदू थे, जो वर्ण व्यवस्था में विश्वास रखते थे।
नेहरू के साथ भी अंबेडकर के संबंध तनावपूर्ण रहे। जब संविधान बनाने की बारी आई, तो शुरुआत में नेहरू नहीं चाहते थे कि अंबेडकर को संविधान सभा में शामिल किया जाए। उस समय कांग्रेस और नेहरू की ओर से संविधान सभा के लिए 296 सदस्य चुने गए थे, लेकिन अंबेडकर को शामिल नहीं किया गया था।
Dr BR Ambedkar: अंबेडकर मुस्लिम लीग के समर्थन से संयुक्त बंगाल से चुनकर संविधान सभा में आए, लेकिन देश के विभाजन के बाद उनकी सीट पाकिस्तान में चली गई और उनकी सदस्यता रद्द हो गई। बाद में उन्हें फिर से संविधान सभा में शामिल किया गया। भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में, अंबेडकर हिंदू कोड बिल लाना चाहते थे, जिसमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने का प्रावधान था, लेकिन नेहरू इसके लिए तैयार नहीं थे।
इससे नाराज़ होकर अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। बाद में जब अंबेडकर ने मुंबई नॉर्थ सीट से चुनाव लड़ा, तो नेहरू ने उनके ही एक सहायक नारायण काजरोल कर को उनके खिलाफ उतारा और खुद उनके पक्ष में प्रचार किया। अंबेडकर 177,000 वोटों से हार गए।

Dr BR Ambedkar: अध्याय 5: संविधान निर्माण और कानूनी योगदान
अपने सभी मतभेदों के बावजूद, अंबेडकर को संविधान का प्रारूप तैयार करने वाली समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में, भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया गया, जो विश्व का सबसे विस्तृत लिखित संविधान है।
अंबेडकर ने संविधान में सामाजिक न्याय, समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों को महत्वपूर्ण स्थान दिया। उन्होंने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की, जिससे उन्हें शिक्षा और रोजगार में समान अवसर मिल सके। भारतीय संविधान के निर्माण में उनके योगदान को देखते हुए, उन्हें अक्सर ‘संविधान के जनक’ या ‘आधुनिक मनु’ कहा जाता है।
अध्याय 6: धर्म परिवर्तन और बौद्ध धर्म की ओर
Dr BR Ambedkar: अंबेडकर ने जातिगत भेदभाव से मुक्ति के लिए बौद्ध मार्ग चुना। उन्होंने विभिन्न धर्मों का गहन अध्ययन किया और अंततः बौद्ध धर्म को अपनाने का निर्णय लिया।
14 अक्टूबर 1956 को, नागपुर में एक विशाल समारोह में, अंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया। यह भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण पंथ परिवर्तन था, जिसने दलित आंदोलन को एक नई दिशा दी।
उन्होंने मुस्लिम या ईसाई धर्म इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे इन्हें विदेशी मूल का मानते थे और इनमें धर्मांतरण को राष्ट्रांतरण मानते थे। इसलिए उन्होंने भारतीय बौद्ध धर्म को उपयुक्त माना।
Dr BR Ambedkar: अध्याय 7: अंतिम वर्ष और विरासत
अंबेडकर 1948 से मधुमेह से पीड़ित थे और 1954 तक उनकी स्वास्थ्य स्थिति बहुत खराब हो गई थी। 3 दिसंबर 1956 को उन्होंने अपनी अंतिम पुस्तक ‘बुद्ध और उनका धम्म’ को पूरा किया, और 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया। उनकी मृत्यु के समय, उनकी निजी लाइब्रेरी में 35,000 से अधिक पुस्तकें थीं, जो उनके अद्वितीय ज्ञान और पठन के प्रति प्रेम को दर्शाती हैं।
डॉ. भीमराव अंबेडकर एक ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के वंचित वर्गों के उत्थान और समानता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने न केवल भारतीय संविधान का निर्माण किया, बल्कि एक ऐसे भारत की कल्पना की, जहां सभी नागरिक बिना किसी भेदभाव के समान अधिकारों का आनंद ले सकें।
Dr BR Ambedkar: आज जबकि विभिन्न राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए उनके नाम का उपयोग करते हैं, हमें अंबेडकर के वास्तविक विचारों और उनके व्यापक दृष्टिकोण को समझने की आवश्यकता है। उनके विचारों का अध्ययन और उनके संघर्षों से प्रेरणा लेकर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं। अंबेडकर का सपना एक ऐसे भारत का था, जहां सामाजिक न्याय, समानता और बंधुत्व हो। आज भी यह सपना पूरी तरह से साकार नहीं हुआ है, और इसे पूरा करने के लिए हमें अभी भी प्रयास करना होगा