Monday, October 20, 2025

दिवाली 2025: अंधकार से आलोक तक, राम की विजय से लक्ष्मी के अवतरण और महावीर के मोक्ष तक

दिवाली 2025 : भारत में त्योहार केवल मनाने की परंपरा नहीं, बल्कि हर त्योहार में एक दर्शन, एक जीवन संदेश और एक आध्यात्मिक भावना समाई होती है। ऐसा ही एक पर्व है — दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है।

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यह पर्व न सिर्फ भगवान राम की अयोध्या वापसी का प्रतीक है, बल्कि धन, धर्म, प्रकाश, विजय और मोक्ष — इन पाँचों मूल भावों का संगम भी है।

हर साल कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि को यह महोत्सव मनाया जाता है। इस बार दिवाली सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को पड़ेगी। जैसे ही सूरज ढलता है, घर-आंगन दीपों की रौशनी से जगमगाने लगते हैं, हवा में मिठाइयों की खुशबू घुल जाती है, और चारों ओर उल्लास और भक्ति का वातावरण बन जाता है।

शाम के समय लक्ष्मी पूजन और आरती के साथ घंटी, शंख और मंत्रोच्चारण से पूरा माहौल पवित्र हो उठता है।

लेकिन दिवाली का अर्थ केवल रोशनी या उत्सव तक सीमित नहीं। यह पर्व कई युगों की पौराणिक, धार्मिक और आध्यात्मिक कथाओं से जुड़ा है — राम की अयोध्या वापसी से लेकर मां लक्ष्मी के अवतरण और भगवान महावीर के निर्वाण दिवस तक।

दिवाली: यही वजह है कि हर धर्म, हर परंपरा में दिवाली की एक अलग, किंतु प्रकाश से जुड़ी कहानी सुनाई देती है।

दिवाली 2025: जब अयोध्या में लौटे राम, और जगमगा उठा नगर

त्रेतायुग की यह सबसे प्रसिद्ध कथा है — जब भगवान श्रीराम ने 14 वर्ष का वनवास पूरा किया, रावण का वध कर सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे, तब पूरी अयोध्या दीपों से सज गई। हर घर में दीप जलाए गए, सड़कों पर पुष्प बिछाए गए, और लोगों के चेहरों पर वर्षों बाद मुस्कान लौट आई।

उस दिन अमावस्या की रात थी — अंधकार से भरी हुई, परंतु लाखों दीपों की ज्योति ने अंधकार को हराकर सम्पूर्ण नगर को आलोकित कर दिया। यही क्षण “दीपावली” की परंपरा की शुरुआत बना। इस प्रकार यह पर्व न केवल भगवान राम की विजय का, बल्कि अंधकार पर प्रकाश और अन्याय पर धर्म की जीत का प्रतीक बन गया।

समुद्र मंथन से प्रकट हुईं मां लक्ष्मी

दिवाली 2025: दिवाली से जुड़ी दूसरी महत्वपूर्ण कथा समुद्र मंथन की है। देवताओं और असुरों के बीच जब क्षीर सागर का मंथन हुआ, तब 14 रत्नों की प्राप्ति हुई। उन्हीं में से आठवां रत्न थीं मां लक्ष्मी, जो धन, वैभव और समृद्धि की देवी मानी गईं।

जब वे प्रकट हुईं, तो चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया — मानो संसार में सौभाग्य उतर आया हो। इसी क्षण को मां लक्ष्मी का अवतरण दिवस कहा गया। तभी से कार्तिक अमावस्या की रात को लक्ष्मी पूजन की परंपरा शुरू हुई।

इस दिन लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, दीप जलाते हैं, तोरण और रंगोली से सजाते हैं, ताकि देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर घर में स्थायी रूप से निवास करें। यह दिन हमें सिखाता है कि समृद्धि तभी टिकती है, जब उसके साथ श्रद्धा, पवित्रता और परिश्रम का दीप भी जलता रहे।

महावीर स्वामी का निर्वाण: आत्मज्ञान की ज्योति

दिवाली 2025 : जैन धर्म में भी दिवाली का विशेष महत्व है। जैन परंपरा के अनुसार, कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया, यानी जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हुए। इसलिए जैन समाज के लिए यह दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और सत्य की साधना का प्रतीक है।

इस दिन जैन अनुयायी दीप जलाकर संकल्प लेते हैं कि वे अहिंसा, संयम और सत्य के मार्ग पर चलेंगे। उनके लिए दीपक केवल सजावट नहीं, बल्कि ज्ञान और मोक्ष का प्रतीक होता है — जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर भीतर की ज्योति को प्रज्वलित करता है।

दिवाली — हर युग, हर भाव का संगम

दिवाली 2025: इस प्रकार दिवाली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि विजय, समृद्धि और आत्मशुद्धि का महापर्व है। इसमें राम की धर्म विजय, लक्ष्मी का धन और सौभाग्य, और महावीर का मोक्ष मार्ग — तीनों एक ही रात में एक साथ झलकते हैं।

यही कारण है कि दीपावली केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक उत्सव है — जो हमें यह सिखाता है कि सच्ची रोशनी बाहर नहीं, हमारे भीतर है।

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