बेल्थंगडी कोर्ट में पेश हुआ गवाह, हड्डियाँ सौंपकर शुरू हुई जांच की नई कहानी
कर्नाटक के धर्मस्थल क्षेत्र में चल रहे कथित सामूहिक दफन कांड की जाँच उस समय नया मोड़ ले गई जब 11 जुलाई को एक दलित गवाह ने बेल्थंगडी की मजिस्ट्रेट अदालत में धारा 183 BNSS (पूर्व धारा 164 CrPC) के अंतर्गत बयान दर्ज करवाया।
यह व्यक्ति पहले सफाई कर्मचारी के रूप में कार्यरत था और उसका दावा है कि वर्षों पहले उसे दबाव डालकर महिलाओं और नाबालिगों के शव जंगल में दफनाने को मजबूर किया गया था।
उसने खुदाई में मिले कुछ अस्थि अवशेष अदालत को सौंपे, जिससे मामले की गंभीरता और अधिक बढ़ गई।

गवाह के वकीलों ने शिकायत की कि अदालत ने बयान के दौरान उन्हें मौजूद रहने की अनुमति नहीं दी, जबकि गवाह अशिक्षित है और उसे न्यायिक प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं है।
इस आपत्ति ने न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्न चिह्न खड़े कर दिए और मामले को एक संवेदनशील मोड़ पर पहुँचा दिया।
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गोपनीय जानकारी लीक होने का आरोप, मुख्य न्यायाधीश को भेजे गए पत्र
17 जुलाई को इस मामले में और हलचल तब मची जब गवाह के वकीलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि 14 जुलाई को पुलिस के समक्ष दिए गए गवाह के बयान की गोपनीय जानकारी एक निजी यूट्यूब चैनल पर लीक कर दी गई।
उस वीडियो में कथित गवाही के कई बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की गई थी और दावा किया गया था कि यह जानकारी पुलिस के सूत्रों से प्राप्त हुई है।
गवाह के वकीलों ने इसे एक गंभीर सुरक्षा उल्लंघन बताया और कहा कि इस लीक से गवाह की जान को खतरा हो गया है।

साथ ही उन्होंने यह भी आशंका जताई कि उसकी गवाही को वैधता देने के बावजूद अब उसे मिले गवाह सुरक्षा प्रोग्राम को भी रद्द किया जा सकता है।
गवाह ने स्वयं भी CJI को पत्र लिखकर सुरक्षा की गुहार लगाई और एक उच्च स्तरीय जांच की मांग की।
महिला आयोग व सामाजिक संगठनों का हस्तक्षेप, SIT गठन की मांग तेज
इस संवेदनशील प्रकरण में लगातार सामाजिक संगठन और महिला अधिकार समूह सरकार पर दबाव बना रहे थे। कर्नाटक राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. नागलक्ष्मी चौधरी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों वाली एक विशेष जांच टीम (SIT) के गठन की सिफारिश की।
उन्होंने लिखा कि इतने गंभीर आरोपों के मद्देनजर निष्पक्ष, तकनीकी और प्रभावी जांच आवश्यक है, ताकि वर्षों से छिपे अन्याय को उजागर किया जा सके।
SIT का गठन और केस ट्रांसफर
19 जुलाई को राज्य सरकार ने तेजी दिखाते हुए SIT का गठन कर दिया, जिसकी कमान DGP प्रणब मोहनती को सौंपी गई। इसमें DIG एम. एन. अनुचेत, पुलिस अधिकारी सौम्यलता और Jitendra Kumar Dayama को भी सदस्य बनाया गया।
25 जुलाई को स्थानीय पुलिस से केस की सारी फाइलें लेकर SIT ने आधिकारिक रूप से जांच का जिम्मा संभाल लिया और फील्डवर्क आरंभ कर दिया।
गवाह के नेतृत्व में जंगल में पहुंची SIT, खुदाई से निकले मानव अवशेष
27 जुलाई को गवाह ने SIT के समक्ष बयान रिकॉर्ड करवाया और उन्हें धर्मस्थल के नजदीक नेत्रवती नदी के किनारे मौजूद संभावित दफन स्थलों की पहचान करवाई।

राजस्व विभाग, वन विभाग और भूमि अभिलेख अधिकारियों की उपस्थिति में भारी सुरक्षा के बीच खुदाई कार्य शुरू किया गया। पहले पाँच स्थानों पर कोई अस्थि अवशेष नहीं मिले, जिससे जांच दल के सामने चुनौतियाँ बढ़ गईं।
छठे स्थल पर खुदाई में मिला कंकाल, पुलिस को मिली पहली सफलता
31 जुलाई को जब ‘साइट नंबर 6’ पर खुदाई की गई, तब जमीन के लगभग चार फीट नीचे से मानव कंकाल के टुकड़े, जिनमें एक टूटी हुई खोपड़ी भी शामिल थी, बरामद किए गए।
प्रारंभिक आकलन में यह अवशेष किसी पुरुष के प्रतीत हो रहे हैं। उन्हें तत्काल फॉरेंसिक परीक्षण के लिए भेज दिया गया, जिससे साक्ष्य की पुष्टि हो सके।
गवाह की शर्त: पहले से स्थान न बताकर खुद साथ ले गया SIT को
गवाह ने जांच टीम से स्पष्ट रूप से कहा था कि वह पहले से स्थानों की जानकारी साझा नहीं करेगा, बल्कि उन्हें स्वयं लेकर जाएगा। उसका तर्क था कि अगर पहले ही लोकेशन सार्वजनिक हो गई तो वहाँ मौजूद सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। यही कारण था कि वह स्वयं पूरे समय SIT के साथ रहा और प्रत्येक स्थान को स्वयं चिन्हित किया।
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार की योजना, वर्षा और पहाड़ी भूगोल बन रहे बाधा
SIT अब शेष संभावित दफन स्थलों की पहचान के लिए ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार जैसी आधुनिक तकनीकों पर विचार कर रही है, ताकि बिना खुदाई के भूमिगत अवशेषों की जानकारी मिल सके।
हालांकि नदी तट की मिट्टी अत्यंत भीगी हुई है और जंगल का भूगोल भी कठिन है, जिससे खुदाई कार्य में लगातार अड़चनें आ रही हैं।
खुदाई के लिए लाया गया मिनी अर्थमूवर, पंप और सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम
खुदाई कार्य के तीसरे दिन SIT एक मिनी अर्थमूवर, वाटर पंप और पाइपों के साथ पहुँची, ताकि पानी निकाला जा सके। लगातार हो रही वर्षा के कारण जमीन बेहद कीचड़युक्त हो गई थी।
प्लास्टिक की चादरों का उपयोग कर खुदाई स्थल को सुरक्षित रखा गया और खुदाई के बाद मिले अवशेषों को कड़ी सुरक्षा में वहाँ से हटाया गया।
धर्मस्थल की दबी हुई पीड़ा: सौजन्या हत्याकांड फिर से चर्चा में
यह मामला 2012 में हुए बहुचर्चित सौजन्या बलात्कार और हत्या प्रकरण की यादें भी ताजा कर रहा है। सौजन्या की माँ, कुसुमावती, उस वृक्ष की ओर इशारा करती हैं जिसके नीचे बेटी को दफनाया गया था।
“हमने जहाँ बेटी को दफनाया, वहाँ लगाया गया पौधा अब घना वृक्ष बन गया है और छाया देता है, लेकिन न्याय की कोई छाया नहीं मिली,” वे कहती हैं।
जांच में हुईं चूकें, आरोपी बरी, न्याय से अब भी दूर है परिवार
सूजन्या मामले में स्थानीय पुलिस और पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर की लापरवाही के कारण शुरुआत से ही जांच पटरी से उतर गई थी।
वर्षों चले मुकदमे के बाद हाल ही में आरोपी को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया। इससे परिवार को गहरा आघात पहुँचा है और उन्हें अब भी न्याय की आशा बहुत क्षीण दिखती है।
महिला संगठनों की नई मांग: अन्य महिलाओं की संदिग्ध मौतों की SIT जांच हो
30 जुलाई को अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन की दक्षिण कन्नड़ इकाई ने मांग की कि धर्मस्थल क्षेत्र में हुई अन्य संदिग्ध मौतों, जैसे पद्मलता, वेदावल्ली, यमुना आदि को भी वर्तमान SIT जांच के दायरे में लाया जाए।
संगठन ने यह स्पष्ट किया कि केवल एक मामले की नहीं, बल्कि समूचे पैटर्न की जांच आवश्यक है।
जनसहयोग के लिए SIT कार्यालय की स्थापना, संपर्क विवरण भी जारी
धर्मस्थल सामूहिक दफन प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए SIT ने मंगलुरु के मल्लीकट्टे स्थित IB भवन में अपना कार्यालय स्थापित किया है।
इच्छुक नागरिक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे के बीच इस कार्यालय में पहुँचकर जानकारी दे सकते हैं या फिर 0824-2005301, 8277986369 पर कॉल करके अथवा sitdps@ksp.gov.in पर ईमेल भेजकर संपर्क कर सकते हैं।
जाति, सत्ता और न्याय के टकराव की नई परतें उजागर
यह पूरा मामला अब केवल एक आपराधिक जांच नहीं रह गया है, बल्कि अन्याय, पुलिसिया प्रणाली की निष्पक्षता और समाज की सामूहिक चुप्पी जैसे सवालों से भी जुड़ चुका है।
गवाह स्वयं एक दलित है और उसने प्रभावशाली लोगों द्वारा वर्षों से चली आ रही ज़्यादती और ज़बरदस्ती का खुलासा किया है।
सत्ता और संस्थानों की चुप्पी पर सवाल, दबी हुई आवाज़ें खोज रही हैं न्याय
धर्मस्थल जैसे धार्मिक और सामाजिक रूप से प्रभावशाली क्षेत्र में ऐसी घटनाओं का सामने आना अपने आप में संस्थाओं की चुप्पी और व्यवस्था की सीमाओं को उजागर करता है।
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, केवल हड्डियाँ ही नहीं, वर्षों से दबी हुई पीड़ाओं और अन्याय की परतें भी खुलती जा रही हैं।
अब यह जिम्मेदारी सरकार और SIT की है कि वे इन दफन सच्चाइयों को उजागर कर, न्याय को पुनर्जीवित करें।