दिल्ली: 12 जून को अहमदाबाद से लंदन जा रहा एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान टेकऑफ़ के दौरान क्रैश हो गया था।
इस भीषण दुर्घटना में विमान में सवार एक यात्री को छोड़कर बाकी सभी और जमीन पर मौजूद लोग मिलाकर 265 लोगों की मौत हो गई थी।
हादसे को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अहम सुनवाई की।
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दिल्ली: कोर्ट बोला, रिपोर्ट में पायलट पर दोषारोपण दुर्भाग्यपूर्ण
दिल्ली: जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन.के. सिंह की बेंच ने कहा कि प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में पायलट की गलती को कारण बताना दुर्भाग्यपूर्ण है।
कोर्ट ने माना कि निष्पक्ष जांच के लिए गोपनीयता ज़रूरी है और किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इस तरह के वाक्यों से बचना चाहिए।
DGCA और AAIB को नोटिस
दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB), नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नोटिस का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि जांच स्वतंत्र, निष्पक्ष और समयबद्ध ढंग से हो रही है।
NGO की याचिका और प्रशांत भूषण की दलील
दिल्ली: ‘सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन’ नामक एनजीओ की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि हादसे को 100 दिन से अधिक बीत चुके हैं लेकिन अब तक केवल प्रारंभिक रिपोर्ट ही जारी हुई है।
रिपोर्ट में न तो हादसे के स्पष्ट कारण बताए गए हैं और न ही भविष्य की सुरक्षा उपायों का जिक्र है।
उनका कहना था कि अगर जांच अधूरी रही तो यात्रियों की सुरक्षा खतरे में बनी रहेगी।
याचिका में उठाए गए सवाल
- एएआईबी की रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ सार्वजनिक नहीं की गईं।
- पूरी जिम्मेदारी पायलट पर डाल दी गई, जबकि हादसा तकनीकी खामी या निरीक्षण की कमी से भी हो सकता है।
- एकमात्र जीवित बचे यात्री का बयान शामिल नहीं किया गया।
- जांच टीम में शामिल 5 में से 3 सदस्य DGCA से हैं, जबकि DGCA की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति–सारी जानकारी सार्वजनिक क्यों?
कोर्ट ने एनजीओ की इस मांग पर आपत्ति जताई कि जांच से जुड़े सभी रिकॉर्ड, तकनीकी रिपोर्ट और फॉल्ट मैसेज तुरंत सार्वजनिक किए जाएं।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जानकारी को टुकड़ों में जारी करने से भ्रम फैल सकता है, इसलिए जांच पूरी होने तक गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता की दो प्रमुख मांगें
हादसे से जुड़े सभी अहम रिकॉर्ड और दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्वतंत्र जांच समिति गठित की जाए।