कांग्रेस का भारत-विरोधियों से पुराना लगाव: कांग्रेस का हालिया निर्णय एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि वह किन अंतरराष्ट्रीय चेहरों को अपने मंच पर जगह देती है।
चिली की पूर्व राष्ट्रपति और संयुक्त राष्ट्र की पूर्व मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैश्लेट को ‘इंदिरा गाँधी शांति,
निरस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार’ देने का फैसला उसी राजनीतिक सोच को दर्शाता है जो अक्सर भारत विरोधी बयानों को महत्व देती दिखाई देती है।
19 नवंबर 2025 को यह पुरस्कार सोनिया गाँधी ने खुद उन्हें दिया और मंच से उनकी खूब प्रशंसा भी की,
लेकिन बैश्लेट के भारत विरोधी बयानों का पूरा इतिहास देखते हुए यह फैसला स्वाभाविक रूप से कई संदेह खड़े करता है।
कांग्रेस का भारत-विरोधियों से पुराना लगाव: जम्मू-कश्मीर पर लगातार विवादित बयान
मिशेल बैश्लेट ने सबसे ज्यादा निशाना जम्मू-कश्मीर को लेकर साधा।
2020 में मानवाधिकार काउंसिल में उन्होंने दावा किया कि “भारत के कब्जे वाले कश्मीर” में हिंसा हो रही है, पेलेट गन का उपयोग हो रहा है और लोगों की आवाज दबाई जा रही है।
यह बयान तब आया जब भारत अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी शांति बनाए रखने और विकास पर फोकस कर रहा था।
2021 में उन्होंने फिर कहा कि कश्मीर में सभाओं पर रोक है और पत्रकारों को डराया जा रहा है।
भारत ने हर बार बैश्लेट के इन बयानों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह सब एकतरफा और राजनीतिक नज़रिये से प्रेरित टिप्पणियाँ हैं।
FCRA कानून पर भी बेबुनियाद टिप्पणी
जब भारत ने एमनेस्टी इंटरनैशनल पर FCRA के उल्लंघन पर कार्रवाई की, तो बैश्लेट ने एक बार फिर भारतीय कानूनों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया।
भारत ने स्पष्ट कहा कि “कानून बनाना भारत का अधिकार है और मानवाधिकार के नाम पर किसी संस्था को कानून तोड़ने की छूट नहीं दी जा सकती।”
इस बयान से एक बात साफ थी कि बैश्लेट भारत के आंतरिक मामलों में जरूरत से ज्यादा दखल देने की कोशिश करती रही हैं।
CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका
भारत ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को राहत देने के लिए CAA कानून लाया,
लेकिन बैश्लेट ने इसे गलत साबित करने की कोशिश करते हुए 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करवाई।
भारत ने तब भी तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह पूरी तरह भारत का आंतरिक एवं संप्रभु विषय है।
किसान आंदोलन में भी भारत पर उँगली उठाई
तीन कृषि कानूनों पर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के दौरान जब कुछ समूह हिंसा फैलाने की कोशिश कर रहे थे, भारत ने कार्रवाई की, लेकिन बैश्लेट ने बिना तथ्य समझे इसे मानवाधिकार उल्लंघन का मामला बता दिया।
26 जनवरी की हिंसा की कोशिशों की आड़ में भारत को कठघरे में खड़ा करने की उनकी कोशिश साफ तौर पर राजनीतिक थी, न कि मानवाधिकार से जुड़ी।
मुस्लिम, दलित और आदिवासी मामलों पर एकतरफा आरोप
बैश्लेट ने कई मंचों पर यह दावा किया कि भारत में मुस्लिमों, दलितों और आदिवासियों पर हमले बढ़ रहे हैं।
यह बयान भी बिना किसी मजबूत आधार के थे और सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को नुकसान पहुँचाने वाले नैरेटिव को बढ़ाते थे।
उनकी हर टिप्पणी विपक्ष के नैरेटिव को अंतरराष्ट्रीय समर्थन देती थी। इसलिए कॉन्ग्रेस के लिए बैश्लेट किसी “मानवाधिकार नेता” से ज्यादा,
एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय साथी जैसी हैं जिनकी आवाज भारत सरकार की आलोचना करने में उपयोगी साबित होती है।

