Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ का बस्तर, जो कभी अपने घने जंगलों, आदिवासी परंपराओं और खूबसूरती के बावजूद नक्सल हिंसा के कारण सुर्खियों में रहा, अब बदलाव की राह पर है। बीजापुर जिले में स्थित बस्तर का सबसे ऊंचा जलप्रपात ‘नंबी’ अब पूरी तरह नक्सलियों के कब्जे से मुक्त हो चुका है।
करीब 500 फीट ऊंचाई से गिरती पानी की धाराएं अब न सिर्फ पर्यटकों को लुभा रही हैं, बल्कि बस्तर के बदलते हालात की कहानी भी कह रही हैं। करीब दो दशक बाद यह इलाका पहली बार आम नागरिकों और सैलानियों के लिए खोला गया है।
पहले जहां नंबी की पहाड़ियों पर सन्नाटा और गोलियों की आवाज गूंजती थी, अब वहां मॉनसून की हर बूंद एक नई शुरुआत का संकेत दे रही है।
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Chhattisgarh: करेगुट्टा में चला सबसे बड़ा ऑपरेशन
इस इलाके को नक्सल मुक्त करने के लिए सुरक्षाबलों ने हाल ही में करेगुट्टा पहाड़ पर एक बड़ा अभियान चलाया। इस ऑपरेशन के बाद न सिर्फ नंबी जलप्रपात, बल्कि उसके आसपास के कई दुर्गम इलाके भी सुरक्षाबलों के नियंत्रण में आ चुके हैं।
अब यह क्षेत्र पर्यटन के लिए पूरी तरह सुरक्षित और तैयार है। प्रशासन ने साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। नंबी की ऊंची चोटियों पर अब ट्रैकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग और रैपलिंग जैसे रोमांचक खेलों की शुरुआत हो रही है।
मानसून में खिल उठा ‘नया बस्तर’
बारिश की पहली फुहारों के साथ ही नंबी की वादियों में हरियाली लौट आई है। यह इलाका अब प्रकृति प्रेमियों और एडवेंचर टूरिस्ट्स के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं। वर्षों तक जो जगह डर और हिंसा की वजह से खाली रही, अब वहां जीवन की चहचहाहट लौट रही है।
बीजापुर जिला प्रशासन इस पूरे क्षेत्र को ‘स्पेशल टूरिज्म ज़ोन’ के रूप में विकसित करने की योजना बना रहा है। यहां आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों का भी संरक्षण किया जा रहा है।
अन्य पर्यटन स्थलों का भी विकास
सिर्फ नंबी ही नहीं, बल्कि लंकापल्ली, भद्रकाली, महीमरका, नेलसनार और तारलागुड़ा जैसे अन्य प्राकृतिक स्थलों को भी टूरिज्म मैप पर लाने की कोशिश जारी है। इन सभी क्षेत्रों को इंद्रावती नदी के किनारे बसे होने का प्राकृतिक लाभ मिला है, जो इन्हें और अधिक आकर्षक बनाता है।
बीजापुर के कलेक्टर संबित मिश्रा बताते हैं, “हम विस्तृत कार्ययोजना के साथ जिले के पर्यटन स्थलों को सुरक्षित और सुलभ बना रहे हैं। यहां का शांत वातावरण अब बस्तर की नई पहचान बनेगा।”
बस्तर की नई पहचान
आज बस्तर सिर्फ संघर्ष और नक्सलवाद का पर्याय नहीं रहा, बल्कि यह उम्मीद, विकास और पर्यटन का प्रतीक बनता जा रहा है। जो धरती कभी खून से भीगी थी, वह अब साहसिक पर्यटन के रंगों से सज रही है।
नंबी जलप्रपात की गूंज अब नक्सली डर नहीं, बल्कि आज़ादी और आत्मविश्वास की आवाज़ बन चुकी है। आने वाले समय में यह इलाका बस्तर की एक नई पहचान गढ़ेगा – एक ऐसी पहचान, जो प्रकृति, रोमांच और शांति से भरी होगी।
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