चीन यात्रा के दौरान मोदी-कै मुलाक़ात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के दौरान रविवार को एक असामान्य और बेहद अहम घटनाक्रम सामने आया।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगी और ‘दाहिने हाथ’ माने जाने वाले कै की को मोदी से मिलने और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन से इतर उनके सम्मान में भोज आयोजित करने का निर्देश दिया।

इस मुलाक़ात ने चीन की राजनीतिक हलचल को गहराई से प्रभावित किया। कै को देश का दूसरा सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है, जिनसे विदेशी राजनयिक मिलने की ख्वाहिश तो रखते हैं, पर उनकी पहुँच मुश्किल है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) में उनकी छवि ऐसे कड़े नेता की है, जो शायद ही कभी मुस्कुराते हों और जिनसे बीजिंग का हर हलका भयभीत रहता है।
45 मिनट की अहम बातचीत
प्रधानमंत्री मोदी और कै की बीच 45 मिनट लंबी मुलाक़ात हुई, जिसमें द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने के उपायों पर चर्चा हुई।
इस दौरान कै ने न सिर्फ़ वार्ता की, बल्कि दुर्लभ मानी जाने वाली मुस्कान के साथ तस्वीरें भी खिंचवाईं।
उन्होंने मोदी से यह भी कहा कि शी जिनपिंग ने उन्हें विशेष रूप से उनके लिए भोज आयोजित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि मोदी भोजनप्रिय नहीं माने जाते।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस मुलाक़ात की तुलना करें, तो इसे राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत आगमन और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से उनकी अनौपचारिक भेंट के समान माना जा सकता है।
पर्दे के पीछे की ताक़त
कै असल में चीन के उस ‘पीठ कार्यालय’ का चेहरा हैं, जिसे पार्टी का वास्तविक शक्ति केंद्र कहा जाता है। वे शी जिनपिंग के शीर्ष प्रवर्तक हैं और पर्दे के पीछे से पूरे तंत्र को संचालित करते हैं।
व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो मोदी और कै की मुलाक़ात, शी जिनपिंग के साथ हुई औपचारिक मुलाक़ात से कहीं अधिक महत्व रखती है।
इस मुलाक़ात ने यह संकेत दिया कि भारत-चीन संबंधों की पटरी पर वापसी बीजिंग के उच्चतम स्तर से सुनिश्चित की जा रही है।
कै नौकरशाही की अड़चनों को दरकिनार कर बदलावों को लागू करने की रणनीति के लिए प्रसिद्ध हैं।
संबंध सुधार की गंभीरता का संकेत
चीनी राजनीतिक पदानुक्रम में इस तरह किसी नेता को विदेशी समकक्ष के साथ सीधे बैठाना असामान्य माना जाता है।
मगर शी जिनपिंग ने मोदी को कै के साथ बैठाकर यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वे भारत के साथ संबंध सुधार को लेकर गंभीर हैं और इसे सीधे सत्ता केंद्र से क्रियान्वित करना चाहते हैं।
इस प्रकार यह भेंट केवल औपचारिकता नहीं बल्कि दो एशियाई महाशक्तियों के बीच बदलते समीकरण और आपसी भरोसे की नई शुरुआत का प्रतीक मानी जा रही है।