बिहार चुनाव 2025 की आहट के साथ ही राज्य की राजनीति में असाधारण हलचल दिखने लगी है। इस बार का चुनाव सिर्फ चेहरों की लड़ाई नहीं, बल्कि उन मुद्दों की टक्कर है जिनसे आम जनता रोजाना जूझती है। बेरोजगार युवाओं की आवाज, महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और गांवों में विकास की धीमी रफ्तार—यही चुनाव का असली एजेंडा बन चुके हैं।
जनता की पहली और सीधी मांग—रोजगार
बिहार के हर जिले में युवाओं की एक ही मांग सुनाई देती है—सरकारी नौकरियां, पारदर्शी भर्ती और समय पर परीक्षा-परिणाम। पिछले वर्षों में भर्ती प्रक्रियाओं की देरी ने युवाओं में नाराजगी बढ़ाई है।
गांवों में लोग चाहते हैं कि इस बार जो भी सरकार बने, वह सड़क, सिंचाई, बाढ़ राहत और स्वास्थ्य सेवाओं पर ईमानदार काम करे। जनता अब वादों से ज्यादा नतीजे चाहती है।
राजनीतिक समीकरण: कौन कितना मजबूत?
महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर युवा मतदाताओं पर सीधी पकड़ बनाए हुए हैं। ग्रामीण इलाकों में RJD का आधार पहले से मजबूत माना जा रहा है। वहीं, NDA—मुख्यत: BJP और JDU—शहरी क्षेत्रों, महिलाओं और सरकारी योजनाओं पर भरोसा रखता है।
BJP अपने संगठन, केंद्र सरकार की योजनाओं और मजबूत महिला वोट बैंक पर दांव लगा रही है। JDU को उम्मीद है कि नीतिश कुमार के शासन का अनुभव वोट दिला सकता है।
इस बार छोटे दल—VIP, HAM, AIMIM—त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनाकर दोनों बड़े गठबंधनों के समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
महिलाओं की भूमिका—2025 का सबसे निर्णायक फैक्टर
बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या और जागरूकता दोनों बढ़ी है।
क्योंकि उद्देश्य साफ और सटीक है जो कि बिहार की जनता के लिए जरूरी है।
1.शराबबंदी,
2.सुरक्षा,
3.शिक्षा,
4.विकास
और घर की आर्थिक स्थिति महिलाओं के लिए प्रमुख मुद्दे हैं।
यही कारण है कि महिला वोट NDA और RJD दोनों के लिए “गेम बदलने वाली ताकत” माना जा रहा है।
बदलाव की हवा—पर अंतिम फैसला अभी खुला
बिहार में इस बार न तो लहर है, न ही साफ-साफ बढ़त।
ग्रामीण इलाकों में महागठबंधन मजबूत, तो शहरों और महिलाओं में NDA की पकड़ ज्यादा दिखाई देती है।
युवा वर्ग बदलाव चाहता है, पर किस दिशा में—यह अभी अंतिम चरण में तय होगा।
निष्कर्ष साफ है:
इस बार बिहार चुनाव में मुद्दे जीतेंगे, शोर नहीं।
रोजगार, महिलाएँ और बदलाव—इस बार का असली जनादेश तय करेंगे।

