भारतीय रक्षा मंत्रालय ने रोकी बोइंग डील, नए विकल्पों की समीक्षा शुरू
भारत सरकार ने अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोइंग से 31,500 करोड़ रुपये की डील फिलहाल रोक दी है। फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना ने इसे अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है और रक्षा मंत्रालय अब इस पर पुनर्विचार कर रहा है।
इस डील में P-8I समुद्री टोही विमानों की अतिरिक्त खरीद शामिल थी जो भारतीय नौसेना के लिए रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
समीक्षा की यह प्रक्रिया ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 25% टैरिफ़ लगाने की घोषणा की है।

इस टैरिफ़ से भारत में अमेरिकी रक्षा उपकरणों की लागत अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है, जिससे उच्च मूल्य वाली रक्षा खरीदों की रणनीति पर पुनर्विचार शुरू हो गया है।
मोदी-लूला वार्ता और चीन की चौंकाने वाली प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परिस्थिति में ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डे सिल्वा से फ़ोन पर चर्चा की और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने की बात कही।
यह संकेत है कि भारत अब अमेरिका के बाहर अन्य सहयोगियों के साथ गहरे रणनीतिक संबंधों की दिशा में सक्रिय हो रहा है।
इस दौरान चीन के राजदूत का बयान भी आश्चर्यजनक रहा, जिसमें उन्होंने भारत की संप्रभुता का खुला समर्थन किया और कहा कि भारत के आंतरिक फैसलों में कोई भी बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं होना चाहिए।
यह घटनाक्रम वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों को हिला देने वाला है, क्योंकि पहली बार चीन खुले तौर पर भारत के संप्रभुता की पैरवी करता दिखा है, जो सामान्यतः सीमा विवादों और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के कारण विरुद्ध पक्ष में रहा है।
P-8I डील पर विराम का गहरा प्रभाव: रणनीति, स्वायत्तता और लागत की तिकड़ी
P-8I समुद्री टोही विमान भारतीय नौसेना के लिए अत्यंत आवश्यक माने जाते हैं। मौजूदा बेड़ा 40,000 से अधिक उड़ान घंटे पूरे कर चुका है और हिन्द महासागर क्षेत्र में 50 से अधिक नौसेनिक जहाजों और 20,000 वाणिज्यिक जहाजों पर निगरानी के लिए इन विमानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
नौसेना लंबे समय से 18 विमानों का बेड़ा चाहती थी जिससे व्यापक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
हालाँकि 2009 में $2.2 बिलियन में 8 विमान की पहली डील और 2016 में चार अतिरिक्त विमानों के लिए $1 बिलियन की डील के बाद यह तीसरी खरीद होनी थी।
मई 2021 में अमेरिका ने 6 अतिरिक्त P-8I विमानों की बिक्री को मंजूरी दी थी, जिसकी अनुमानित लागत $2.42 बिलियन थी, जो जुलाई 2025 तक बढ़कर $3.6 बिलियन तक पहुँच गई। यह 50% की वृद्धि भारत के लिए अस्वीकार्य बन गई।
‘अमेरिका फ़र्स्ट’ नीति से पैदा हुआ अविश्वास और प्रतिरोध
‘अमेरिका फ़र्स्ट’ नीति के तहत अमेरिका ने जो नया टैरिफ़ लगाया है, उससे भारतीय रक्षा खरीद नीति पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है।
अमेरिकी प्रशासन चाहता था कि भारत चीन की बढ़ती पैठ का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी सैन्य उपकरणों जैसे कि P-8I और F-35 स्टील्थ फाइटर जेट्स की खरीद में तेजी लाए।
लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसकी रक्षा खरीद केवल सुरक्षा आवश्यकताओं और रणनीतिक आकलनों पर आधारित होगी, न कि कूटनीतिक दबाव पर।
विदेश मंत्रालय ने दो टूक कहा है कि भारत अपने निर्णयों में पूरी तरह स्वतंत्र है और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं।
इस सख्त रुख से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में निर्णायक कदम उठा रहा है।
बोइंग की भारत में मौजूदगी पर भी पड़ा असर, पर रखरखाव जारी रहेगा
बोइंग वर्तमान में भारत में 5,000 कर्मचारियों के साथ $1.7 बिलियन का आर्थिक योगदान देता है। यदि यह डील स्थायी रूप से रद्द हो जाती है तो अमेरिकी कंपनी को बड़ा नुकसान हो सकता है।
हालांकि मौजूदा P-8I विमानों के रखरखाव और सहयोग का कार्य तमिलनाडु के होसुर स्थित एयर वर्क्स फैसिलिटी में पूर्ववत जारी रहेगा।
इस बात को लेकर रक्षा सूत्रों ने संकेत दिया है कि डील पूरी तरह रद्द नहीं हुई है बल्कि “फिलहाल रोकी गई है”, जिससे इस पर फिर से बातचीत या नये मूल्यांकन की संभावनाएँ बनी हुई हैं।
अमेरिकी FMS (Foreign Military Sales) फ्रेमवर्क के अंतर्गत कीमत पर दोबारा वार्ता हो सकती है।
फ्रांस और ब्राज़ील को मिल सकता है रणनीतिक लाभ
डील के स्थगित होने से फ्रांस और ब्राज़ील जैसे सहयोगियों के लिए अवसर खुल सकते हैं। फ्रांसीसी रक्षा कंपनियाँ भारत को निगरानी और पनडुब्बी रोधी विमानों के लिए वैकल्पिक प्रस्ताव दे सकती हैं।
वहीं ब्राज़ील की Embraer जैसी कंपनियाँ भी रक्षा विमान निर्माण में आगे आ रही हैं। लूला-मोदी बातचीत इसी संभावित गठबंधन की बुनियाद हो सकती है।
भारत का बदलता रुख: रक्षा खरीद में आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम
भारत की इस रणनीति का उद्देश्य केवल अमेरिका को जवाब देना नहीं बल्कि दीर्घकालिक रूप से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना भी है।
अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता से बचते हुए भारत अब एक बहुध्रुवीय रक्षा साझेदारी मॉडल की ओर बढ़ रहा है, जिसमें वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच राष्ट्रीय हित सर्वोपरि रहेगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि भारत अब कोई भी समझौता कूटनीतिक दबाव में नहीं करेगा और हर रक्षा खरीद निर्णय राष्ट्र की संप्रभुता, सामरिक स्वतंत्रता और आर्थिक संतुलन को ध्यान में रखकर ही किया जाएगा।