Bangladesh: बांग्लादेश से दिल दहला देने वाला एक मामला सामने आया है, जिसने न केवल दो परिवारों को उजाड़ दिया बल्कि देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए हैं। रंगपुर जिले में उग्र भीड़ ने दो हिंदू पुरुषों की पीट-पीटकर हत्या कर दी।
मृतकों की पहचान घनीरामपुर गांव के 45 वर्षीय रुपलाल दास और उनके रिश्तेदार 40 वर्षीय प्रदीप दास के रूप में हुई। रुपलाल पेशे से मोची थे और जूते सिलकर परिवार का खर्च चलाते थे, ज
बकि प्रदीप वैन चलाकर अपनी रोजी-रोटी कमाते थे। इस घटना के बाद रुपलाल की पत्नी न्याय की गुहार लगा रही हैं और उनके तीन छोटे बच्चों के सिर से पिता का साया उठ चुका है, वहीं प्रदीप का परिवार भी गहरे सदमे में है।
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Bangladesh: बेरहमी से की हिंदुओं की पिटाई
यह घटना शनिवार रात करीब 9 बजे तरगंज-काजीहाट मार्ग के बत्ताला इलाके में हुई। बताया जाता है कि हाल ही में इस क्षेत्र में एक बच्चे की हत्या और वैन चोरी की घटना हुई थी, जिससे स्थानीय लोगों में तनाव और शक का माहौल था।
इसी दौरान रुपलाल और प्रदीप को कुछ लोगों ने वैन चोरी और बच्चे की चोरी के शक में रोक लिया। जांच के दौरान उनकी वैन में चार छोटी बोतलें पाई गईं,
जिनमें से एक से कथित तौर पर फॉर्मलिन जैसी गंध आ रही थी। बस, यही शक उग्र भीड़ के गुस्से में बदल गया और लोगों ने दोनों को बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया।
पेड़ से बांधकर छोड़ा
भीड़ ने दोनों को इतना मारा कि वे बेहोश हो गए और फिर उन्हें बांधकर एक नजदीकी स्कूल के मैदान में छोड़ दिया गया। देर रात पुलिस को सूचना मिली और वे मौके पर पहुंचे, जिसके बाद दोनों को अस्पताल ले जाया गया।
डॉक्टरों ने रुपलाल को मृत घोषित कर दिया, जबकि प्रदीप ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। इस क्रूरता ने न केवल इंसानियत को शर्मसार किया बल्कि यह भी दिखा दिया कि किस तरह अफवाहें और शक की बुनियाद पर निर्दोष लोगों की जान ले ली जाती है।
एक साल में 142 हिंदुओं को बनाया निशाना
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक साल में बांग्लादेश में 142 भीड़ हमलों की घटनाएं हुईं, जिनमें 69 लोगों की मौत हुई।
इनमें से छह पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय से थे। हिंदू समुदाय पर अकेले 21 बार भीड़ के हमले हुए, जो इस बात का सबूत है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
यह दर्दनाक वारदात केवल दो परिवारों की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है कि अगर कानून का डर खत्म हो गया तो भीड़तंत्र और नफरत का यह सिलसिला अनियंत्रित हो जाएगा।
जरूरत है कि बांग्लादेश की सरकार और प्रशासन दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दे, ताकि निर्दोष लोगों पर इस तरह की बर्बरता दोबारा न हो और अल्पसंख्यक समुदाय को यह भरोसा मिल सके कि कानून उनके साथ खड़ा है।