Friday, October 3, 2025

अशोक सिंघल: रामजन्मभूमि आंदोलन के प्रखर सेनानी, संन्यासी, प्रचारक और हिन्दू जागरण के सूत्रधार

अशोक सिंघल

27 सितम्बर 1926 को आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन आगरा में जन्मे अशोक सिंघल का नाम भारतीय समाज और राजनीति के हिन्दू जागरण आंदोलन से गहराई से जुड़ा है।

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मूलतः अलीगढ़ जिले के बिजौली गांव से सम्बंधित यह परिवार उच्च शासकीय पद पर आसीन महावीर जी और धर्मनिष्ठा से भरी मां विद्यावती के सान्निध्य में पला। सात भाइयों और एक बहन में चौथे स्थान पर रहे अशोक जी का बचपन संतों और विद्वानों के बीच बीता।

https://twitter.com/AmitShah/status/1971834492768976952/photo/1

प्रारंभिक जीवन और संघ प्रवेश

प्रयाग में शिक्षा के दौरान 1942 में प्रो. राजेन्द्र सिंह ‘रज्जू भैया’ से प्रभावित होकर वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से जुड़े। मां विद्यावती ने स्वयं संघ की प्रार्थना सुनकर उन्हें शाखा जाने की अनुमति दी। यहीं से उनका जीवन राष्ट्रसेवा की दिशा में समर्पित हो गया।

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विभाजन की त्रासदी ने उनके मन को विचलित किया और वे सत्ता के लालच में फंसे नेताओं से निराश हुए। परिणामस्वरूप उन्होंने निश्चय किया कि अपना जीवन संघ और राष्ट्र को समर्पित करेंगे।

शिक्षा, संगीत और वैचारिक परिपक्वता

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने धातुविज्ञान में अभियंता की उपाधि प्राप्त की। साथ ही, अशोक जी का झुकाव शास्त्रीय संगीत की ओर भी रहा और पंडित ओमकारनाथ ठाकुर जैसे आचार्यों से उन्हें गायन की शिक्षा मिली।

संघ गीतों की धुनें और लयबद्धता विकसित करने में उनका बड़ा योगदान रहा। यह उनके व्यक्तित्व का एक अद्वितीय संतुलन था, एक ओर अभियंता और कलाकार, दूसरी ओर संन्यासी और प्रचारक।

संघ प्रचारक का जीवन

1948 में जब संघ पर प्रतिबंध लगा, तब अशोक जी ने सत्याग्रह कर जेल का रास्ता चुना। जेल से लौटकर उन्होंने अंतिम परीक्षा पूरी की और 1950 में पूर्णकालिक प्रचारक बने। उन्होंने गोरखपुर, प्रयाग, सहारनपुर और कानपुर जैसे प्रांतों में कार्य किया।

कानपुर में रहते हुए उनका सम्पर्क वेदों के गहन विद्वान श्रीरामचन्द्र तिवारी और संघ के सरसंघचालक गुरुजी से हुआ। इन दोनों का प्रभाव उनके जीवन पर निर्णायक रहा।

आपातकाल और संघर्ष का दौर

1975 के आपातकाल ने पूरे राष्ट्र को हिला दिया था। इस समय अशोक जी भूमिगत होकर इंदिरा गांधी की तानाशाही का विरोध करते रहे और लोगों को आंदोलन के लिए तैयार करते रहे।

1977 में उन्हें दिल्ली प्रांत का प्रचारक बनाया गया, जहाँ वे संघ के संगठन विस्तार में जुटे।

विश्व हिन्दू परिषद और विराट हिन्दू सम्मेलन

1981 में दिल्ली में डॉ. कर्ण सिंह के नेतृत्व में विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ, पर इसके पीछे की शक्ति अशोक सिंघल और संघ की थी। इसके बाद उन्हें विश्व हिन्दू परिषद का दायित्व सौंपा गया।

परिषद के संयुक्त महामंत्री, महामंत्री, कार्याध्यक्ष और अध्यक्ष के रूप में उन्होंने संगठन को राष्ट्रीय ही नहीं, वैश्विक पहचान दिलाई।

रामजन्मभूमि आंदोलन की धुरी

अशोक जी की नेतृत्व क्षमता ने एकात्मता रथयात्रा, रामजानकी रथयात्रा, रामशिला पूजन और रामज्योति कार्यक्रमों के माध्यम से रामजन्मभूमि आंदोलन को गति दी। उनकी विनम्रता और दृढ़ निश्चय ने देशभर के संतों को एक सूत्र में बांधा।

अयोध्या पहुंचने पर बार-बार प्रतिबंध झेलने के बावजूद वे प्रशासन को चकमा देकर वहां पहुंच जाते थे। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी ढांचे का ध्वंस इस आंदोलन का निर्णायक क्षण बना, जिसमें उनकी संगठन क्षमता की भूमिका सर्वमान्य है।

विचारधारा और समाजिक दृष्टिकोण

अशोक जी का मानना था कि हिन्दू समाज में पिछड़े वर्गों को मंदिरों में सम्मान मिले और उन्हें धर्मांतरण की ओर धकेलने वाली बाधाओं को हटाया जाए।

इसीलिए उन्होंने ‘परावर्तन’ अभियान, गंगा और गौ रक्षा, संस्कृत प्रचार, एकल विद्यालय और सेवा कार्य जैसे कई आयामों को परिषद से जोड़ा। उनके प्रयासों से लाखों युवाओं ने हिन्दू समाज की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाई।

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अंतरराष्ट्रीय यात्राएँ और हिन्दू एकता

अशोक जी ने न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में हिन्दू समाज को जोड़ने का प्रयास किया। अमेरिका, इंग्लैंड, हालैंड जैसे देशों में उनके दौरे ने हिंदुत्व की आवाज़ को वैश्विक स्तर पर पहुँचाया। उनके नेतृत्व में परिषद ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिन्दू अस्मिता का परचम लहराया।

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अंतिम दिन और विरासत

लंबे समय तक फेफड़ों की बीमारी से जूझने के बाद 17 नवम्बर 2015 को उनका निधन हुआ। अंतिम दिनों में भी वे परिषद कार्यालय में शाखा में जाते और आशावादी दृष्टिकोण से कार्यकर्ताओं को प्रेरित करते रहे।

2011 के बाद स्वास्थ्य कारणों से वे सक्रिय राजनीति और संगठन से दूर हो गए थे, परंतु उनकी स्मृति और मार्गदर्शन की धारा अंत तक प्रवाहित होती रही।

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आज अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर का भव्य निर्माण उनकी आजीवन तपस्या का मूर्त रूप है। अशोक सिंघल का जीवन संन्यासी की आत्मानुशासन और योद्धा की जुझारूपन का अद्भुत संगम था।

उनकी हुंकार ने रामभक्तों के हृदयों को आंदोलित किया और उनके संगठन कौशल ने हिन्दू समाज को नयी दिशा दी। हिन्दू जागरण और राष्ट्रीय चेतना के इतिहास में उनका नाम सदैव अमर रहेगा।

रामजन्मभूमि आन्दोलन के पुरोधा अशोक सिंघल का स्मरण

  1. विश्व हिन्दू परिषद् के पूर्व अध्यक्ष हिन्दू हृदय सम्राट अशोक सिंघल का जन्म 27 सितंबर 1926 को हुआ था
  2. BHU से इंजीनियरिंग करने वाले सिंघल ने समाज सेवा का मार्ग चुना और संघ के प्रचारक बने
  3. रामजन्मभूमि आन्दोलन के प्रमुख रणनीतिकार सिंघल ने देश के गाँव गाँव में संगठन का विस्तार किया
  4. सभी वर्गों के लोगों और सन्तों को जोड़कर सिंघल ने यह मिथक तोड़ दिया कि हिन्दू एकता नहीं हो सकती
  5. देवरहा बाबा, महंत अवेद्यनाथ, काँची शंकराचार्य, पेजावर स्वामी जैसे वरिष्ठ सन्तों ने उन्हें आशीर्वाद दिया
  6. 1981 से ही सिंघल ने अनेक हिन्दू सम्मेलनों में लाखों भीड़ जुटाकर आन्दोलन का गहरा आधार बनाया
  7. 1992 में विवादित ढ़ांचा विध्वंस की अगुवाई के लिए उन्हें जिम्मेदार माना जाता रहा है
  8. उन्होंने विहिप को धर्म-संस्कृति जागरण, सेवा,  गोरक्षा, सामाजिक सुरक्षा जैसे कामों से फैलाव दिया
  9. श्रीरामजन्मभूमि को आक्रांताओं के पंजों से मुक्त कराने के लिए उन्हें अनेक बार घायल होना पड़ा
  10. रामजन्मभूमि पर भगवान राम के भव्य मंदिर का निर्माण आज प्रगति पर है उसमें उनका योगदान अहम है
  11. 17 नवंबर 2015 को उनके निधन पर प्रधानमंत्री मोदी समेत लाखों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी
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