Tuesday, December 2, 2025

AASHISH SHARMA: नक्सलियों से लड़ते-लड़ते शहीद हुए इंस्पेक्टर आशीष शर्मा- बहादुरी, त्याग और अधूरी खुशियों की कहानी

AASHISH SHARMA: भारत आज एक और वीर सपूत को याद कर रहा है। मध्य प्रदेश पुलिस के इंस्पेक्टर आशीष शर्मा नक्सलियों के साथ एनकाउंटर में शहीद हो गए। मध्यप्रदेश–छत्तीसगढ़–महाराष्ट्र बॉर्डर के घने जंगलों में हुई इस मुठभेड़ ने देश को झकझोर दिया और हर भारतीय को दुख से भर दिया।

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बोहानी गांव का सरल, जिम्मेदार और देशभक्त बेटा

AASHISH SHARMA: नरसिंहपुर जिले के बोहानी गांव में जन्मे आशीष शर्मा बचपन से ही शांत, सादगीपूर्ण और अनुशासित स्वभाव के थे। माता-पिता देवेंद्र और शर्मिला शर्मा तथा छोटे भाई के साथ पले-बढ़े आशीष में देश के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा बहुत प्रारंभ से ही स्पष्ट दिखती थी।

परिवार बताता है कि उनमें जिम्मेदारी, समर्पण और संवेदनशीलता जन्मजात थी। कठोर और बेहद जोखिमपूर्ण मिशनों के लिए जानी जाने वाली हॉक फोर्स में शामिल होना ही साबित कर देता है कि आशीष ने सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य चुना था।

टीम में वे बहुत जल्दी उन अधिकारियों में शामिल हो गए जिन पर हर ऑपरेशन में भरोसा किया जाता है। दो बार Gallantry Medal और Out-of-Turn प्रमोशन उनकी वीरता और दक्षता की अनूठी पहचान बन चुके थे।

रौंदा जंगल ऑपरेशन—जहाँ आशीष ने लिखी बहादुरी की मिसाल

AASHISH SHARMA: फरवरी 2025 का रौंदा जंगल ऑपरेशन आशीष शर्मा के करियर का सबसे यादगार अध्याय रहा। इस मिशन में उनकी टीम ने तीन महिला नक्सलियों को मार गिराया था।

यह ऑपरेशन इतना सटीक और साहसिक था कि आज भी हॉक फोर्स की ट्रेनिंग में इसे “आदर्श उदाहरण” के रूप में बताया जाता है। यह वह क्षण था जिसने आशीष को यूनिट की धड़कन बना दिया।

शादी की खुशियाँ, जो हमेशा के लिए अधूरी रह गईं

ड्यूटी की कठिनाइयों के बीच आशीष अपने निजी जीवन में भी कदम बढ़ा रहे थे। उनकी शादी जनवरी 2026 में होने वाली थी। घर में खुशी, उत्सुकता और तैयारियाँ थीं।

मगर किसे अंदाज़ा था कि शहनाई की जगह अब सन्नाटा होगा और हँसी की जगह आँसू। एक सपना जो कुछ ही महीने बाद पूरा होना था, अब हमेशा के लिए अधूरा रह गया।

19 नवंबर की सुबह—जब ऑपरेशन ने लिया घातक मोड़

AASHISH SHARMA: MP–छत्तीसगढ़–महाराष्ट्र की सीमा पर नक्सलियों की गतिविधियाँ बढ़ने की खबर मिली। कई टीमें सर्च ऑपरेशन के लिए जंगल में उतरीं, जिसमें हॉक फोर्स भी शामिल थी। यह इलाका नक्सलियों का मजबूत गढ़ माना जाता है।

जैसे ही टीम आगे बढ़ी, नक्सलियों ने घात लगाकर अचानक फायरिंग शुरू कर दी। आशीष सबसे आगे थे। उन्होंने गोलीबारी के बीच अपनी पोज़िशन बनाए रखी, अपनी टीम को सुरक्षित स्थान तक पहुँचने में मदद की और लगातार जवाबी फायरिंग करते रहे।

गोली लगने के बाद भी वे लड़ते रहे, जब तक कि उनका शरीर जवाब नहीं दे गया।

गांव की अंतिम यात्रा—हजारों लोगों का सैलाब और पिता की गर्व-भरी आँखें

जब उनके पार्थिव शरीर को बोहानी लाया गया, तो हजारों लोग अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े। पूरा गांव, पूरा जिला और आसपास के इलाके शोक में डूब गए। पिता का सिर गर्व से ऊँचा था, लेकिन आँखों में दर्द का सैलाब साफ झलक रहा था—एक ऐसा दर्द जो सिर्फ शहीदों के परिवार ही समझते हैं।

सरकार की घोषणा—सम्मान, जो इस बलिदान के सामने छोटा है

राज्य सरकार ने परिवार के लिए 1 करोड़ रुपये की सहायता और छोटे भाई को सब-इंस्पेक्टर की नौकरी देने की घोषणा की है। हालांकि यह कदम जरूरी है, पर आशीष जैसा बेटा किसी सहायता से लौटाया नहीं जा सकता। उनका बलिदान किसी एक परिवार का नहीं, पूरे देश का नुकसान है।

AASHISH SHARMA:एक नाम, जो साहस की कहानी हमेशा सुनाता रहेगा

आशीष भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी वीरता, कर्तव्यनिष्ठा और अद्भुत साहस आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर हमेशा जीवित रहेगा।

उन्होंने दिखाया कि देश की सेवा सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक पवित्र प्रतिज्ञा है—और इस प्रतिज्ञा के लिए उन्होंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।

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