Monday, November 25, 2024

India-Russia Relations: भारत-रूस का रिश्ता इतना गहरा क्यों है, क्यों PM मोदी के दौरे से पश्चिमी देशों के पेट में दर्द हो रहा है? इन फैक्ट्स से समझें

India-Russia Relations: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज से दो दिवसीय (8-9 जुलाई) रूस के दौरे के लिए रवाना हो रहे हैं। प्रधानमंत्री रूस, रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन के निमंत्रण मॉस्को पर जा रहे हैं। दोनों नेता 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस दौरान द्विपक्षीय हितों के मुद्दों पर बातचीत की जाएगी। इसके बाद प्रधानमंत्री 10 जुलाई को ऑस्ट्रिया जायेंगे। बता दें कि फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद ये पीएम मोदी की पहली रूस यात्रा है। भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच एक संतुलित और न्यूट्रल स्टैंड अपनाया है।

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रूस ने पीएम मोदी के इस दौरे को अहम बताया है। पीएम मोदी के रूस के इस दौरे से पश्चिम देशों में जलन देखने को मिल रही है। इस बात का दावा क्रेमिलन (रूसी राष्ट्रपति कार्यालय) ने किया है।

रूसी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव के मुताबिक पश्चिमी देश पीएम मोदी के इस दौरे बहुत ही बारीकी और जलन की भावना से नजरें गढ़ाए हुए हैं। उनकी निगरानी का मतलब ये है की वो इसे बहुत महत्व देते हैं जो कि बिल्कुल गलत नहीं है। लेकिन उनका कहना ये है कि युद्ध के दौरान पीएम मोदी ने यूक्रेन से बात की और अब वो रूस जा रहे हैं। दोनों दुश्मन देशों के भारत से संबंध अच्छे कैसे हो सकते हैं। खबरें सामने आयी थी की पीएम मोदी यूक्रेनी राष्ट्रपति से कई बार फोन पर बात कर चुके हैं। भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले इस
युद्ध को खत्म करने की अपील पहले ही कर चुका है।

पीएम मोदी और पुतिन की ये मुलाकात दो साल बाद होगी। इससे पहले सितंबर 2022 में उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में इनकी मुलकात हुई थी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब पश्चिमी देशों को दोनों के अच्छे संबंधों से जलन हो रही है, 950-1960 में भी से पश्चिमी देशों में भारत-रूस के रिश्तों से जलन होती दिखी है। हालांकि इन सब से भारत को कोई ख़ास फरक नहीं पड़ता है वह अपनी स्वतंत्र नीति के साथ आगे बढ़ रहा है। यही वजह है कि यूक्रेन संकट में भी भारत और रूस के संबंधों में कोई आंच नहीं आयी। दो साल पहले जब पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन मिले थे तब दोनों नेताओं ने कहा था, ‘रूस और भारत की दोस्ती अटूट है’। भारत और रूस को हर संकट पर साथ खड़े देखा जायेगा। भारत की ये न्यूट्रल रहने वाली बात हर किसी को आकर्षित कर रही है।

जलन होने का कारण क्या है,समझें इन तथ्यों से

  • 1960 में सोवियत संघ की निकिता खुश्चेव और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के बीच छिड़ी जंग के दौर में पंडित नेहरू ने निर्गुट आंदोलन खड़ा करके तीसरे विश्व के सपने को साकार किया था। उसके बाद से भारत ने हमेशा से वर्ल्ड पावर बैलेंस को अपने हिसाब से बनाये रखा है, लेकिन इन सब में रूस सबसे ऊपर है। भारत को जब भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जरुरत पड़ती है, तो रूस हमेशा एक भरोसेमंद साथी की तरह खड़ा दिखाई दिया है।
  • यूएन के मंच पर अपने वीटो पावर के साथ भी रूस ने भारत को समर्थन दिया है। बस यही कारण है कि इस दोस्ती पर अमरीका सही सभी पश्चिम देशों के पेट में दर्द रहा है। 1955 में निकिता खुश्चेव ने कश्मीर पर भारत का समर्थन करते हुए घोषणा की थी कि, “हम इतने करीब हैं कि अगर आप कभी हमें पहाड़ की चोटियों से भो बुलाएंगे तो भी आप हमें भारत के समक्ष खड़ा पाएंगे। बस तब से मॉस्को कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के खिलाफ एक ढाल के रूप में बना हुआ है। आइये इसे और संक्षेप में समझते हैं।
  • सोवियत संघ ने 1957, 1962 और 1971 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों पर वीटो लगा दिया था। जिसमें कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की बात का जिक्र किया गया था। इस बात पर जोर दिया गया था कि यह एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिसे भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए सुलझाना चाहिए। भारत-पाक संघर्ष पर भी उसने सामान्य तौर पर यही रुख अपनाया। भारत में राजनीतिक हलकों में इस तरह के रुख को काफी पसंद किया गया।

फिलहाल, रूस और सभी पश्चिमी देख खासकर अमेरिका और यूरोप के बीच रिश्ते कुछ खास ठीक नहीं है। इसका कारण है यूक्रेन संघर्ष और नाटो विस्तार। ऐसे में भारत का रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना पश्चिमी देशों के चिंताजनक साबित हो सकता है। ये उनकी बनायीं रणनीतियों में खलल डाल सकता है।

 

 

 

 

 

 

 

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