Saturday, November 23, 2024

Lok Sabha: मोदी सरकार में मंत्री पद से ज्यादा है इस पद की डिमांड, आखिर ये पद इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?

Lok Sabha: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार बीजेपी की सरकार बन गयी है, हालांकि इसके लिए बीजेपी को NDA गठबंधन का सहारा लेना पड़ा। इस बार बीजेपी को 240 सीटें ही मिली जो की बहुमत से 32 सीटें कम थी।

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रविवार को मोदी से एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। शपथ लेने के बाद उन्होनें अब कार्यभार संभाल लिया है। लेकिन इस नयी लोकसभा में एक पद है जिस पर सबकी नजरें टिकी है वो है लोकसभा के स्पीकर का पद। NDA के दो मुख्य दल TDP और JDU की निगाहें इस सीट पर है।

क्या ये सीट इस बार बीजेपी को नहीं मिलेगी अगर नहीं तो ये सीट आखिर मिलेगी किसको – ये बड़ा सवाल है।

Lok Sabha:अध्यक्ष के ये पद इतना महत्वपूर्ण क्यों है ?

इसके कई कारण है।। स्पीकर, लोकसभा का अध्यक्ष होता है जिसको यह सुनिश्चित करना होता है कि सदन की बैठकों का संचालन ठीक तरह से हो रहा है या नहीं, सदन में व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी भी लोकसभा अध्यक्ष की ही होती है। इसके लिए अध्यक्ष निर्धारित नियमों का इस्तेमाल करके कार्यवाही करने का अधिकार भी होता है। इसमें सदन को स्थगित करना या निलंबित भी करना शामिल है.

किस बिल पर कब वोटिंग होगी, बैठक का एजेंडा क्या है, , कौन वोट कर सकता है जैसे तमाम मुद्दों पर आखिरी फैसला लोकसभा स्पीकर का ही होता है। विपक्ष के नेता को मान्यता देने का काम भी स्पीकर का ही होता है । सदन में सैद्धांतिक तौर पर लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी पार्टी से जुड़ा न होकर बिल्कुल निष्पक्ष होता है।

कैसे होता है लोकसभा अध्यक्ष का चयन

कानून के अनुसार, नयी लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पहले ये पद खाली हो जाता है। राष्ट्रपति एक प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करता है जो की सभी को शपथ दिलाता है। और इसके बाद अध्यक्ष का चुनाव एक साधारण बहुमत से हो। इस पद पे चयन होने का वैसे यो कोई खास पैमाना नहीं है लेकिन संविधानों और संसद के नियमों की समझ होना जरुरी है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में लगातार दो बार बीजेपी को बहुमत मिली थी और पार्टी ने सुमित्रा महाजन और ओम बिरला को ये जिम्मेदारी सौंपी थी।

क्यों खास है, लोकसभा का ये पद ?

लोकसभा एक जिम्मेदारी वाला पद है। ये पद काफी खास है। संसद में इनकी भूमिका निर्णायक की होती है। ऐसी खबरें सामने आ रही है की चंद्रबाबू नायडू और नितीशकुमार इस पद को बीमा के रूप में चाहते हैं। पिछले कुछ सालों में, सत्तारूढ़ पार्टियों क।आपसी मतभेद के कई मामले सामने आए हैं, जिसके कारण पार्टियों में फूट पड़ गई और यहाँ तक कि सरकारें गिरने तक नौबत आ गयी। ऐसे मामलों में, दल-बदल विरोधी कानून लागू होता है। यह कानून सदन के अध्यक्ष क बहुत सी शक्तियां देता है। कानून के अनुसार, “सदन के अध्यक्ष के पास दल-बदल के आधार पर सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों को तय करने का पूरा धिकार है।

नीतीश कुमार ने पहले भी बीजेपी पर अपनी पार्टी को तोड़ने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। इसलिए, वह किसी बगावत के मूड में नहीं आना चाहते और स्पीकर का पद ऐसी किसी भी चाल के खिलाफ ढाल के तौर पर अपने पास चाहते हैं।

जिम्मेदारी के साथ ही आती है चुनौतियां

ये के पेचीदा पद है। यहां जिम्मेदारियां और पावर तो आती है लेकिन चुनातियां भी कम नहीं आती। अध्यक्ष को हर स्थिति में निष्पक्ष रहना होता है लेकिन इस पर विराजमान होने वाला व्यक्ति किसी बड़ी पार्टी से चुनाव जीतकर ही नियुक्त होता है। इससे टकराव होने की संभावनाएं स्वाभवाविक है। इसलिए इस पद को संभाला थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

वैसे तो इस पद पर TDP की कड़ी निगाहें टिकी हैं, लेकिन आखिर इस पद को संभालेगा कौन ये अभी भी एक बड़ा सवाल है।

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