Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले का धर्मपुर क्षेत्र इन दिनों भयानक त्रासदी से गुजर रहा है। 30 जून की रात आई मूसलाधार बारिश ने सियाठी गांव को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा टूटकर गांव पर गिर गया,
जिससे कई घर मलबे में दब गए। लेकिन इस त्रासदी के बीच एक ऐसा किस्सा सामने आया, जिसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या जानवरों को सचमुच आपदा का पूर्वाभास हो जाता है?
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Himachal Pradesh: डॉगी ने बचाई घर वालों की जान
उस रात एक परिवार के घर में दूसरी मंजिल पर सोया हुआ कुत्ता अचानक आधी रात को बुरी तरह भौंकने और रोने लगा। उसका यह व्यवहार असामान्य था। परिवार के लोग जब जागे तो देखा कि घर में बड़ी दरार आ चुकी है और पानी अंदर घुस रहा है।
वे तुरंत कुत्ते को लेकर बाहर भागे और आसपास के अन्य लोगों को भी जगाया। थोड़ी ही देर में पूरा इलाका पहाड़ी मलबे में तब्दील हो गया। आज वही लोग मंदिर में शरण लिए हुए हैं और इस चमत्कारी बचाव के लिए कुत्ते के प्रति आभार जता रहे हैं। कुत्ते ने एक नहीं बल्कि 67 जिंदगियां बचाई है।
जानवर आपदा के संकेतों को है पहचानते
यह घटना केवल एक उदाहरण नहीं है। विज्ञान और परंपरा दोनों यह मानते आए हैं कि जानवरों में आपदा के संकेतों को पहले से पहचानने की अद्भुत क्षमता होती है। जानवरों की इंद्रियां मनुष्य की तुलना में कहीं ज्यादा संवेदनशील होती हैं।
वे पृथ्वी में आने वाली सूक्ष्म तरंगों, कंपन, वायुमंडलीय दबाव और वातावरण में नमी के बदलाव को तुरंत पहचान लेते हैं। यही कारण है कि वे आपदा के पहले असामान्य व्यवहार करने लगते हैं।
सुनामी में एक भी जनावरों की नहीं हुई मौत
कुत्ते अक्सर भूकंप या बाढ़ से पहले जोर-जोर से भौंकते हैं, परेशान होते हैं, या घर छोड़कर भागने की कोशिश करते हैं। पक्षी घोंसला छोड़ देते हैं, मछलियां सतह के पास मंडराने लगती हैं, और सांप-चूहे अपनी बिलों से बाहर निकल आते हैं।
2004 में भारत के कुड्डालोर तट पर जब सुनामी आई थी, तब हजारों लोग मारे गए थे लेकिन पशु–पक्षी अपेक्षाकृत सुरक्षित रहे थे क्योंकि वे पहले ही तटीय इलाकों को छोड़ चुके थे।
इस बार भी सियाठी गांव में कुत्ते ने जो किया, वह महज संयोग नहीं था। यह प्रकृति की उस भाषा का संकेत था, जिसे जानवर पढ़ लेते हैं और इंसानों को सचेत कर सकते हैं बशर्ते हम उन्हें समझने की संवेदनशीलता रखें।
अब ज़रूरत इस बात की है कि हम जानवरों के व्यवहार को हल्के में न लें, खासकर जब उनका व्यवहार अचानक और असामान्य हो जाए। उनके भीतर वह जैविक चेतावनी तंत्र है जो हमें समय रहते आपदा से बचा सकता है।
आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ अगर हम जानवरों की चेतावनियों को भी ध्यान में रखें, तो जानमाल की हानि को काफी हद तक रोका जा सकता है।
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