Delhi: 5 जून 2025, एक ऐसा दिन जब दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर देशभर में चर्चा का विषय बन गया।
कारण था, विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित देश के महान नायकों की मूर्तियों और चित्रों का तोड़ा जाना।
Delhi: ये मूर्तियाँ और चित्र स्वामी विवेकानंद, वीर सावरकर, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप और अहिल्याबाई होल्कर जैसे उन विभूतियों के थे, जिन्होंने न सिर्फ भारत के इतिहास को दिशा दी, बल्कि आज के युवा वर्ग को आत्मगौरव और प्रेरणा का मार्ग भी दिखाया।
यह घटना एक साधारण तोड़फोड़ से कहीं अधिक प्रतीकात्मक है। यह एक ऐसी वैचारिक लड़ाई का प्रतीक बन गई है, जो वर्षों से JNU जैसे संस्थानों में पनप रही है।
सवाल उठता है, क्या यह हमला भारतीय सभ्यता, संस्कृति और अस्मिता पर है? क्या JNU एक शैक्षणिक संस्था से अधिक एक वैचारिक युद्धभूमि बन गया है?

Delhi: जानें क्या हुआ JNU में?
JNU छात्रसंघ कार्यालय में ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) के नेतृत्व में कुछ ऐतिहासिक भारतीय नायकों के चित्र लगाए गए थे। इन चित्रों में शामिल थे:
- स्वामी विवेकानंद: भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के विश्व प्रतिनिधि।
- छत्रपति शिवाजी महाराज: स्वतंत्र हिंदवी स्वराज के प्रणेता।
- महाराणा प्रताप: अकबर की दासता अस्वीकार करने वाले स्वाभिमानी योद्धा।
- अहिल्याबाई होल्कर: संस्कृति रक्षक और धर्मनिष्ठ महिला शासक।
- वीर सावरकर: क्रांतिकारी विचारक और भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत।
ABVP का उद्देश्य था कि छात्रों को इन महान विभूतियों के विचारों और जीवन से प्रेरणा मिले। लेकिन कुछ ही समय बाद इन चित्रों को या तो क्षतिग्रस्त कर दिया गया या पूरी तरह हटा दिया गया। इस घटना से न सिर्फ परिसर में तनाव फैला बल्कि सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में भी बहस तेज हो गई।
Delhi: JNU में वैचारिक संघर्ष का इतिहास
Delhi: JNU लंबे समय से एक ऐसा संस्थान माना जाता रहा है, जहाँ वामपंथी विचारधारा का वर्चस्व रहा है। यहाँ ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जब राष्ट्रविरोधी नारों, अलगाववाद के समर्थन और सेना के खिलाफ बयानबाज़ी की घटनाएं सामने आई हैं।
2016 में जब ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाए गए थे, तब पहली बार इस संस्थान को लेकर राष्ट्रव्यापी आक्रोश देखने को मिला था। इसके बाद समय-समय पर JNU में अफजल गुरु, नक्सल विचारधारा, और हिंदू विरोधी विमर्श को समर्थन मिलता रहा।
इस संस्थान के कुछ छात्र संगठनों पर यह आरोप लगता रहा है कि वे भारत की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान से जुड़े हर प्रतीक का विरोध करते हैं, और वामपंथी-मार्क्सवादी सोच के ज़रिये एक वैकल्पिक ‘भारत’ की कल्पना को थोपना चाहते हैं।

किन नायकों को बनाया गया निशाना और क्यों?
1. स्वामी विवेकानंद
Delhi: शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण से लेकर युवाओं को आत्मगौरव सिखाने तक, विवेकानंद भारतीय अध्यात्म और नैतिक नेतृत्व के प्रतीक हैं। उन्हें हटाना उस सोच का परिचायक है जो भारतीय संस्कृति की जड़ों से कटना चाहती है।
2. छत्रपति शिवाजी महाराज
शिवाजी सिर्फ एक योद्धा नहीं, बल्कि एक न्यायप्रिय, धर्मनिष्ठ और साहसी राजा थे। उनका अपमान, दरअसल उस ऐतिहासिक चेतना का अपमान है जिसने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ स्वाभिमान की मशाल जलाई।
3. महाराणा प्रताप
एक ऐसा राजा जिसने अकबर की गुलामी स्वीकारने की बजाय जंगलों में संघर्ष को चुना। उनका चित्र तोड़ना, राष्ट्रीय स्वाभिमान और संघर्ष की भावना को ललकारने जैसा है।
4. अहिल्याबाई होल्कर
एक महिला होते हुए भी, जिनकी शासन शैली और मंदिरों के पुनर्निर्माण ने उन्हें भारतीय संस्कृति की रक्षक बनाया। उनका अपमान भारतीय नारीशक्ति पर हमला है। हाल ही में अहिल्याबाई होल्कर कि 300 वीं जयनाती पर उनका भी चीत्र वहां स्थापित किया गया था।
5. वीर सावरकर
उन पर “ब्राह्मणवादी”, “संघी” जैसे आरोप लगाने वाली सोच को सावरकर का साहस, उनका राष्ट्रवाद और सामाजिक सुधार से जुड़ा दृष्टिकोण असहज करता है। वे उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में से थे जिन्होंने कालापानी की सज़ा भोगी और समाज को एकजुट करने का प्रयास किया।
यह हमला केवल मूर्तियों पर नहीं है… यह राष्ट्र की आत्मा पर है
जब देश के नायकों को सम्मान देने की पहल पर इतना उग्र विरोध होता है कि उनकी मूर्तियाँ तोड़ी जाती हैं, तो यह सिर्फ भौतिक नुकसान नहीं होता। यह मानसिक और वैचारिक आतंकवाद का संकेत है। यह दिखाता है कि एक वर्ग आज भी भारत को उसकी असली पहचान से काटना चाहता है।
यह वर्ग उस “भारत” को देखना चाहता है जो धर्महीन, संस्कृतिहीन, और मूल्यों से शून्य हो। और इसलिए, जिन प्रतीकों से लोगों को प्रेरणा मिलती है, उन्हें नष्ट करना ही इनकी रणनीति का हिस्सा है।
क्या JNU अब वैचारिक युद्ध का केंद्र बन चुका है?
Delhi: JNU एक प्रतिष्ठित संस्थान है, जहाँ से देश के कई प्रशासक, वैज्ञानिक, प्रोफेसर और विचारक निकले हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसकी छवि एक विचारधारा विशेष से जुड़ती जा रही है। क्या यह संस्थान अब अकादमिक उत्कृष्टता का केंद्र रह गया है या एक वैचारिक प्रयोगशाला बन चुका है?
यह सवाल न केवल JNU के प्रशासन से, बल्कि देश के हर जागरूक नागरिक से पूछा जाना चाहिए।
JNU में हाल ही में हुई घटना केवल एक विश्वविद्यालय के भीतर की बात नहीं है, यह पूरे देश के लिए एक चेतावनी है।
क्या हम अपने बच्चों को ऐसे संस्थानों में भेज रहे हैं जहाँ उन्हें अपने इतिहास, संस्कृति और नायकों से घृणा करना सिखाया जा रहा है?
यह केवल विचारों की लड़ाई नहीं रही — यह भारत की आत्मा को बचाने की लड़ाई बन गई है। भारत के नायकों का अपमान, दरअसल हर भारतीय का अपमान है।
अब समय आ गया है कि हम इस बात को गंभीरता से लें कि शैक्षणिक स्वतंत्रता और विचारों की स्वतंत्रता के नाम पर कहीं राष्ट्रविरोधी विचारों को बढ़ावा तो नहीं दिया जा रहा?