वंदे मातरम् के 150 वर्ष: भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ को आज 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस ऐतिहासिक मौके पर जहां देशभर में कार्यक्रमों की तैयारी है, वहीं राजनीति एक बार फिर गरमा गई है।
भाजपा ने कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वंदे मातरम् को “विकृत” किया गया और मां दुर्गा की स्तुति वाले छंदों को जानबूझकर हटाया गया था।
भाजपा का आरोप: “नेहरू ने गीत के मूल छंद हटाए”
वंदे मातरम् के 150 वर्ष: भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सी. आर. केसवन ने कहा कि 1937 में कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में वंदे मातरम् का केवल संक्षिप्त संस्करण अपनाया गया, जिसमें देवी दुर्गा की वंदना वाले अंशों को हटा दिया गया।
उन्होंने इसे “ऐतिहासिक भूल” बताते हुए दावा किया कि नेहरू ने 1 सितंबर 1937 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखे पत्र में कहा था कि वंदे मातरम् का देवी दुर्गा से कोई संबंध नहीं है और यह गीत राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में “उपयुक्त नहीं” है।
केसवन के अनुसार, नेहरू ने 20 अक्टूबर 1937 को एक और पत्र में लिखा कि वंदे मातरम् की पृष्ठभूमि मुस्लिम समुदाय को नाराज कर सकती है।
खरगे का पलटवार: “वंदे मातरम् भारत की आत्मा
वंदे मातरम् के 150 वर्ष: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भाजपा के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वंदे मातरम् भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा रहा है।
उन्होंने कहा कि 1905 के बंगाल विभाजन से लेकर आज़ादी की लड़ाई के आखिरी क्षणों तक यह गीत क्रांतिकारियों के होंठों पर गूंजता रहा। अंग्रेज इस गीत की लोकप्रियता से इतने भयभीत थे कि उन्होंने इस पर प्रतिबंध तक लगा दिया था।
महात्मा गांधी की भावनाएँ: “यह साम्राज्यवाद-विरोधी नारा था”
खरगे ने महात्मा गांधी के 1915 के लेख का हवाला देते हुए कहा —
“वंदे मातरम् गीत बंटवारे के दिनों में बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सबसे शक्तिशाली युद्धघोष बन गया था। मैं आनंदमठ या उसके लेखक बंकिम चंद्र के बारे में कुछ नहीं जानता था, लेकिन जब मैंने यह गीत पहली बार गाया, तो यह मेरी आत्मा में उतर गया।”
नेहरू का दृष्टिकोण: “यह जनता का गीत है, थोपने की चीज़ नहीं”
वंदे मातरम् के 150 वर्ष: खरगे ने पंडित नेहरू के 1938 के लेखन का उल्लेख करते हुए कहा कि वंदे मातरम् पिछले 30 वर्षों से भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा रहा है।
नेहरू ने लिखा था — “ऐसे जनगीत किसी पर थोपे नहीं जाते, जनता स्वयं उन्हें ऊँचाई तक पहुंचाती है।”
उन्होंने याद दिलाया कि 1937 में पुरुषोत्तम दास टंडन के अध्यक्ष रहते हुए यूपी विधानसभा में वंदे मातरम् का पाठ शुरू हुआ था और उसी वर्ष नेहरू, मौलाना आजाद, सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर और आचार्य नरेंद्र देव की उपस्थिति में कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया।
खरगे का आरोप: “आरएसएस ने कभी वंदे मातरम् नहीं गाया”
वंदे मातरम् के 150 वर्ष: खरगे ने तीखे शब्दों में कहा कि यह विडंबना है कि जो संगठन खुद को राष्ट्रवाद का प्रतीक बताते हैं, उन्होंने अपनी शाखाओं में कभी वंदे मातरम् या जन गण मन नहीं गाया।
उन्होंने कहा — “आरएसएस केवल ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ गाता है, जो संगठन का गीत है, राष्ट्र का नहीं।”
खरगे ने आगे कहा कि आरएसएस ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का साथ दिया बल्कि वर्षों तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया और संविधान का अपमान किया।
भाजपा का पलटवार: “कांग्रेस ने सांप्रदायिक एजेंडा चलाया”
वंदे मातरम् के 150 वर्ष: सी. आर. केसवन ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने अपने “सांप्रदायिक एजेंडे” को आगे बढ़ाने के लिए वंदे मातरम् के देवी स्तुति वाले छंद हटाए।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने की कोशिश में इस गीत के मूल रूप को बदलने का दोषी है।
केसवन ने राहुल गांधी पर भी निशाना साधते हुए कहा — “राहुल गांधी ने कहा था कि हम शक्ति के खिलाफ लड़ रहे हैं, और यह बयान नेहरू की हिंदू-विरोधी मानसिकता को ही आगे बढ़ाता है।”
इतिहास के पन्नों से: वंदे मातरम् की उत्पत्ति और महत्व
‘वंदे मातरम्’ की रचना बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1875 में की थी। यह पहली बार ‘बंगदर्शन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ और बाद में उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ (1882) में शामिल किया गया।
रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे स्वरबद्ध किया, और जल्द ही यह भारत की आज़ादी की पुकार बन गया। ब्रिटिश सरकार ने इसकी लोकप्रियता से डरकर इस पर पाबंदी भी लगाई थी।
वंदे मातरम् के 150 वर्ष: आज भी जारी है सियासी बहस
वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सालभर चलने वाले विशेष कार्यक्रमों की घोषणा की है।
हालांकि, राजस्थान और महाराष्ट्र में स्कूलों में वंदे मातरम् गान को अनिवार्य करने के आदेशों पर नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है।
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी (SP) नेता अबू आज़मी ने कहा कि मुसलमान केवल अल्लाह के सामने झुकते हैं — और इस बयान ने इस राष्ट्रीय प्रतीक को फिर से धार्मिक बहस के घेरे में ला दिया है।
150 साल बाद भी प्रासंगिक
वंदे मातरम् — जो कभी स्वतंत्रता सेनानियों के होंठों पर आज़ादी का नारा था — आज भी भारत की राजनीति की नब्ज़ में धड़कता है।
बस फर्क इतना है कि पहले यह गीत एकता की पहचान था, अब यह वैचारिक विभाजन की बहस का केंद्र बन गया है।

